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चुनावी महाभारत में बनेंगे नए शत्रु व मित्र

राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य से अलग उत्तर प्रदेश में चुनावी महासमर सजाने की तैयारी चल रही है। देश भर में एक-दूसर से ताल ठोकने वाले राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में हाथ मिलाने की फिराक में हैं। बसपा और...

 चुनावी महाभारत में बनेंगे नए शत्रु व मित्र
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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राष्ट्रीय राजनीतिक परिदृश्य से अलग उत्तर प्रदेश में चुनावी महासमर सजाने की तैयारी चल रही है। देश भर में एक-दूसर से ताल ठोकने वाले राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश में हाथ मिलाने की फिराक में हैं। बसपा और उसके विरोधी सभी जानते हैं कि लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की लड़ाई जीतने वाला ही देश का विजेता बन सकता है। इसलिए यहाँ पर घोषित व अघोषित गठबंधन के आधार पर ही चुनावी युद्ध लड़ा जाएगा।ड्ढr उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी, कांग्रस, लोकदल और वामपंथी दल चुनावी गठबंधन बनाना चाहते हैं। यह अलग बात है कि मुलायम सिंह तीसर मोर्चे यूएनपीए के मुखिया हैं और तीसरा मोर्चा कांग्रस व भाजपा विरोध के नाम पर ही बना था। वामपंथी मुलायम से पहले ही हाथ मिला चुके हैं। साफ है कि उत्तर प्रदेश में यदि कांग्रस और सपा के बीच घोषित या अघोषित गठजोड़ होता है तो यह विरोधाभास ही होगा लेकिन बसपा के खिलाफ इन दलों का एक मंच पर आना इनकी मजबूरी लगती है। कांग्रेस को लग रहा है कि यदि उत्तर प्रदेश में सपा से गठाोड़ होोाता है तो उसे बिहार में लालू यादव की तरह एक माबूत साथी मिलोाएगा। सपा ही नहीं, कांग्रस व अन्य दलों के लिए सबसे बड़ी लड़ाई उत्तर प्रदेश की बन गई है। उत्तर प्रदेश में 17 साल बाद जिस तरह से बसपा को विधानसभा चुनाव में बहुमत मिला उसने विरोधियों की नींद उड़ा दी।ड्ढr सूत्रों के अनुसार यह मोटी सहमति बन रही है कि गैर भाजपा व गैर बसपा दल मिलकर उत्तर प्रदेश में मैदान में उतरं। अभी यह बातचीत शीर्ष स्तर पर है। कांग्रस की ओर से राय के पार्टी प्रभारी दिग्विजय सिंह और अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी गठबंधन के पक्ष में हैं। उधर वामपंथी दल भी उत्तर प्रदेश में मुलायम के ही आसर हैं। मुलायम और वामपंथी दलों के बीच राजनीतिक परिदृश्य पर परिचर्चा भी हो चुकी है। पिछले दिनों लोकदल अध्यक्ष अजित सिंह व रीता बहुगुणा जोशी के बीच भी चर्चा हुई थी। सपा के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यूएनपीए है। यूएनपीए कांग्रस विरोध पर ही खड़ा हुआ था लेकिन अब सपा नेताओं को भी लग रहा है कि यूएनपीए तभी ताकतवर हो पाएगा जब उत्तर प्रदेश में पार्टी की ताकत बचेगी। इसलिए अब उत्तर प्रदेश बचाने की लड़ाई हो रही है।

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