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जनलोकपाल पर उपराज्यपाल ने मांगी कानून मंत्रालय की राय

दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय से इस बारे में संवैधानिक स्थिति स्पष्ट करने को कहा कि क्या दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल विधेयक पेश करने से पहले राज्य सरकार के लिए केंद्र की...

जनलोकपाल पर उपराज्यपाल ने मांगी कानून मंत्रालय की राय
एजेंसीMon, 10 Feb 2014 08:23 PM
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दिल्ली के उपराज्यपाल नजीब जंग ने केंद्रीय कानून मंत्रालय से इस बारे में संवैधानिक स्थिति स्पष्ट करने को कहा कि क्या दिल्ली विधानसभा में जनलोकपाल विधेयक पेश करने से पहले राज्य सरकार के लिए केंद्र की अनुमति लेनी जरूरी है।

उपराज्यपाल कार्यालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया कि इस मामले में किसी विवाद से बचने और पूर्ण स्पष्टता प्राप्त करने के लिए जंग ने अंतिम राय के लिए इस मुद्दे को कानून मंत्रालय को भेज दिया है।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि विधेयक विधानसभा में पेश करने से पहले केंद्र से मंजूरी लेने की आवश्यकता नहीं है, जबकि भाजपा और कांग्रेस का कहना है कि कामकाज के नियम, 2002 के तहत इसके लिए मंजूरी जरूरी है।

उपराज्यपाल कार्यालय ने कहा कि समान राय कि विधेयक को मंजूरी के लिए उपराज्यपाल के जरिये केंद्र को भेजना जरूरी है, मुख्यमंत्री का मानना है कि इसके विपरीत राज्य हैं और उन्होंने इस मुददे पर कानूनी राय प्राप्त की है।

उपराज्यपाल कार्यालय ने कहा कि भ्रष्टाचार से संघर्ष बहुत जरूरी है और इसलिए उपराज्यपाल का विचार भी मुख्यमंत्री के समान ही है कि सभी स्तरों पर भ्रष्टाचार रोकने की जरूरत है। सवाल भारत के संविधान के तहत अधिदेश प्रक्रियाओं का पालन करने की जरूरत को लेकर है।

अधिकारियों ने बताया कि जंग ने शुक्रवार को केजरीवाल के पत्र का जवाब दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि सालिसिटर जनरल मोहन परासरण को भेजा गया सवाल जन लोकपाल विधेयक की विषय सूची से जुड़ा नहीं था, बल्कि वह उसे पेश करने के मामले पर संवैधानिक वैधता से जुड़ा था।

केजरीवाल ने कड़े शब्दों में लिखे पत्र में जंग से कहा था कि वह कांग्रेस और गृह मंत्रालय के हितों का संरक्षण न करें। उनका कहना था कि ये दोनों लोकपाल विधेयक में बाधा डालने के इच्छुक हैं।

केजरीवाल को भेजे अपने जवाब में जंग ने कहा कि सोलिसिटर जनरल की राय इसलिए मांगी गई, क्योंकि मुख्यमंत्री ने 31 जनवरी के अपने पत्र में संकेत दिया था कि सरकार का इरादा इस विधेयक को विधानसभा में पेश करने का है और इंदिरा गांधी स्टेडियम में एक विशेष अधिवेशन के दौरान इसपर बहस होगी।

उपराज्यपाल ने यह उल्लेख भी किया कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार की राजकाज नियमावली 1993 का नियम 34 कहता है कि इस तरह के विधेयक के मसौदे को मंत्री परिषद के सामने पेश करने से पहले उप राज्यपाल के पास भेजा जाना चाहिए और ऐसा नहीं किया गया।

केजरीवाल को भेजे अपने पत्र में जंग ने कहा कि दिल्ली सरकार के वित्त विभाग, कानून विभाग और प्रशासनिक सुधार विभाग ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि उपराज्यपाल की पूर्व अनुमति जरूरी है क्योंकि इस विधेयक के साथ समेकित निधि से व्यय का प्रावधान जुड़ा है। मंत्री परिषद ने उपराज्यपाल के विचारों को स्वीकार नहीं किया।

जंग ने आगे लिखा है कि विधिक यथार्थ यह है कि दिल्ली सरकार ,राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार कानून 1991 और दिल्ली सरकार की कामकाज नियमावली 1993 से बंधी है। इसलिए दिल्ली केबिनेट भले इसे पसंद करे या नहीं हालात वही रहेंगे, जब तक कि इन्हें उपयुक्त मंच पर चुनौती नहीं दी जाती।

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार कानून 1991 की धारा 22 :3: में स्पष्ट उल्लेख है कि विधेयक को उपराज्यपाल की उसपर विचार की सिफारिश के बिना विधानसभा में पारित नहीं किया जा सकता। उपराज्यपाल के कार्यालय द्वारा जारी बयान के मुताबिक, इसके अलावा, चूंकि केन्द्र सरकार ने लोकपाल और लोकायुक्त कानून 2013 को पहले ही मंजूरी दे दी है और इसके बहुत से प्रावधान दिल्ली सरकार के प्रस्तावित जन लोकपाल विधेयक से मिलते जुलते हैं, इसलिए किसी तरह की प्रतिकूलता से बचने के लिए दिल्ली जन लोकपाल विधेयक विचार के उद्देश्य से और राष्ट्रपति की सहमति के लिए उपराज्यपाल द्वारा पेश किया जाना चाहिए।

विधानसभा का फाइनल सत्र इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में आयोजित करने के मामले पर उपराज्यपाल ने संकेत दिया है कि कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिल्ली पुलिस की राय लेना अनिवार्य है।

दिल्ली पुलिस इस बात को लेकर स्पष्ट है कि आयोजन स्थल पर आने वाले लोगों में से ऐसे लोगों की पहचान करना और उन्हें अलग कर पाना संभव नहीं होगा, जो विधानसभा में बाधा डालने के इरादे से वहां आ रहे हैं।

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