फोटो गैलरी

Hindi Newsहिम तेंदुओं को लगाए जाएंगे रेडियो कॉलर

हिम तेंदुओं को लगाए जाएंगे रेडियो कॉलर

हिमाचल प्रदेश की जनजातीय बहुल स्पीति घाटी में पाए जाने वाले हिम तेंदुओं को सैटेलाइट से जुड़े रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे ताकि इस लुप्तप्राय: प्रजाति के व्यवहार का गहन अध्ययन किया जा सके। आधा दर्जन हिम...

हिम तेंदुओं को लगाए जाएंगे रेडियो कॉलर
एजेंसीThu, 23 Jan 2014 12:06 PM
ऐप पर पढ़ें

हिमाचल प्रदेश की जनजातीय बहुल स्पीति घाटी में पाए जाने वाले हिम तेंदुओं को सैटेलाइट से जुड़े रेडियो कॉलर लगाए जाएंगे ताकि इस लुप्तप्राय: प्रजाति के व्यवहार का गहन अध्ययन किया जा सके।

आधा दर्जन हिम तेंदुओं को उनके गले के आसपास रेडियो कॉलर पहनाया जाएगा और उनकी गतिविधियों पर ग्लोबल पोजीशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के जरिये निगरानी रखी जाएगी।

केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने हिम तेंदुओं के अध्ययन के लिए 25 लाख रुपये स्वीकृत किए हैं। हिम तेंदुओं पर दुनिया भर में यह दूसरा अध्ययन होगा।

एक वन अधिकारी और स्पीति घाटी में हिम तेंदुओं के संरक्षण की परियोजना से जुड़े शोधार्थी देवेन्दर चौहान ने बताया कि रेडियो कॉलर लगा कर पहला अध्ययन मंगोलिया के गोबी अलताई पहाड़ों पर किया गया था।

इंटरनेशनल यूनियन ऑफ कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने हिम तेंदुओं को लुप्तप्राय: प्राणियों की सूची में रखा है। यह प्राणी 12 देशों में पाया जाता है और इसकी संख्या में तेजी से कमी आ रही है। दुनिया भर में हिम तेंदुओं की आधी आबादी तीन देशों चीन, नेपाल और भारत में पाई जाती है। इन देशों के अधिकारी अंतरदेशीय अनुसंधान परियोजनाओं की संभावना पर चर्चा कर रहे हैं। समझा जाता है कि हिमाचल प्रदेश में हिम तेंदुओं की संख्या करीब 20 है।

स्पीति घाटी में हिम तेंदुओं की निगरानी के लिए हिमाचल प्रदेश का वन विभाग कैमरों का उपयोग कर रहा है। स्पीति घाटी राज्य का उत्तरी हिस्सा है जो तिब्बत की सीमा के समानांतर है।

राज्य के वन्यजीव विभाग ने मैसूर स्थित गैर सरकारी संगठन नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन की मदद से स्पीति घाटी में प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड (हिम तेंदुआ परियोजना) के तहत 20 स्वचालित कैमरे लगाए हैं।

स्पीति घाटी में ऊंची पहाडियों वाले हजारों वर्ग किमी भूभाग में हिम तेंदुओं की गतिविधियां चलती हैं इसलिए उनके बारे में सटीक सूचनाएं जुटाना मुश्किल है।

जिन पहाडियों पर ये हिम तेंदुए रहते हैं वहां मौसम बिल्कुल प्रतिकूल होने की वजह से पहुंचना असंभव होता है। यही वजह है कि वन्यजीव विज्ञानी इन हिम तेंदुओं के बारे में ज्यादा जानकारी हासिल नहीं कर पाते। इनकी संख्या कम होने के कई कारण हैं। खाल और परंपरागत दवाओं के कारोबार के लिए शिकारी अक्सर इनका शिकार करते हैं। चरवाहे और ग्रामीण कई बार बदले की भावना के चलते इन्हें मार डालते हैं।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें