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चुनाव में नक्सली हिंसा

मतदान से ठीक एक दिन पहले नक्सली आतंकियों ने जिस तरह से बिहार और झारखंड में हल्ला बोला, वह एक साथ कई बातें कहता है। पिछले एक हफ्ते में नक्सलियों ने इन दोनों राज्यों के अलावा छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों...

 चुनाव में नक्सली हिंसा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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मतदान से ठीक एक दिन पहले नक्सली आतंकियों ने जिस तरह से बिहार और झारखंड में हल्ला बोला, वह एक साथ कई बातें कहता है। पिछले एक हफ्ते में नक्सलियों ने इन दोनों राज्यों के अलावा छत्तीसगढ़ में सुरक्षा बलों पर कई हमले बोले हैं या बारूदी सुरंगों से उनके वाहनों को उड़ाया है। इन घटनाओं में तकरीबन ढाई दर्जन सुरक्षा जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी है और शायद इतनी ही संख्या में नक्सली भी मारे गए हैं। जाहिर है कि चुनावी हिंसा की आशंका के जिस आकलन से सुरक्षा बलों की तैनाती हुई है, उसमें नक्सली खतर को कम करके आंका गया। जब हम चुनावी िंहंसा की बात करते हैं तो अक्सर चुनाव प्रचार और मतदान से संबंधित हिंसा के बार में ही सोचते हैं। मतदान के खिलाफ लोकतंत्र विरोधियों की हिंसा को हम अक्सर भूल जाते हैं। ऐसा भी नहीं है कि स्थानीय स्तर पर और केंद्रीय स्तर पर भी इस खतर की आंशका ही नहीं थी। नक्सली चुनाव प्रक्रिया में बाधा डालने की कोशिश कर सकते हैं, इस आशंका की बातें पिछले कुछ समय से लगातार कही जा रही थीं, उसके बाद भी इसकी पर्याप्त तैयारी का न होना आश्चर्य में डालता है। ये हमले स्थानीय पुलिस पर नहीं, सीमा सुरक्षा बल और सीआईएसएफ के शिविरों व टुकड़ियों पर हुए हैं। जब भी कहीं नक्सली समस्या सर उठाती है तो हम यही कहते हैं कि इनसे निपटना स्थानीय पुलिस के बस में नहीं है, इसलिए केंद्रीय सुरक्षा बलों को यह जिम्मा दिया जाना चाहिए। ताजा घटनाएं बताती हैं कि समस्या का समाधान इतना आसान भी नहीं है। नक्सली आतंकवाद चुनावी समस्या नहीं है, इसलिए जब चुनाव चल रहे हों तो इसके उन्मूलन का नक्शा तैयार नहीं हो सकता। फिलहाल तो मतदान के सुरक्षा प्रबंधन पर ही ध्यान दिया जाना जरूरी है, ताकि उसे नक्सली या किसी भी दूसरी तरह की हिंसा से बचाया जा सके। वे सार विकार जिनका हम आम दिनों में उपचार नहीं कर पाते, चुनाव के मौसम में उग्र होते ही हैं। चाहे वह नक्सलवाद हो, सांप्रदायिकता, जातिवाद, या फिर राजनीति का अपराधीकरण। समाज के सार वात, कफ, पित्त के विकार अगर चुनाव के मौसम में सतह पर आ रहे हैं तो हमें एक मौका भी दे रहे हैं कि हम समस्या का विस्तार और इसकी गहराई को समझें। इनके उन्मूलन का संकल्प लें। और लोकतंत्र की इस प्रक्रिया से ही ऐसा रास्ता निकालें कि चुनाव बाद के राजनीतिक समीकरण लोकतंत्र की इन बाधाओं को हटाने का रास्ता तैयार कर।

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