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ओबामा और भारत के संबंधों के लिए बुरा समय

भारत-अमेरिका संबंधों की ही तरह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए भी यह एक उथल-पुथल भरा साल रहा है। उन्होंने देश के बाहर कुछ सफलताएं जरूर हासिल की, लेकिन अपना महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य देखभाल कानून...

ओबामा और भारत के संबंधों के लिए बुरा समय
एजेंसीWed, 25 Dec 2013 09:30 PM
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भारत-अमेरिका संबंधों की ही तरह अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के लिए भी यह एक उथल-पुथल भरा साल रहा है। उन्होंने देश के बाहर कुछ सफलताएं जरूर हासिल की, लेकिन अपना महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य देखभाल कानून लागू नहीं करा पाए।

ओबामा हालांकि यह स्वीकार नहीं करेंगे कि 2०13 उनके कार्यकाल के लिए बुरा वर्ष था, क्योंकि वह परिवार के साथ हवाई में वार्षिक छुट्टियां मनाने चले गए हैं और उनके काम की सूची में शामिल आव्रजन सुधार से लेकर रोजगार और कर सुधार से लेकर बंदूक नियंत्रण जैसी योजनाएं फिलहाल ठंडे बस्ते में हैं।

यदि ओबामाकेयर की वेबसाइट का संकट खुद द्वारा पैदा किया गया था, तो वर्षात में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी को लेकर भारत के साथ पैदा हुए कूटनीतिक विवाद के कारण दोनों देशों के संबंधों को खतरा पैदा हो गया है, जिसे ओबामा ने 21वीं सदी की एक निर्णायक साझेदारी करार दिया है।

ओबामा ने जनवरी महीने में जब अपना दूसरा कार्यकाल शुरू किया था तो उस समय 55 प्रतिशत लोग उनके समर्थक थे, लेकिन सीएनएन/ओआरसी के एक नए अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में आज उनकी लोक प्रियता में तीव्र गिरावट आई है और उनके समर्थकों की संख्या 41 प्रतिशत हो गई है। समर्थकों का मौजूदा प्रतिशत उनके पूर्ववर्ती जॉर्ज बुश के साथ मेल खाता है।

ओबामाकेयर को लेकर हुई फजीहत के अलावा राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी के एडवर्ड स्नोडेन का मामला ओबामा के लिए एक दूसरा झटका रहा, जिसने देश-विदेश में अमेरिका की पोल खोलकर रख दी।

बजट के मुद्दे पर सरकार की 16 दिनों की बंदी के बाद रिपब्लिकन पर जीत और रासायनिक हथियारों को नष्ट करने को लेकर सीरिया के साथ समझौता और परमाणु कार्यक्रम रोकने को लेकर ईरान के साथ समझौते से ओबामा अपनी पीठ थपथपा सकते हैं।

लेकिन अपने घरेलू एजेंडे को बचाने की कोशिश में भारत के साथ ओबामा के संबंध खराब हो गए। व्हाइट हाउस द्वारा समर्थित आव्रजन सुधार विधेयक को भारतीय आईटी कंपनियों के लिए स्पष्टरूप से भेदभावपूर्ण माना जा रहा है। इसके अलावा ईरानी प्रतिबंधों के कारण भी भारत प्रभावित हुआ है।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सितंबर में ओबामा के साथ पाकिस्तान से पैदा हो रहे आतंकवाद पर हुई तीसरी शिखर बैठक, प्रथम व्यावसायिक ठेके के साथ भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु समझौते की सुरक्षा और रक्षा सहयोग को अग्रिम मोर्चे पर लाने से अच्छे दिन की आशाएं दोबारा जगीं।

लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। भारतीय विदेश सचिव सुजाता सिंह अमेरिका का अत्यंत उपयोगी और फलदायी दौरा पूरा कर लौटी ही थीं कि न्यूयार्क में एक दूसरी घटना घट गई।

मजेदार बात यह कि इस घटना के पीछे और कोई नहीं बल्कि भारत में पैदा हुए वाल स्ट्रीट के शेरिफ प्रीत भरारा थे। उन्होंने अगले ही दिन वीजा धोखाधड़ी और घरेलू नौकरानी को कम वेतन देने का आरोप लगाते हुए भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरागड़े की गिरफ्तारी करवा दी। इस घटना को लेकर दोनों देशों के बीच कूटनीतिक विवाद पैदा हो गया, जो अभी तक सुलझ नहीं पाया है।

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