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छह दिन से राज्य की खुदरा शराब दुकानें बंद

राज्य में खुदरा शराब दुकानों की बंदी के छह दिन हो गये। सरकार की ओर से शराब बिक्री की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गयी है। राज्य के तकरीबन 44 लाख शराब उपभोक्ताओं को पीने के लिए शराब नहीं मिल रही है।...

 छह दिन से राज्य की खुदरा शराब दुकानें बंद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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राज्य में खुदरा शराब दुकानों की बंदी के छह दिन हो गये। सरकार की ओर से शराब बिक्री की कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गयी है। राज्य के तकरीबन 44 लाख शराब उपभोक्ताओं को पीने के लिए शराब नहीं मिल रही है। दुकान बंद होने के कारण सरकार को राजस्व के रूप में हर दिन लाइसेंस फीस के मद में 50 लाख रुपये की क्षति हो रही है। इसके अलावा कंपोजिट फीस, होलसेल डय़ूटी और सेल्स टैक्स मिला कर अलग से हर दिन 50 लाख रुपये का घाटा हो रहा है। सरकार ने चालू वित्तीय वर्ष में 500 करोड़ से ज्यादा राजस्व उगाही का लक्ष्य रखा है, किंतु वर्तमान परिस्थिति में लगता नहीं कि सरकार यह लक्ष्य पा सकेगी।ड्ढr बंदी के बाद उत्पन्न स्थिति से निपटने में अक्षम पा रहे कई जिलों के डीसी ने उत्पाद आयुक्त को पत्र लिखकर दिशा निर्देश मांगा है। फिलहाल पूरा मामला पेंडिंग है। सरकार शराब बंदोबस्ती करने में हिचकिचा रही है, क्योंकि विभाग की मंशा कुछ और है। राजस्व पर्षद के सदस्य की अध्यक्षता में गठित उच्चस्तरीय समिति द्वारा यह अनुशंसा की गयी थी कि रांची, धनबाद और बोकारो में शराब दुकानों की नीलामी क्रमश: तीन, चार और तीन समूहों में की जाये। समिति ने यह भी अनुशंसा की थी कि समूह में दुकानों की नीलामी न पाने की स्थिति में फिक्स्ड फीस सिस्टम या स्लाइडिंग सिस्टम द्वारा दुकानों की बंदोबस्ती की जा सकती है, विभाग ने इन अनुशंसाओं को दरकिनार कर तथाकथित नयी नीति अपनायी। इसके तहत एक जिला के सभी प्रकार की खुदरा दुकानों की बंदोबस्ती एक समूह में करने का निर्णय लिया। वित्त के प्रधान सचिव ने नयी उत्पाद नीति के प्रस्ताव पर असहमति जतायी थी।ड्ढr बंदोबस्ती में विलंब का राज !ड्ढr जानकार लोगों का मानना है कि तीन प्रमुख जिलों (रांची, धनबाद , बोकारो) में शराब बंदोबस्ती में विलंब सोची समझी रणनीति के तहत शराब कारोबारियों के एक समूह को लाभ पहुंचाने के लिए किया जा रहा है। रांची, धनबाद और बोकारो में सिंडिकेट के साथ ही शराब दुकानें बंदोबस्त होती रही हैं। इन तीनों जिलों में शराब दुकानों की मासिक रिार्व फीस लगभग आठ करोड़ से अधिक है। इस कारण इन जिलों की बंदोबस्ती में भाग लेना मध्यम वर्ग के व्यापारियों के बूते से बाहर है। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए सिंडिकेट ने भी नीलामी में भाग नहीं लिया, ताकि सरकार पर दबाव बना सकें कि पूर राज्य की बंदोबस्ती उनको ही दी जाये।

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