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आईएनएस विक्रमादित्य कल होगा भारतीय नौसेना में शामिल

लंबे समय से लंबित एवं प्रतीक्षित 2.3 अरब डॉलर का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य कल (शनिवार) यहां भारतीय नौसेना में शामिल हो जाएगा, जिससे भारत की समुद्री क्षमताओं में इजाफा होगा। शुक्रवार शाम यहां...

आईएनएस विक्रमादित्य कल होगा भारतीय नौसेना में शामिल
एजेंसीFri, 15 Nov 2013 04:34 PM
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लंबे समय से लंबित एवं प्रतीक्षित 2.3 अरब डॉलर का विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य कल (शनिवार) यहां भारतीय नौसेना में शामिल हो जाएगा, जिससे भारत की समुद्री क्षमताओं में इजाफा होगा।

शुक्रवार शाम यहां पहुंच रहे रक्षा मंत्री एके एंटनी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य को रूसी प्रधानमंत्री दमित्रि रोगोजिन तथा दोनों देशों की सरकारों एवं नौसेना के वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी में नौसेना में शामिल करेंगे।

विमानवाहक पोत को रूस के परमाणु पनडुब्बी निर्माण केंद्र सेवमेश शिपयार्ड में भारतीय नौसेना में शामिल किया जाएगा। आईएनएस विक्रमादित्य कीव श्रेणी का विमानवाही पोत है जिसे वर्ष 1987 में बाकू नाम से रूसी नौसेना में शामिल किया गया था। उसका नामकरण बाद में एडमिरल गोर्शकोव कर दिया गया था।

भारत को इसकी पेशकश किये जाने से पहले इसने वर्ष 1995 में रूस में अपना आखिरी सफर किया था। 44,500 टन वजनी युद्धपोत की लंबाई 284 मीटर है और इस पर मिग29 के नौसेना लड़ाकू विमान के साथ ही कामोव 31 और कामोव 28 पनडुब्बी रोधी और समुद्री निगरानी हेलीकॉप्टर तैनात रहेंगे।

मिग29 के विमान भारतीय नौसेना की क्षमता में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी करेंगे, क्योंकि यह एक बार में 700 समुद्री मील तक उड़ान भर सकता है और हवा में ईंधन भरकर यह दायरा 1900 समुद्री मील हो जायेगा। इस पर विभिन्न तरह के हथियारों की तैनाती की जाएगी जिसमें पोत रोधी मिसाइल, दृश्य सीमा से परे हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और गाइडेड बम और रॉकेट शामिल हैं।

करीब नौ वर्ष की बातचीत के बाद पोत में पुराने पुर्जे हटाकर नये लगाने तथा 16 मिग29, केयूबी डेक आधारित लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए वर्ष 2004 में 1.5 अरब डॉलर का शुरुआती अनुबंध हुआ। 1998 में गतिरोध समाप्त करने के लिए रूस के तत्कालीन प्रधानमंत्री येवगेनी प्रिमाकोव की सरकार ने पोत को भारत को मुफ्त में देने की पेशकश की थी बशर्ते वह इसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का खर्चा दे दे।

यद्यपि कार्य के प्रारंभिक मूल्यांकन में जरूरी परिश्रम की कमी के चलते उसकी कीमत काफी बढ़ गई जिससे उसकी मरम्मत और आधुनिकीकरण का काम रुक गया। पोत का सौदा द्विपक्षीय संबंधों में एक बड़ी अड़चन बन गया था। वर्ष 2007 के अंत तक दोनों देशों के बीच संबंध गिरकर सबसे निचले स्तर पर पहुंच गये थे, जब यह स्पष्ट हो गया था कि रूस पोत की आपूर्ति वर्ष 2008 की समयसीमा तक नहीं करेगा।

यद्यपि दोनों देशों ने एक अतिरिक्त समझौता किया, जिसके तहत भारत पोत की मरम्मत के लिए अधिक कीमत का भुगतान करने पर सहमत हुआ। भारतीय अधिकारियों ने निजी चर्चाओं में स्वीकार किया कि बढ़ी कीमत के बावजूद यह एक अच्छा सौदा होगा, क्योंकि उसकी तरह का पोत अंतरराष्ट्रीय बाजार में दोगुनी से कम कीमत पर नहीं मिलेगा, लेकिन कोई भी विमानवाहक पोत निर्यात के लिए नहीं बनाता।

आईएनएस विक्रमादित्य पर स्वदेशी निर्मित एवं विकसित एएलएच ध्रुव हेलीकॉप्टरों के साथ सीकिंग हेलीकॉप्टरों की भी तैनाती होगी। आईएनएस विक्रमादित्य पर 1600 कर्मियों की तैनाती रहेगी और यह वस्तुत: समुद्र पर एक तैरते शहर की तरह होगा। इसकी साजोसामान की जरूरत भी काफी होगी जैसे एक महीने में इस पर करीब एक लाख अंडे, 20 हजार लीटर दूध ओर 16 टन चावल की खपत होगी।

नौसेना की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि पूर्ण खाद्य सामग्री के साथ यह पोत समुद्र में 45 दिन तक रह सकता है। विज्ञप्ति में कहा गया है कि आठ हजार टन भार क्षमता के साथ पोत सात हजार समुद्री मील या 13 हजार किलोमीटर की दूरी तक अभियान में सक्षम है। पोत को ऊर्जा आठ बॉयलरों से मिलती है और यह पोत अधिकतम 30 नॉट प्रतिघंटे की गति हासिल कर सकता है।

सेवमेश शिपयार्ड के चीफ डिलीवरी कमिश्नर इगोर लियोनोव ने कहा कि विक्रमादित्य पर लगभग सभी चीज नयी है। लियोनाव ने कहा कि पोत का करीब 40 प्रतिशत पेंदा मूल वाला है बाकी पूरी तरह से नया है। उन्होंने कहा कि नौसेना ने पोत की मरम्मत और आधुनिकीकरण की पूरी प्रक्रिया के दौरान अपने इंजीनियरों और तकनीशियनों को पोत पर तैनात किये रखा।

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