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सजावट में जुटी हूं, टाइम ही नहीं है...

इन दिनों ‘गोरी तेरे गांव में’ के एक आइटम नंबर ‘धत तेरे की’ में ईशा के लटके-झटके की काफी तारीफ हो रही है। इसके अलावा वह साजिद खान की ‘हमशक्ल’ में काम कर रही हैं।...

सजावट में जुटी हूं, टाइम ही नहीं है...
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 02 Nov 2013 12:05 PM
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इन दिनों ‘गोरी तेरे गांव में’ के एक आइटम नंबर ‘धत तेरे की’ में ईशा के लटके-झटके की काफी तारीफ हो रही है। इसके अलावा वह साजिद खान की ‘हमशक्ल’ में काम कर रही हैं। पिछले साल वह अपनी दो-दो फिल्मों ‘राज-3’ और ‘जन्नत-2’ की सफलता से सातवें आसमान पर थीं। तब उन्होंने अपने दोस्तों से वादा किया था कि दिवाली पर इस सफलता की खुशी में एक भव्य पार्टी देंगी।

दिवाली के बारे में ईशा कहती हैं, ‘यह मेरा पसंदीदा त्योहार है। इसे परिवार के लोगों के साथ ही मनाना मुझे पसंद है, इसलिए इस खास फेस्टिवल को मैं उनके साथ सेलिब्रेट करने के लिए दिल्ली चली जाती हूं। मैं एक रूढिवादी उत्तर भारतीय परिवार से आई हूं। हमारे यहां दिवाली से दो-तीन दिन पहले से ही इस मौके के खास लोकगीत बजने लगते हैं। यही नहीं, हम खुद भी दीपावली के दिन घर पर ऐसे लोक गीतों का एक छोटा-सा कार्यक्रम रखते हैं। अपने घर को भी पारंपरिक ढंग से सजाते हैं। शादी के बाद मैं अपने बच्चों को भी यह संस्कार दूंगी।’

गहने खरीदने का रिवाज
ईशा के मुताबिक दूसरे कई परिवारों की तरह उनके यहां भी इस मौके पर सोने या डायमंड के आभूषण खरीदने का रिवाज है। वह कहती हैं, ‘पिछले साल अपनी दो फिल्मों की सफलता के बाद पहली बार मैंने अपने लिए डायमंड की रिंग खरीदी थी। इस साल मैं खुद के लिए कुछ खरीदने की बजाय अपनी बहन और मां को कुछ ज्वेलरी खरीद कर देना चाहती हूं। मेरा मानना है कि ज्वेलरी सबसे अच्छा गिफ्ट होती है। इसकी री-सेल वेल्यू भी अच्छी होती है।’

पारंपरिक परिधान साड़ी
बकौल ईशा, ‘मैं अपनी मां और बहन को महंगी डिजाइनर साड़ी भी भेंट करना चाहती हूं। दिवाली के मौके पर हम अपना पारंपरिक परिधान साड़ी जरूर पहनते हैं। वैसे साड़ी मेरा प्रिय परिधान रहा है। इस मौके का फायदा उठा कर तरह-तरह की साडियां खरीदना मैं कभी नहीं भूलती। इस दिन साड़ी पहन परिवार के लोगों के साथ दीये की रोशनी में बैठ कर खाना खाने का अपना एक अलग ही लुत्फ होता है। अपने पड़ोसियों को मिठाई बांटना भी हमारे सेलिब्रेशन का एक हिस्सा होता है।’

घर सजाने के मामले में आलसी
उन्होंने बताया, ‘मुझे घर सजा देखना तो बहुत अच्छा लगता है, पर सजाने का काम शुरू करने में आलस आता है। मां और बहन के पहल करने के बाद मैं इस काम में जुट जाती हूं। इस मौके पर घर को कुछ नये अंदाज से डेकोरेट करना मुझे अच्छा लगता है।

‘बाहर की लाइटिंग के अलावा घर के अंदर हम सिर्फ दीये जलाना ही पसंद करते हैं। दीये ही नहीं, घर को रंगोली, कंदील और चित्रकारी से सजाने में मेरा मन बहुत रमता है। खासतौर से लाइट की बजाय दीयों की रोशनी में रहना मुझे पसंद है। और हां, दिवाली में आतिशबाजी पर खर्च करने की बजाय वह पैसा मैं आसपास के लोगों के लिए गिफ्ट खरीदने में खर्च करती हूं।’

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