फोटो गैलरी

Hindi News हमारा भी एक हथौड़ा

हमारा भी एक हथौड़ा

अरज हमारी यही है कि बस नक्कारखाने में हमारा भी एक हथौड़ा लीजिए ठसा-ठस। मैं खुद एक चिंदी व्यंग्यकार बनने की फिराक में, जाने कितने ही लेखकों की तरह घर की जमा पूंजी खर्च करता रहता हूं। सो उर्मिल कुमार...

 हमारा भी एक हथौड़ा
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
ऐप पर पढ़ें

अरज हमारी यही है कि बस नक्कारखाने में हमारा भी एक हथौड़ा लीजिए ठसा-ठस। मैं खुद एक चिंदी व्यंग्यकार बनने की फिराक में, जाने कितने ही लेखकों की तरह घर की जमा पूंजी खर्च करता रहता हूं। सो उर्मिल कुमार के चूं-चूं के मुरब्बे की रेसिपी पर गौर फर्माया। रेसिपी पर या तो भारी माथा-पच्ची की गई है या कि ऐसी रेसिपी बनाने के लिए उर्मिलजी वाकई ऊपर से माता सरस्वती का आशीर्वाद लेकर धरती को धन्य करने आए हैं। निवेदन है कि नक्कारखाने का बाजा बजाने वालों को ऐसी धुन सुनाने के लिए हमारी तरफ से धन्यवाद दे दें। इसलिए कि हम कितनी भी कोशिश कर लें नक्कारखाने के उस्ताद ‘ऐरे गैरे नत्थू खरे’ का बैंड नहीं बजाते। उनकी पसंद ही अंतिम निर्णय करती है। कभी-कभी लगता है जैसे किसी मजबूरी में या किसी को कृतार्थ करने के लिए नक्कारा बजाया जा रहा है। हालांकि ढेर सारी धुनें उनके डेस्क और डस्टबिन में धूल खाते-खाते उनकी एलर्जी का शिकार हो दम तोड़ देती हैं। उन रचनाओं के असली वारिसों को धुनों के दम तोड़ने की खबर तक देना जरूरी नहीं समझा जाता है। कहते हैं रचना लेखक की संतान समान होती है, मगर डेस्क पर बैठे लोग उसकी हत्या करने के बाद न केवल उसे गटर के हवाले कर देते हैं, रचना की मृत्यु की सूचना भी नही देते। खर ठीक भी है अगर कत्ल को अंजाम देने के बाद बच्चों के बाप को सूचना भी देने लगे, तब तो हो चुका। उर्मिलजी आप दो तरह से ‘सौ-भाग्यशाली’ से भी बेहतर हैं। एक तो यह कि आप की रचना हमारी कचोट को शब्द और आवाज देने का अवसर पा सकी, दूसरे यह कि तमाम रचनाओं के बाद भी हमारी आवाज जहां नक्कारखाने में हमेशा तूती से भी कम ही रही, कम-से-कम आप तो नक्कारखाने से आवाज निकालकर बहुतों के कान के नीचे न सही मगर कान के भीतर बहुत कुछ देने में कामयाब रहे। आपको मैं ‘दिमाग’ से बहुत-बहुत शुक्रिया अता करता हूं। उम्मीद है बाबा रामदेव या आसाराम जी की तरह आप यह नहीं कहेंगे कि आप भी बिना पॉकेट वाला कपड़ा पहनते हैं और इस शुक्रिया को रखने की आपके पास जगह नही है। हालांकि हम यह भी जानते हैं कि बिना पाकेट वालों के पास जितना धन होता है, अगर शेयर मार्केट में उनकी कम्पनी लिस्टिंग करा ले तो शायद उसका भाव कभी किसी भालू के बहलावे में न आएगा, धर्म के ‘सांड़’ से यादा तेजी कौन दिखा सकता है? किसे धन्यवाद भेजूूं ‘पताल-गते’ ही अहिरावण से कूरियर करवा दूंगा।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें