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संत दरिया साहब

संत दरिया साहब, कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वह कहते थे- ‘सोइ कहो जो कहै कबीरा, दरियादास पद पायो हीरा।’ उनकी चिंतन धारा पर सत्तनामी संप्रदाय, कबीर की ज्ञान धारा और सूफी मत का बहुत प्रभाव पड़ा...

 संत दरिया साहब
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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संत दरिया साहब, कबीर के विचारों से बहुत प्रभावित थे। वह कहते थे- ‘सोइ कहो जो कहै कबीरा, दरियादास पद पायो हीरा।’ उनकी चिंतन धारा पर सत्तनामी संप्रदाय, कबीर की ज्ञान धारा और सूफी मत का बहुत प्रभाव पड़ा था। इस कारण उनकी साधना, भगवत चिंतन का मूल आधार थी -प्रेम साधना। उनकी दृष्टि में प्रेमत्व का ज्ञानी ही, परमात्मा की अपार ज्योति का वर्णन कर सकता है। वह कहते थे- ‘सोभा अगम अपार, हंसा बंस सुख वापही।’ कोई ज्ञानी कर विचार, प्रेमतत्व जाके बसे। संत हरिया साहब के जीवन के बार में कुछ किंवदंतियां ही मिलती हैं। कहते हैं कि उनके पिता उज्जन से बिहार में जगदीशपुर आ गए थे। उनका नाम पृथुदेव सिंह था। वह समय औरंगजेब के शासन का था जब हिन्दुओं को धर्म परिवर्तन के लिए कहा जा रहा था। कहते हैं कि अपने भाई के प्राण बचाने के लिए दरिया के पिता ने एक दराी की कन्या से विवाह करके इस्लाम मत स्वीकार कर लिया था। दरिया की माँ एक दिन उन्हें गोद में लिए बैठी थीं। अचानक एक पीर साहब आए और उन्होंने दरिया के सिर पर हाथ फेरकर उनका नाम ‘दरियाशाह’ या ‘दरियादास’ रख दिया। दरिया साहब में पांच वर्ष की उम्र से ही संत के लक्षण दीखने लगे थे। बचपन में विवाह हो जाने के बावजूद, पन्द्रह साल की आयु में दरिया ने वैराग्य स्वीकार कर लिया। उनकी ज्ञान संबंधी बातों को सुनकर लोगों को आध्यात्मिक शांति मिलती। इससे सत्संग का दायरा बढ़ता गया। तीस साल की उम्र में उन्हें गद्दी पर विराजमान कर साधु संतों ने उन्हें ‘कबीर का अवतार’ कहा। दरिया साहब ने कहा- ‘ब्रह्म की प्राप्ति जीव में ही सुलभ है। ब्रह्म पद का अनुसंधान जीव में ही करना चाहिए।’ उनका मानना था कि ‘खोजो जीव, ब्रह्म मिलि जाई।’ दरिया साहब ने कबीर के ‘सत्तलोक’ की भांति ‘अभय लोक’ की कल्पना की और उसकी व्याख्या में कहा- ‘तीन लोक के ऊपर अभय लोक है, उसमें सदा, नित्य, निरंतर सत्तपुरुष का निवास है।’

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