बदलते हमसफर
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आप अपने दोस्त और दुश्मन तो तय कर सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं तय कर सकते। इसी के साथ उन्होंने बहुत से सहयोगियों की परवाह न करते हुए पाकिस्तान की तरफ...
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि आप अपने दोस्त और दुश्मन तो तय कर सकते हैं, लेकिन पड़ोसी नहीं तय कर सकते। इसी के साथ उन्होंने बहुत से सहयोगियों की परवाह न करते हुए पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा दिया था। अब ऐसा ही एक और तर्क आया है। माक्र्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि आप यह तो तय कर सकते हैं कि आपको किस ट्रेन में सफर करना है, लेकिन आप अपने हमसफर तय नहीं कर सकते। इसी तर्क को आगे बढ़ाते हुए यह भी कहा जा सकता है कि आप अपने ड्राइवर, सिग्नलमैन और राहान वगैरह भी तय नहीं कर सकते, लेकिन फिलहाल माकपा की समस्या इन्हें लेकर नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी से है, जो उस ट्रेन में पहले से ही मौजूद है, जिसकी समय- सारिणी खुद माकपा ने ही तैयार की थी। फिलहाल इस नई मैत्री एक्सप्रेस ने पूरी राजनीति को ही अजूबा बना दिया है। क्या कोई यह कल्पना कर सकता था कि वाम मोर्चा और ममता बनर्जी भी कभी हमसफर होंगे? दोनों ही चाहते हैं कि सोमनाथ चटर्ाी लोकसभा अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दें। हमेशा ही अलग-अलग दिशाओं में जाने वाले ये लोग आज ऐसे मोड़ पर पहुंच गए हैं, जहां उन्हें यकीन है कि एक ही ट्रेन उन्हें उनके अलग-अलग तीर्थ तक ले जाएगी। यह सवाल बेमतलब है कि पहले यही वामपंथी उस ट्रेन को ही दूर से नमस्कार कर देते थे, जिस पर आरक्षण के लिए भाजपा वालों ने बस फार्म ही भरा होता था यानी परमाणु समझौते के जिस सैद्धांतिक विरोध की बात की जा रही है, उसके लिए नए पुराने कई सिद्धांत तोड़े जा रहे हैं, कई मर्यादाएं ताक पर रखी जा रही हैं। संप्रग की दूसरी ट्रेन की भी हालत यही है। हमसफर बदल रहे हैं। मंत्री और मुख्यमंत्री पद के वादे हो रहे हैं। खरीद- फरोख्त में बाजार भाव भी बढ़ रहा है। राजनीति में जिसके पास जितना भी अच्छा या बुरा है, सब दांव पर लग गया है। फिलहाल जो राजनीति चल रही है उसमें उथल-पुथल जितनी भी हो वह समुद्र मंथन नहीं है। यह उम्मीद बेकार है कि उसमें से किसी के लिए विष और किसी के लिए अमृत निकलेगा। यह सुर-असुर का कोई संग्राम नहीं है और न ही इससे राजनीति की कोई सभ्यता शुरू होनी है। लेकिन इस तरह के झटके भी जरूरी हैं ताकि राजनीति के विभिन्न स्तरों पर जमा वात, कफ और पित्त बाहर आए। इसमें इलाज की गारंटी तो नहीं है, लेकिन कथनी और करनी के अंतर की डॉयग्नोसिस तो जनता की डिस्पेंसरी हो ही जाएगी।