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...और विपक्ष ने सिब्बल को बाध्य किया माफी मांगने के लिए

विपक्ष ने शनिवार को राज्यसभा में कानून मंत्री कपिल सिब्बल को माफी मांगने के लिए बाध्य करते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने उच्च सदन को गुमराह कर एक संविधान संशोधन विधेयक को उच्च सदन में अत्यावश्यक बताकर...

...और विपक्ष ने सिब्बल को बाध्य किया माफी मांगने के लिए
एजेंसीSat, 07 Sep 2013 03:43 PM
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विपक्ष ने शनिवार को राज्यसभा में कानून मंत्री कपिल सिब्बल को माफी मांगने के लिए बाध्य करते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने उच्च सदन को गुमराह कर एक संविधान संशोधन विधेयक को उच्च सदन में अत्यावश्यक बताकर जल्दबाजी में पारित करा लिया, लेकिन लोकसभा में उसे पारित नहीं किया जा सका।

इस मुद्दे पर विपक्षी सदस्यों के हंगामे के कारण उच्च सदन की बैठक शुरू होने के बाद दो बार स्थगित हुई। विधेयक को स्थायी समिति के पास न भेजने के लिए सरकार को आड़े हाथों लेते हुए सदस्यों ने आरोप लगाया कि उसने होमवर्क नहीं किया और जल्दबाजी में विधेयक उच्च सदन में पेश कर दिया।

सिब्बल ने कहा मैं कहना चाहता हूं कि मैं माफी चाहता हूं कि हमारे तमाम प्रयासों के बावजूद, विधेयक लोकसभा में पारित नहीं किया जा सका। कानून मंत्री के इतना कहने के बाद सदन में कामकाज सामान्य तरीके से होने लगा।

इससे पहले सिब्बल ने खेद जाहिर करते हुए कहा था कि मुझे अत्यंत खेद है कि संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पारित नहीं हो पाया।

राज्यसभा में विधेयक जब पारित हुआ तो उसके शीर्षक में 99वां संविधान संशोधन विधेयक की बजाय 120वां संविधान संशोधन विधेयक लिखा था। इस तकनीकी खामी को दुरूस्त करने के बाद विधेयक लोकसभा को भेजा गया, जहां यह पारित नहीं हो पाया।

बहरहाल, भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने कहा कि गृह कार्य नहीं किया गया। इसे राज्यसभा में जल्दबाजी में पारित कराने के लिए हमें गुमराह किया गया। मंत्री ने भूल की और इसके लिए उन्हें सदन से माफी मांगनी चाहिए।

कानून मंत्री ने कहा कि सचिवालय को भूल का अहसास हुआ, जिसके बारे में तत्काल सभापति को बताया गया। उन्होंने इस भूल को सुधार कर विधेयक लोकसभा में भेजा। विधेयक की प्रतियां मुद्रित हो गई और तैयार थीं। बहरहाल, मुझे इस बात का अफसोस है कि हमारे तमाम प्रयासों के बावजूद विधेयक लोकसभा में पारित नहीं किया जा सका। ऐसा जानबूझकर नहीं किया गया।

इससे पहले में रविशंकर प्रसाद ने कहा कि चर्चा के दौरान पूरा विपक्ष चाहता था कि इस विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजा जाए, क्योंकि यह उच्चतम और उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कालेजियम व्यवस्था समाप्त कर न्यायिक नियुक्ति आयोग गठित करने का मार्ग प्रशस्त करने वाला एक महत्वपूर्ण विधेयक है।

गौररतलब है कि संविधान संशोधन विधेयक को राज्यसभा ने 5 सितंबर को मंजूरी दी थी। भाजपा इस विधेयक को स्थायी समिति में भेजे जाने की मांग कर रही थी। अपनी मांगें नहीं माने जाने पर भाजपा, शिरोमणि अकाली दल और शिवेसना के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया था तथा सदन ने एक के मुकाबले 131 मतों से विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी थी।

प्रसाद ने कहा कि विपक्ष ने इस विधेयक को अभी स्थायी समिति के पास भेजने और अगले सत्र में सदन में लाए जाने की मांग की थी। माकपा के पी राजीव ने कहा कि विधेयक को स्थायी समिति के पास भेजा जाना चाहिए था लेकिन मंत्री ने कहा कि लोकसभा में इसे मंजूरी मिल जाएगी और फिर इसे राज्यों की विधायिकाओं के पास भेजा जाएगा।

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