सरकार अब सपेरों को करेगी ट्रेंड
राज्य में अब ऐसी भी पाठशालाएं होंगी जहां ककहरा की जगह ‘विषधरों की फुफकार’ सुनाई देगी! बीन भी बजेगी और पलक झपकते नागनाथ पिटार में दिखेंगे। राज्य सरकार ने इस परंपरागत विधा की राह पर एक कदम और आगे बढ॥कर...
राज्य में अब ऐसी भी पाठशालाएं होंगी जहां ककहरा की जगह ‘विषधरों की फुफकार’ सुनाई देगी! बीन भी बजेगी और पलक झपकते नागनाथ पिटार में दिखेंगे। राज्य सरकार ने इस परंपरागत विधा की राह पर एक कदम और आगे बढ॥कर सपेरों को ‘सर्पेट चार्मर’ बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। खासबात यह होगी कि पिटार में सांप-बिच्छू और हाथों में जड़ी लेकर दुआ लगाने वाले सपेरों को ‘सर्पेट चार्मर’ बनते ही सरकारी मान्यता भी मिल जाएगी।ड्ढr ड्ढr फर्क यही होगा कि वे विषधरों को परंपरागत तरीके से नहीं हाईटेक तरीके से पकड़ेंगे और उनका विष निकालकर सरकारी ‘विष बैंक’ में जमा करंगे। इसी विधि से वे बिच्छू और मधुमक्िखयों को भी पकड़कर उनका डंक निकालेंगे। दरअसल यह पूरी कवायद इस पेशे से जुड़े महादलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए चल रही है। सरकार का मानना है कि महादलित कई ऐसी विधाओं में निपुण होते हैं जिसकी जानकारी समाज के दूसर तबके के लोगों को नहीं होती। उनके अंदर की उन्हीं कलाओं को विकसित करने के लिए सरकार राज्यभर में ऐसे बीस स्कूल खोलने का तानाबाना बुन रही है जहां इस पेशे से जुड़े महादलितों को सांप-बिच्छू और मधुमक्ियों को पकड़ने और उनका डंक निकालने के गुर सिखाये जायेंगे। स्कूल ऐसी बस्तियों में खोले जायेंगे जहां महादलितों की संख्या अधिक हो। इन स्कूलों में छात्रावास भी होंगे। कल्याण विभाग के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार एक स्कूल में सौ से लेकर ढाई सौ छात्रों की पढ़ाई होगी।ड्ढr स्कूलों को खोलने से लेकर पढ़ाई शुरू करने तक वार्षिक व्यय लगभग 15 करोड़ रुपये आंका गया है। परियोजना के आधार पर चलाई जाने वाली इस योजना को मूर्त रूप देने की कार्रवाई करगा अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण विभाग।ं