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जान वैसे तो सुप्रीमो की जान बिहार में ही बसती है। मगर लोकसभा में विश्वास मत पर सरकार की जीत और चुनाव को देखते हुए उनकी दिलचस्पी बढ़ गई है। पटना में क्या हो रहा है, उनके पास पल-पल की जानकारी रहती...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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जान वैसे तो सुप्रीमो की जान बिहार में ही बसती है। मगर लोकसभा में विश्वास मत पर सरकार की जीत और चुनाव को देखते हुए उनकी दिलचस्पी बढ़ गई है। पटना में क्या हो रहा है, उनके पास पल-पल की जानकारी रहती है। उस दिन राजा के झूठ वाले बयान पर खिन्न होकर दरबार में बैठे थे तो पटना से खबर गई-गौतम को डीाीपी बना दिया है। उनकी पहली प्रतिक्रिया थी-अब..नाथ सिंह का क्या होगा। गौतम तो उनके पीछे ही पड़े हुए हैं। फिर उन्होंने राजा को कोसा-कोल्ड स्टोरा से आदमी लाकर बिठा रहे हैं। हमार समय में ये लोग कहां थे।ड्ढr ड्ढr दर्शनड्ढr यहां वाले चौबे बाबा तो पहले से दुखी हैं। दिल्ली वाले चौबे बाबा भी दुखी हो गए। दुख वाजिब ही है। तीन दिन तक पटना में रहे। मकसद सिर्फ इतना था कि राजा से मुलाकात हो और क्षेत्र के बार में कुछ बात भी हो जाए। संसदीय क्षेत्र के विकास के लिए ब्लू प्रिंट भी ले आए थे। दरबार में तीन दिनों तक उन्होंने फोन कॉल की झड़ी लगा दी। सुबह, दोपहर और शाम। तीसर दिन जब बुलावा नहीं आया तो बाबा भाया बक्सर दिल्ली के लिए सीधे हो गए। कसम खाकर गए हैं कि अब दोबारा राजा को फोन नहीं करंगे।ड्ढr ड्ढr कोप भवनड्ढr सचिवालय में कोप भवन नाम से कोई कमरा नहीं है। फिर भी पीड़ित अधिकारियों ने अपने लिए एक ऐसी जगह तलाश ही ली है जहां बैठ कर वह अपनी पीड़ा का क्षहार करते हैं। यह कमरा उस शख्स का है जो चीफ सेक्रेटरी बनने की दौर में सबसे आगे थे। कोप भवन में शाम के वक्त अखिल भारतीय सेवा के दर्जन भर अफसर जुटते हैं। एक ही सवाल सब की जुबान पर-कब वनवास खत्म होगा? वैसे कोप भवन के एक सदस्य हो हाल ही में बड़ा ओहदा मिल गया है। बाकी लोगों को इससे अधिक खुशी नहीं हुई। आखिर एक आदमी जो टोली से बिछुड़ गया है।ड्ढr ड्ढr मच्छरड्ढr मच्छर के बार में नाना पाटेकर के डायलाग को हर कोई जानता है। इधर मच्छर के बार में एक भगवाधारी नेता का भी डायलाग आया है। नेताजी ताजा-ताजा मौन व्रत पर बैठे थे। तंबू-कनात के साथ उन्हें थाना परिसर में लाया गया। बहुत विधायक और नेता मिलने आए। उनके मुद्दे को सराहा गया। मगर, मच्छरों ने उनके साथ नाइंसाफी की। मौन रहने के कारण उफ तक नहीं कह सकते थे। मारने का तो सवाल ही नहीं। गांधीवादी व्रत में हिंसा के लिए भला जगह कहां? उन्होंने एलान किया-आदमी सरकार से लड़ सकता है, मच्छरों से नहीं।

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