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प्राण कृष्ण सिकंद...खलनायकी को दिया नया आयाम

बल्लीमारान की गलियों से बॉलीवुड तक के सफर में अपनी बेहतरीन अदायगी की छाप छोड़ने वाले मशहूर अभिनेता प्राण को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जायेगा। उन्हें यह...

प्राण कृष्ण सिकंद...खलनायकी को दिया नया आयाम
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 13 Apr 2013 03:54 PM
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बल्लीमारान की गलियों से बॉलीवुड तक के सफर में अपनी बेहतरीन अदायगी की छाप छोड़ने वाले मशहूर अभिनेता प्राण को भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से नवाजा जायेगा।

उन्हें यह सम्मान दिये जाने के फैसले का उनके बेटे सुनील सिकंद ने स्वागत किया है। प्राण को तीन मई को विज्ञान भवन में आयोजित समारोह में सम्मान दिया जायेगा। अपने छह दशक के कैरियर में 400 से अधिक फिल्में कर चुके प्राण ने 1998 में अभिनय को अलविदा कह दिया था।

पिछले कई साल से प्राण के नाम की चर्चा फाल्के पुरस्कार के लिये होती रही, लेकिन उन्हें यह सम्मान नहीं मिला। पिछले साल भी प्राण को यह पुरस्कार दिये जाने की अटकलें थीं, लेकिन मशहूर बांग्ला अभिनेता सौमित्र चटर्जी को चुना गया। यह पूछने पर कि क्या देर से सम्मान मिलने का उन्हें दुख है, सुनील ने कहा कि यह खुशी का पल है और इस समय विवादित बयानबाजी की कोई जरूरत नहीं है। हम इस पल का आनंद लेना चाहते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि प्राण का पुरस्कार लेने दिल्ली जाना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि वह 93 वर्ष के हैं और हाल ही में अस्पताल से उन्हें छुट्टी मिली है। मुझे नहीं लगता कि वह पुरस्कार लेने जा सकेंगे।

पुरस्कार मिलने पर प्राण की प्रतिक्रिया के बारे में पूछने पर सुनील ने कहा कि उन्होंने टीवी पर यह खबर देखी है। वह और हम सभी खुश हैं। खलनायकी और चरित्र अभिनय को नये आयाम देने वाले प्राण ने कई किरदारों को इस शिद्दत से जिया कि सिनेमा के इतिहास में वे अमर हो गए। फिर वह जंजीर का शेरखान हो या कस्मे वादे प्यार वफा गाता फिल्म उपकार का मलंग। उन्होंने दिलीप कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक हर बड़े कलाकार के साथ काम किया और अपनी उपस्थिति बराबरी से दर्ज कराई।

उन्होंने नब्बे के दशक के आखिर में उम्र संबंधी बीमारियों के कारण फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था। पुरानी दिल्ली के बल्लीमारान में 12 फरवरी 1920 को जन्में प्राण ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत 1942 में दलसुख पंचोली की फिल्म खानदान से की। उन्होंने 40 के दशक में यमला जट, खजांची, कैसे कहूं और खामोश निगाहें जैसी फिल्मों में काम किया।

उन्होंने 1945 और 46 में लाहौर में करीब 22 फिल्मों में काम किया, लेकिन 1947 में विभाजन के कारण उनके कैरियर को अल्प विराम लग गया था। इसके बाद उन्होंने 1948 में देव आनंद और कामिनी कौशल की जिद्दी के साथ बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत की।

दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर की 50 और 60 के दशक की फिल्मों में प्राण खलनायक के रूप में नजर आने लगे। दिलीप कुमार की आजाद, मधुमति, देवदास, दिल दिया दर्द लिया या देव आनंद की जिद्दी, मुनीमजी और जब प्यार किया से होता है और राज कपूर की आह, जिस देश में गंगा बहती है और दिल ही तो है में उनके अभिनय को काफी सराहा गया।

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