सुशील से बात करने को तरस गई मां
मला देवी को अहसास नहीं था कि ओलपिक पदक विजेता की मां होने की कीमत इस कदर चुकानी पड़ेगी। बीजिंग ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीत सोमवार को आधी रात के बाद स्वदेश लौटे सुशील को दुलारने का इंतजार...
मला देवी को अहसास नहीं था कि ओलपिक पदक विजेता की मां होने की कीमत इस कदर चुकानी पड़ेगी। बीजिंग ओलंपिक में कुश्ती में कांस्य पदक जीत सोमवार को आधी रात के बाद स्वदेश लौटे सुशील को दुलारने का इंतजार करती रह गईं कमला देवी मंगलवार की सुबह लगभग पौने नो बजे सुशील दो-तीन मिनट के लिए नजफगढ़ क्षेत्र से सटे बापरोला गांव स्थित अपने घर पहुंचे थे। इससे पहले की मां की आंखें अपने लाल को ठीक से निहार पातीं वह भीड़ में गायब हो गया। यह पूछने पर कि क्या बेटे को आलू के परांठे खिलाए? कमला देवी ने कहा, अभी मौका ही कहां मिल पाया है। सुबह दो मिनट के लिए घर आया था और खड़े-खड़े ही निकल गया। मैं तो कुछ कर भी न पाई। फिर उसे हाथी पे बैठा कर गांव में जुलूस निकाला गया और वहां से छत्रसाल स्टेडियम के लिए चला गया। पता नहीं रात को घर पहुंचेगा या नहीं। सुशील की मां को मालूम नहीं था कि दिल्ली लौटने के बाद उनका बेटा अपने चाहने वालो से इस कदर घिरा रहेगा कि, वह उससे कुछ देर बात करने को भी तरस जाएंगी। लेकिन अपने सुशील की उपलब्धि पर बापरोला गांव में जश्न थमने का नाम नहीं ले रहा था। हाथी पर अपने गुरु महाबली सतपाल के साथ बैठे सुशील को देखने के लिए छोटे बच्चों से लेकर बड़े बुजुर्ग भी साथ-साथ चल बधाइयां दे रहे थे। सुशील के चाचा राकेश सोलंकी ने कहा - सुशील घर तो आया लेकिन उसे कुछ खाने का मौका ही नहीं मिल पाया। वो बहुत थक गया था, गर्मी और उमस उस पर हाारों लोगों की भीड़ के बीच हाथी पर बैठा कर डेढ़ घंटे तक पूर इलाके में घुमाया गया था। वह काफी थकान महसूस कर रहा था। रात को हवाई अड्डे से घर पहुंचने में ही कई घंटे लग गए। दो हाार गाड़ियों का जुलूस था। घर आने से पहले हम उसे पालम गांव स्थित अपने कुछ देवता के दादादेव मंदिर ले गए थे। पता नहीं उसकी घर वापसी कब होगी। सुबह उसके जाने के बाद से ही सब घरवाले सो गए थे और शाम को ही उठे हैं।