42 फीसदी जनता गरीबी रेखा से नीचे
गरीबों को भारी सब्सिडी बोझ के चलते भले ही वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के बजट अनुमान लडख़ड़ा गये हों लेकिन फिलहाल विश्व बैंक ने नीति निर्धारकों को खुशी का सबब दे दिया है। विश्व बैंक (डब्ल्यूबी)के मुताबिक...
गरीबों को भारी सब्सिडी बोझ के चलते भले ही वित्त मंत्री पी.चिदंबरम के बजट अनुमान लडख़ड़ा गये हों लेकिन फिलहाल विश्व बैंक ने नीति निर्धारकों को खुशी का सबब दे दिया है। विश्व बैंक (डब्ल्यूबी)के मुताबिक भारत में एक डॉलर रोाना से भी कम पर गुजर-बसर करने वालों की संख्या में दो फीसदी की कमी आ गई है। वैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गरीबी के लिए तय मानक 1.25 डॉलर प्रतिदिन की आय के आधार पर भारत की कुल जसंख्या का 42 फीसदी हिस्सा गरीबी की रखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है। बैंक के मुताबिक यह कमाल वर्ष 2005 तक के पहले तीन सालों के दौरान हुआ है। अब इस उपलब्धि सेहरा अपना माथे बांधने के लिए एनडीए और यूपीए दोनों में विवाद हो सकता है। ध्यान रहे के वर्ष 2004 में यूपीए के सत्तारूढ़ होने से पहले एनडीए सरकार सत्ता में थी। विश्व बैंक के ताजे आंकड़ों के मुताबिक एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में भारत की आर्थिक विकास रफ्तार से तेजी से बढ़ी है और इस अवधि में यह सात फीसदी से ऊपर रही है। बैंक के मुतबिक इस अवधि में गरीबों की संख्या दो फीसदी कम होकर 24.3 फीसदी के स्तर पर आ गई है। मतलब यह कि वर्ष 2002 से वर्ष 2005 के दौरान लगभग लाख गरीब वास्तव में गरीबी की रखा से ऊपर आ गये। अगर 1.25 डॉलर रोना की आय को मानक को आधार माने तो इस अवधि के दौरान 47 लाख गरीब बीपीएल श्रेणी से ऊपर आ गये। विश्व बैंक के अनुसार सर्वाधिक गरीब 10-20 देशों में औसत गरीबी रखा 1.25 डॉलर प्रतिदिन आय की ही है। आंकड़ों के मुताबिक दुनिया में 1.4 अरब लोग ऐसी ही गरीबी झेल रहे हैं और चिंताजनक बात यह है कि इनमें 33 फीसदी भारतीय हैं। वहीं दूसरी ओर गरीबी के स्तर को दो डॉलर रोाना की आय के आधार पर देखा जाता है तो काफी चिंताजनक पहलू सामने आता है। इसके मुताबिक दुनिया के एक तिहाई गरीब सिर्फ भारत में ही हैं। हालत कई अफ्रीकी देशों से भी बदतर है। इसके मुताबिक भारत में ऐसे लोगों की संख्या 82.80 करोड़ है जो कुल जनसंख्या का तीन-चौथाई से भी ज्यादा है। जबकि कई छोटे अफ्रीकी देशों की जनसंख्या का सिर्फ 72 फीसदी हिस्सा इस आय स्तर पर आता है।