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अमेरिकी राजनीति में जगह बनाती महिलाएं

इस बार हिलेरी क्िलंटन अमेरिकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार नहीं बन पाईं। लेकिन उनकी मौजूदगी ही अर्थवान है। हिलेरी से नफरत करने वाले कितना ही चाहें कि वे दृश्य से ओझल हो जाएं, न डेमोक्रेट्स न रिपब्लिकन...

 अमेरिकी राजनीति में जगह बनाती महिलाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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इस बार हिलेरी क्िलंटन अमेरिकी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार नहीं बन पाईं। लेकिन उनकी मौजूदगी ही अर्थवान है। हिलेरी से नफरत करने वाले कितना ही चाहें कि वे दृश्य से ओझल हो जाएं, न डेमोक्रेट्स न रिपब्लिकन वैसा होने देंगे। अलास्का की गवर्नर सारा पॉलिन को उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार की तरह चुन कर रिपब्लिकन उम्मीदवार जॉन मैकेन ने यह दिखा दिया है कि हिलेरी के समर्थकों को रिझाने के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं। कई हिलेरी समर्थक उनके प्रचार में शामिल हो गए हैं। बराक ओबामा और डेमोक्रेट्स भी जानते हैं कि एक करोड़ अस्सी लाख हिलेरी समर्थक वोटरों में बहुत सी महिलाएं हैं, अपनी तरफ रखने के लिए मेहनत करनी पड़ेगी। हमार देश में यह विचित्र है कि कोई स्पष्ट महिला वोट की अवधारणा नहीं है। अमेरिका में महिला वोट चुनावों में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है और अगले राष्ट्रपति चुनावों में वह खास तौर पर महत्वपूर्ण होगा। लेकिन महिलाएं जो हिलेरी की समर्थक सिर्फ इसलिए नहीं थीं कि वे महिला हैं, बल्कि इसलिए भी थीं क्योंकि गर्भपात जसे कई महिलाओं के मुद्दे पर वे एक मत थीं, वे महिलाएं अब एक ऐसे पुरुष और महिला के साथ क्यों हैं जो गर्भपात विरोधी हैं और इराक युद्ध के समर्थक हैं। इसका कारण हमें अमेरिका में महिलाओं की नई पीढ़ी में ढूंढना होगा, जो परिवर्तन इस देश में हमें पता नहीं चलता। अमेरिका में महिला आंदोलन ने महिलाओं के कई अधिकारों के लिए कड़ा संघर्ष किया। जिन महिलाओं ने यह संघर्ष किया, उनकी बेटियां अब कामकाजी हो गई हैं। ऐसी महिलाएं जिनमें यह आत्मविश्वास है कि उन्हें महिला होने के लिए ग्लानि का भाव रखना जरूरी नहीं है। इस वजह से महिला अधिकारों की उनकी समझ उनकी मांओं की पीढ़ी से अलग है। यह उस अलग यथार्थ से पैदा हुई है जिसमें उन्हें रहना है। यह समझ कम कट्टर और ज्यादा व्यावहारिक है। यह पुरुष विरोधी नहीं है। दूसरी ओर जिन बड़ी उम्र की महिलाओं ने हिलेरी का समर्थन किया वे इस बात से नाराज हुईं कि उनकी उम्मीदवार के साथ र्दुव्‍यवहार हुआ, उसका अपमान हुआ क्योंकि वह महिला थी और अंत में वह हार गई। इसमें उन्हें अपने उस संघर्ष की छवि दिखाई दी जो उन्होंने दशकों तक किया था। फ्रीलांस पत्रकार और ‘न्यू गर्ल ऑन द जॉब : एडवाइस फ्रॉम द ट्रेंचेज’ की लेखिका हत्रा सैलिग्सन का ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ (31 अगस्त, 2008) में छपा लेख उन चुनौतियों की बात करता है जो अमेरिका में बीस से बड़ी उम्र की महिलाओं के सामने होती है। और उनके निष्कर्ष संभवत: उन महिलाओं के बीच फर्क को रखांकित करते हैं जो ओबामा की समर्थक हैं या जिन्होंने हिलेरी के हार जाने के बावजूद ओबामा को पूरा समर्थन देने का तय किया है और वे महिलाएं, जो इस स्थिति को स्वीकार नहीं करतीं। इस देश की युवा महिलाएं, खास तौर पर शहरी शिक्षित महिलाएं, उनके लेख में कुछ अपनी बात पा सकती हैं। सैलिग्सन कहती हैं कि बड़े होते वक्त और कॉलेज में उन्हें कोई सामाजिक लैंगिक भेदभाव नहीं दिखा। वह ‘गर्ल पॉवर’ का जमाना था, लड़कियां पढ़ाई में बेहतर कर रही थीं, वे एक-दूसर की मदद करती थीं और उनमें एकता की भावना थी। फिर ये औरतें कर्मक्षेत्र में आईं और उन्होंने पाया कि इसके लिए उनकी तैयारी नहीं थी। एक, जो एकता कॉलेज में लड़कियों में सहा रूप से थी वह दफ्तरों के जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा युक्त माहौल में नहीं थी। करियर पहले नंबर पर था, साथियों की मदद करना बाद में। उन्हें दूसरी पीढ़ी के पुरुषों का सामना करना पड़ा, जो ‘गर्ल पॉवर’ और महिला अधिकार आंदोलन से बेखबर थे। वे पुरुष अब भी किसी महिला कर्मचारी से वही सब चाहते थे, कॉफी सर्व करना और फोटो कॉपी करना, चाहे उसका ओहदा कुछ भी हो, सैलिग्सन के शब्दों में ‘अस्स्टिंटाइड’ हो। लेकिन इस यथास्थितिवादी यथार्थ के खिलाफ उग्र विरोध करने की बजाय, सैलिग्सन जसी महिलाओं ने समझा कि उन्हें कई ‘स्त्रियोचित’ प्रवृत्तियों को कुंद करने वाले नए कौशलों की दरकार थी। कॉलेज के सुरक्षित, स्वायत्त माहौल में रह कर वे इन जरूरी, असली दुनिया के कौशल नहीं जानती थीं। और ये ‘कौशल’ कौन-कौन से हैं? सैलिग्सन के मुताबिक ये हैं- मोटी खाल विकसित करना, आत्मप्रचार से संकोच न करना, सौदेबाजी करना सीखना, एक प्रोफेशनल नेटवर्क बनाना और ‘परफेक्शनिस्ट’ होने की कोशिश न करना। सैलिग्सन कहती हैं कि ‘संवेदनशीलता’, जिसे आमतौर पर एक अच्छा स्त्रियोचित गुण माना जाता है वह दफ्तरों में अक्सर उपयोगी नहीं होता। मैं अक्सर संपादकों के तीखे ई-मेल से विचलित हुई हूं, ऐसे एजेंट हैं जो अक्सर कहते थे कि मेरी कोई किताब कभी नहीं छप सकती, ऐसे अधिकारी थे जो डांटते थे कि मैं ‘बारीकियों’ पर ध्यान नहीं दे रही हूं। मेरा ख्याल है कि सफल होने के लिए, बल्कि सिर्फ बने रहने के लिए आपको रोमर्रा के रूखेपन से अप्रभावित होना सीखना होगा, उसे काम का एक हिस्सा मानना होगा। सेलिग्सन का कहना है कि दूसरा ‘कौशल’ जो उन्होंने सीखा वह था आत्मप्रशंसा का। मैंने खुद को यह मानने के लिए तैयार किया कि मेर काम के दो हिस्से हैं। पहला हिस्सा सचमुच काम करना है और दूसरा हिस्सा उसके बार में शेखी बघारना है, खास तौर पर ‘बॉटम लाइन’ के मुहावर में। और आखिरकार तनख्वाह का मुद्दा है, इस अर्थ में कि आप किसी नौकरी में कितना पाने के ‘हकदार’ हैं यह मुद्दा बड़ी उम्र की महिलाएं भी समझ सकती हैं। महिलाएं अक्सर यह मान बैठती हैं कि उन्हें उतना मिलेगा जिसकी वे ‘हकदार’ हैं। परिणामस्वरूप, वे अक्सर अपने उन पुरुष सहकर्मियों से कम पैसा पाती हैं, जिन्हें ज्यादा की मांग करने में कोई संकोच नहीं होता। जब तनख्वाह बढ़ने का वक्त आता है तब भी महिलाएं मांगने में संकोच करती हैं, पुरुष मांग करते हैं और करते रहते हैं। उनका कहना है कि महिलाएं पुरुषों से कम क्यों पाती हैं और बात उन्हें तब समझ में आई, जब हार्वर्ड बिजनेस स्कूल की रिटायर्ड प्रोफेसर मायरा हर्ट ने उनसे कहा- आम तौर पर महिलाएं समझती हैं कि कार्यक्षेत्र में एक योग्यता आधारित तंत्र है, लेकिन ऐसा नहीं है। हिलेरी क्िलंटन एक ऐसी महिला हैं जिन्हें यह सच्चाई मालूम है। इसलिए वे सौदेबाजी और समझौतों के जरिए राजनीति में सबसे ऊपर या लगभग सबसे ऊपर पहुंचीं। उन्हें युवा महिलाओं का समर्थन खोना पड़ा क्योंकि वे उनसे वैसा होना चाहती थीं जसा वे जानती थीं कि वे खुद नहीं बन सकती। लेकिन आज उन्हें मानना होगा कि हिलेरी क्िलंटन की वजह से उनके लिए सबसे कठिन कार्यस्थल, अमेरिकी राजनीति में जगह बनी है। लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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