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कितने मुगालते में हैं घरों के ख्वाहिशमंद

आखिर डेढ़ महीने तक चले डीडीए के ‘सपनों का घर’ के ड्रामा का पटाक्षेप हो गया और इसे जुआ मानने वाले अपने घर के ख्वाहिशमंद लोगों का भविष्य डीडीए के बक्से में बंद हो गया है पर अभी कई ऐसे सवाल हैं जिनका...

 कितने मुगालते में हैं घरों के ख्वाहिशमंद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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आखिर डेढ़ महीने तक चले डीडीए के ‘सपनों का घर’ के ड्रामा का पटाक्षेप हो गया और इसे जुआ मानने वाले अपने घर के ख्वाहिशमंद लोगों का भविष्य डीडीए के बक्से में बंद हो गया है पर अभी कई ऐसे सवाल हैं जिनका सीधा जवाब डीडीए के पास नहीं है। एक अदद घर की हसरत रखने वालों ने जसे भी हुआ लगभग 6000 रु. का जुआ खेला है और लोगों की उसी चाहत का दोहन विभिन्न बैंकों ने किया है। डीडीए को फॉर्मो की बिक्री से ही सीधे-सीधे करीब 12 करोड़ का फायदा हुआ है। इसके अलावा उसके पास जमा 5.25 अरब रु. पर करोड़ों का ब्याज मिलेगा सो अलग। लेकिन सबसे अहम सवाल यह है कि जितने लोगों ने घर के लिए आवेदन दिया है क्या सब के सब आवेदन अंतिम रूप से ‘ड्रॉ ऑफ लॉट्स’ में शामिल होंगे? इसका सीधा जवाब न तो बैंकों के पास है और न ही डीडीए के पास। यही सवाल जब हमने स्टेट बैंक की प्रीत विहार शाखा के एक अधिकारी से पूछा तो उन्होंने अपनी पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि इसका हम लिखित प्रमाण तो नहीं दे सकते पर भरोसा दिला सकते हैं कि हमार यहां से फॉर्म डीडीए को भेज दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि ड्रॉ में सभी फॉर्म शामिल होने की गारंटी तो डीडीए वाले भी नहीं दे सकते। हमने यही प्रश्न जब डीडीए के प्रवक्ता नीमो धर से पूछा तो उन्होंने खीझते हुए कहा कि ये आधारहीन है। सभी फॉर्म ड्रॉ में शामिल किए जाते हैं। हमने पूछा कि डीडीए ने कई तरह की शर्ते लगा रखी हैं। मसलन कुल आवंटित होने वाले 5010 फ्लैटों में से डीडीए चाहे तो फ्लैटों की संख्या घटा सकता है, या इस योजना को निरस्त कर सकता है तो इसमें कितनी पारदर्शिता है? इस पर उन्होंने कहा कि यह तो नियम है और लोगों की भलाई के लिए ऐसा किया जाता है। डीडीए की योजनाओं पर आज तक उंगली नहीं उठी है। ऐसी भी चर्चा है कि आरक्षित अधिकार के तहत भारी ‘प्रीमियम’ लेकर सांठगांठ से कुछ लोगों के लिए कुछ फ्लैट रिार्व कर दिए गए हैं। बहरहाल जो भी हो पर निष्पक्ष ड्रॉ होने के तमाम दावे करने वाले डीडीए में पारदर्शिता की कमी से सवाल उठने वाजिब हैं। इतना तो तय है कि घरों के ख्वाहिशमंदों का चाहे जो भी हो पर बाकी एजेंसियां तो मालामाल हो ही गईं।ं

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