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बाबूजी धीरे चलना, सड़क पे जरा संभलना

‘बाबूजी धीर चलना, सड़क पे जरा संभलना।’ अगर आप राजधानी की सड़कों पर हैं तो यह जुमला गांठ बांध कर साथ रखियेगा। सतर्कता हटी और दुर्घटना घटी। हादसों की चपेट में आप कब, कहां और कैसे आ जाएंगे, पता भी नहीं...

 बाबूजी धीरे चलना, सड़क पे जरा संभलना
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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‘बाबूजी धीर चलना, सड़क पे जरा संभलना।’ अगर आप राजधानी की सड़कों पर हैं तो यह जुमला गांठ बांध कर साथ रखियेगा। सतर्कता हटी और दुर्घटना घटी। हादसों की चपेट में आप कब, कहां और कैसे आ जाएंगे, पता भी नहीं चलेगा। राजधानी के एकमात्र ट्रैफिक थाने का आंकड़ा इस तल्ख सच्चाई पर मुहर लगाता है। पिछले करीब पौने 8 वर्षो के दौरान राजधानी की सड़कों पर हुई दुर्घटनाओं में 621 लोग दम तोड़ चुके हैं जबकि 1647 घायल हुए। बीते वर्ष 2007 में तो ‘रिकॉर्ड’ 102 जानें गई जबकि 244 को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस वर्ष नौ महीने में सिर्फ यातायात थाने के क्षेत्राधिकार में हुए हादसों में 63 लोगों को जिंदगी से हाथ धोना पड़ा जबकि 155 लोग घायल हो गये। अगर इसमें पटना सिटी और दानापुर क्षेत्र को भी जोड़ लिया जाये तो मृतकों की संख्या सौ पार जायेगी।ड्ढr ड्ढr इधर बल व संसाधनों की कमी से जूझ रही यातायात पुलिस के लिए स्थिति संभालना आसान नहीं दिख रहा है। गौर करने वाली बात यह भी है कि ज्यादातर दुर्घटनाएं रात में उस समय होती है जब ट्रैफिक पुलिस की ड्यूटी ही नहीं होती। दूसरी तरफ राजधानी की ‘वीवीआईपी’ सड़कों में शुमार बेली रोड की बात करं या फिर शहर के बाहरी हिस्से से गुजरने वाली न्यू बाइपास सड़क की। आज की तारीख में शहर की कई सड़कें ‘डेंजर जोन’ के रूप में तब्दील हो चुकी हैं। इन रास्तों पर सिर्फ ड्राइविंग करने वाले या गाड़ियों में बैठे लोगों पर ही नहीं बल्कि पैदल राहगीरों पर खतरे के बादल मंडराते रहते हैं।ड्ढr विशेष कर देर रात सड़क के बीचोंबीच डिवाइडर, गोलंबर, चौराहा या फूटपाथ पर सोने वाले हजारों मजदूर-गरीबों की जिंदगी दांव पर लगी रहती है। नशे की हालत में ड्राइविंग, अनियंत्रित रफ्तार, एक-दूसर से आगे निकलने की होड़ समेत कई अन्य कारणों ने मिल कर समस्या को नासूर बना दिया है।ं

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