सहमा है बीहड़ में बिरहोरों का गांव हिंदीयाकला
चतरा के हिंदीयाकला गांव में आजादी के बाद पहली बार सब कुछ नया-नया हो रहा है। बीहड़ में बसे हिंदीया में आठ बिरहोरों की मौत के बाद लोग सहमे हैं। घटना के बाद पहली बार एसडीओ और बीडीओ को गांव वालों ने...
चतरा के हिंदीयाकला गांव में आजादी के बाद पहली बार सब कुछ नया-नया हो रहा है। बीहड़ में बसे हिंदीया में आठ बिरहोरों की मौत के बाद लोग सहमे हैं। घटना के बाद पहली बार एसडीओ और बीडीओ को गांव वालों ने देखा। चुनाव में भी कभी कोई नेता हिंदीया कला नहीं गया था। पहली बार विधायक राधाकृष्ण किशोर और सत्यानंद भोक्ता पहुंचे। डीसी-डीडीसी की लोग अब भी राह देख रहे हैं। किशोर कहते हैं, हिंदीयाकला सरकार के लिए चुनौती है। जब तक ऐसे बदहाल गांव राज्य में रहेंगे, अलग झारखंड राज्य का सपना पूरा नहीं हो सकता।ड्ढr प्रतापपुर प्रखंड से 28 किमी दूर बीहड़ में बसे हिंदीया तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। उग्रवादियों का यह गढ़ भी है। घने जंगल-पहाड़ के रास्ते जान जोखिम में डाल सिर्फ बाइक से वहां पहुंचा जा सकता है। यहीं से पलामू के मनातू और गया की सीमा भी मिलती है। उधर, आठ मौतों के बाद प्रशासन ने सभी बिरहोर परिवार को 42-42 किलो अनाज दिया, लेकिन वहां आगे कोई दुखद घटना नहीं हो, इसकी कोई व्यवस्था नहीं की है। स्वास्थ्य केंद्र गांव से 13 किमी दूर नारायणपुर में है।