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महंगाई तले आम आदमी पिसता जाये, तो माल किसे बेचोगे? शायद इसी सवाल का जवाब तलाश लिया है बाजार ने। दाम वही, वजन मार लो! डिटरोंट पैक से बिस्किट तक। इस नये बाजारू फॉरमूले का संदेश यही तो है- निवाले कम...

 
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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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महंगाई तले आम आदमी पिसता जाये, तो माल किसे बेचोगे? शायद इसी सवाल का जवाब तलाश लिया है बाजार ने। दाम वही, वजन मार लो! डिटरोंट पैक से बिस्किट तक। इस नये बाजारू फॉरमूले का संदेश यही तो है- निवाले कम करो। सरकारी अर्थशास्त्री इस महंगी को ग्लोबल इम्पैक्ट बताकर मामला रफा-दफा करने की फिराक में हैं। लेकिन, यहां तो हर एक-आध किलोमीटर पर तेल, दाल, चावल की कीमतें बदल जाती हैं। कॉमोडिटी सटोरियों, जमाखोरों की करतूतों को मौसमी फसल के ‘फलसफे’ से ढक दिया जाता है। फसल आयेगी, सरकारी कीमतें घटेंगी। लेकिन, उपभोक्ता बेचार को कहां मिलता है उसका लाभ। सालों-साल से यही सब तो भोग रहा है वह। हुक्मरानों चेत जाओ! एक और मौसम आने को है- वोट का।

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