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भला हो ‘कोचिंग’ का

भी आपने विचार किया कि यदि कोचिंग नहीं होती, तो आज काम कैसे चलता। जिसने भी कोचिंग का आविष्कार किया था, वह अवश्य ही असामान्य खोपड़ी का मालिक होगा। उसने अपनी दूरदृष्टि से देखा होगा कि भविष्य में कोचिंग...

 भला हो ‘कोचिंग’ का
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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भी आपने विचार किया कि यदि कोचिंग नहीं होती, तो आज काम कैसे चलता। जिसने भी कोचिंग का आविष्कार किया था, वह अवश्य ही असामान्य खोपड़ी का मालिक होगा। उसने अपनी दूरदृष्टि से देखा होगा कि भविष्य में कोचिंग की व्यवस्था देना उपयुक्त रहेगा। यूं तो कोचिंग आदिकाल से चली आ रही है। रामायाण काल में वशिष्ठ ने राम-लक्ष्मण को, महाभारत काल में द्रोणाचार्य ने पाण्डवों-कौरवों को कोच किया था और कोच-कोच कर इस लायक बना दिया था कि आज भी दुनिया उन्हें अपना आदर्श मानती है। चाणक्य ने एक बालक को कोच करके चन्द्रगुप्त बना दिया। उसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुए आज के कोच हीर-रांझा, लैला-मजनू, सीरी-फरहाद बनाने में जुट गए हैं। मेरे एक मित्र ने कोचिंग क्लासेस खोली। उद्देश्य था कि विद्यार्थियों को अतिरिक्त ज्ञान देकर देश सेवा हेतु तैयार करंगे। एक गलती कर गए और कोचिंग बंद करनी पड़ी। गलती यह थी कि उनकी कोचिंग के बोर्ड पर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा था- केवल छात्रों के लिए। उनकी निराशा को दूर करने के लिए हमने उन्हें को-कोचिंग का सुझाव दिया। साथ ही यह भी कहा कि देश सेवा का ठेका नेताओं के पास है, आप इस जहमत में न पड़ते हुए ‘पण्डित को दक्षिणा से काम, वर मर या कन्या’ की तर्ज पर कोचिंग चलाएं। वे मान गए और आज चक छान रहे हैं। विद्यालय सरकारी हों या निजी, सभी के शिक्षकों को शिक्षण के अतिरिक्त अन्य कामों में महारत हासिल रहती है। निजी विद्यालयों में मालिक के आदेश का पालन करने के बाद जो थोड़ा-बहुत समय मिलता है उसमें शिक्षक हाजिरी भरते हैं और छात्रों को पानी-पेशाब की छुट्टी देते हैं। उनके नाखून, जूते, टाई और ड्रेस चेक करते हैं।सरकारी विद्यालयों में भर्ती, खारिा, परीक्षा फार्म, वजीफा, पल्स-पोलियो, राशन कार्ड, निर्वाचन नामावली आदि आवश्यक कार्यो से अवकाश मिलने पर शिक्षक खुद अवकाश पर चले जाते हैं। भला हो कोचिंग वालों का जो बिना किसी भेदभाव के सभी विद्यालयों के बच्चों को शिक्षित कर रहे हैं और विद्यालयों के परिणामों का प्रतिशत वर्ष-दर-वर्ष बढ़ा रहे हैं। बदले में बेचार 10 माह के मात्र चार-पांच हाार रुपए ही तो लेते हैं। इसे कहते हैं सच्ची देश सेवा। बिना किसी नाम की इच्छा के, केवल दाम के सहार 12-12 घण्टे तक दम मारने वाले कोचिंग क्लास संचालकों को सादर प्रणाम।ं

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