सावधान! ओबामा का स्टॉक ओवरप्राइस्ड
ओबामा की बिकवाली तुरत कर दें, यह स्टॉक ओवरप्राइस्ड है, और बाजार पर इन दिनों पागलपन तारी है। अगर वह राष्ट्रपति बने, तो मुझे लगता है अगले फागुन तक यह सतरंगा बुलबुला फूट भी सकता है। चार साल पहले जब...
ओबामा की बिकवाली तुरत कर दें, यह स्टॉक ओवरप्राइस्ड है, और बाजार पर इन दिनों पागलपन तारी है। अगर वह राष्ट्रपति बने, तो मुझे लगता है अगले फागुन तक यह सतरंगा बुलबुला फूट भी सकता है। चार साल पहले जब मैंने युवा ओबामा के संस्मरण पढ़े तो मुझे लगा कि यह बंदा राष्ट्रपति बन सकता है। युवाकाल के नेलसन मंडेला की तरह ही उसमें भी आसन्न नेतृत्व की चमक साफ दिखती थी। उनके सरोकार, उनकी भाषण-क्षमता, बुद्धि और ऊरा सामान्य से कहीं ऊपर थी, और इस मायने वह विलक्षण रूप से अमेरिका के स्वप्नों का प्रतीक बन कर उभरे। आज शेष दुनिया, जिसका अमेरिकी चुनावों से एक सीधा और कष्टकर रिश्ता है, ओबामा की विजय बीस से साठ फीसदी की बढ़त के साथ चाहती है। यह ठीक है कि ये लोग मतदान नहीं कर सकते, लेकिन अमेरिका की जनता का एक स्पष्ट भाग भी ओबामा की जीत चाहता है, अलबत्ता जीत का मार्जिन वह इतना बड़ा नहीं चाहता। दुनिया ओबामा की जीत यूँ चाहती है कि वे अश्वेत हैं, पर अमेरिकी उनकी जीत इसलिए चाहते हैं कि वे रिपब्लिकन नहीं। दोनों ही वजहें गड़बड़ हैं। ज्यादातर अमेरिकी जब कभी एशिया-अफ्रीका की यात्रा करते हैं, तो अमेरिका के प्रति वहाँ व्याप्त दुर्भावना से चकित रह जाते हैं। यह दुर्भावना कई बार तर्क से विमुख और एक किस्म के उत्कट नस्लवाद पर आधारित भी होती है। इसकी मार्फत एक बदसूरत अमेरिकी का पुराना मिथक फिर पुष्ट होने लगा है। पर वही यात्री तब दोबारा चकित होता है, जब उसे बताया जाता है कि ओबामा को राष्ट्रपति पद मिलना तमाम तरह के कष्टों का निवारण कर देगा। वजह यह नहीं कि ओबामा युद्ध विरोधी या फिलिस्तीन समर्थक या वाम या दक्षिणपंथी हैं, बल्कि यह कि उसका जन्म और पैदाइश उसे गैर-अमेरिकी बनाती है। मजे की बात यह, कि ओबामा ने इस तथ्य को सिर से नकारा है। शेष विश्व में ओबामा की छवि दलित-पिछड़े समूहों के सरमाएदार की है। लेकिन उनकी बोली-बानी और तौर-तरीके इस के विपरीत हैं। वे अश्वेत हैं और उनका नाम भी इसे रखांकित करता है। वे अमेरिका के पूर्वी तट की श्वेत एंग्लो सैक्सन बिरादरी के साम्राज्य के अंत का प्रतीक हैं। पर इस मायने में वे विश्व बिरादरी के चहेते भले हों, उपरोक्त तथ्य औसत अमेरिकी को काफी हद तक असहा भी बनाते हैं। अगर वे न चुने गए तो निस्संदेह काफी शोक-क्रोध व्यक्त किया जाएगा, लेकिन ओबामा एक प्रतीक नहीं, एक मनुष्य और राजनेता हैं। उन्हें पता है कि पद संभालने का अर्थ अच्छे भाषण देने और पदासीन सरकार की कमजोरियां गिनाने से नहीं आगे जाता है। उन्हें पद पर बैठते ही उस विश्व वित्तीय व्यवस्था के मलबे से जूझना होगा, जिसकी जड़ें अमेरिकी बाजारों के अकुशल संचालन में हैं। चूंकि इस दौरान सेनेट में वे भी पदस्थ थे, दोष के छींटे उन पर भी आते हैं। ओबामा को बाजार और व्यापार में लोगों का भरोसा बहाल करना होगा। उन्हें उस देश के लिए स्वास्थ्य और कल्याण का समुचित इंतजाम करना होगा जहाँ के गरीब छँटनी की गिरफ्त में आकर तीसरी दुनिया जसी फटेहाली जी रहे होंगे। जो लाखों अमेरिकी उन्हें मसीहा मानने लगे हैं। उन लाखों को निराशा भी हाथ लग सकती है। विदेशों के प्रसंग में ओबामा को एक नहीं दो युद्धों का खात्मा करना होगा और योरोप से हिमालय तक फैली अमेरिकी राजनय की अदूरदर्शी अकुशलता पर बाँध बाँधना होगा। उम्मीदों की यह गठरी बहुत भारी और अस्वाभाविक है। ओबामा का निजी करिश्मा और वक्तृता आने वाले वक्त में उनकी मदद जरूर करंगे, पर उनकी घोषित नीतियां नहीं। उनकी इराक से दामन छुड़ाने की कामना बुश सरकार से या वर्तमान इराकी सरकार की इच्छा से अलग-थलग है। दूसरी ओर उनकी सार्वजनिक तौर से अभिव्यक्त इच्छा एक हद तक जोखिमभरी है। ओबामा ने पाकिस्तान के (और शायद अब सीरिया के भी) चुनींदा निशानों पर बम बरसा कर और हमलावर फौों भेज कर वहाँ स्थित परमाणु ठिकानों को महफूा बनाने का प्रस्ताव भी रखा है। उन्होंने ईरान से समझौता करने के इरादे पर पलटी खाई है, और रूस के प्रति हेकड़ी भरी चुनौतियां उछालने का भी विरोध नहीं किया है। घरलू स्तर पर ओबामा के वक्तव्य और उन का वोट देने का रिकॉर्ड प्रमाणित करता है, कि वे कर लगाने, खर्चा करने और सीमाशुल्क के मामलोंे को लेकर एक परंपरावादी डेमोकेट्र हैं। अमेरिकी दृष्टि से यह तेवर भले ही ठीकठाक हों, लेकिन शेष दुनिया के लिए अमेरिकी हितों को लेकर एक अतिरिक्त रूप से सजग राष्ट्रपति की आमद भेजे में गोली की तरह अवांछित होगी । दुनिया को विश्व व्यापार में खुलापन न्योतने वाला और शेष विश्व के उत्पादों के आयात को प्रोत्साहन देने वाला अमेरिका चाहिए, जो ओबामा को स्वीकार्य नहीं लगता। एक बड़ा जोखिम और है। वह यह, कि कई बार क्िलंटन या टोनी ब्लेयर जसे उदारवादी नेता राजनीति के दबावों की तहत अनुदान आचरण पर मजबूर होते रहे हैं। डेमोकैट्रिक कांग्रेस के शीर्ष पर एक डेमोकैट्र राष्ट्रपति भी कहीं आतंकवाद के तुष्टीकरण की राह न पकड़ लें। हर नया नेता बदलाव लाने की कसमें खाता है। ओबामा भी खुद को अमेरिकी राजनीति में क्रांतिकारी बदलाव का प्रतीक बता रहे हैं। पर उनका विगत रिकॉर्ड क्रांतिकारी नहीं रहा है वे हथियार धारण करने के पक्ष में भी रहे हैं और बस उनका रंग ही है जो उनको किसी श्वेत डेमोकैट्र उम्मीदवार से फर्क बना रहा है। उनके और उनके प्रतिद्वंद्वी मैककेन के बीच अमेरिका अपनी ताजा चुनौतियों से कैसे निबटे इसको लेकर कोई खास मत-भिन्नता नहीं दिखाई देती। आज के वॉशिंगटन में सामान्य प्रतिभा भी क्रांतिकारी रूप से उाली दिखाई देगी। ..इसलिए ओबामा के जीतते ही बिजली की कौंध की तरह दुनिया को यह संदेश जाएगा कि वे अमेरिका की मलिन छवि को रातोंरात उाली और काबिलेतारीफ बना देंगे। और एक बार फिर उसे विश्व का सिरमौर बना कर रिपब्लिकन युग के कट्टर राष्ट्रवाद का विसर्जन कर देंगे। पर ओबामा ने अब तक कौशल का प्रदर्शन निजी और सांगठनिक मोर्चो पर ही किया है। व्हाइट हाउस में सिक्का बिठाने के लिए जरूरी अतिमानवीय गुणों की जरूरत होगी। यहाँ ओबामा से लगाई गई ऊँची-ऊँची उम्मीदों पर उनका तनिक भी खरा न उतरना गहरी खीझ को जन्म दे सकता है। 2000 में ओबामा की विफलता (वह चाहे जिस तरह से हो) दिल तोड़ने वाली प्रमाणित हो सकती है, और वह उनकी चुनावी जीत और उन मूल्यों जिनके लिए वे लड़ रहे हैं, पर पानी फेर सकती है। इसलिए उनके समर्थकों से अनुरोध है कि वे अभी ओबामा को लेकर स्फीतिमय दावों से दूर रहें। लेखक वरिष्ठ राजनैतिक स्तंभकार हैं। दि-गार्जियन से साभार।ं