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टाइटेनिक 3डी

आप इसे संयोग कह सकते हैं कि जिस दिन आरएमएस टाइटेनिक उत्तरी अटलांटिक महासागर में डूबा (15 अप्रैल 1912) उसके ठीक सौ साल बाद उसका 3डी वजर्न (5 अप्रैल 2012) सिनेमाघरों में रिलीज (कुछ दिनों के अंतर पर)...

टाइटेनिक 3डी
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 06 Apr 2012 09:20 PM
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आप इसे संयोग कह सकते हैं कि जिस दिन आरएमएस टाइटेनिक उत्तरी अटलांटिक महासागर में डूबा (15 अप्रैल 1912) उसके ठीक सौ साल बाद उसका 3डी वजर्न (5 अप्रैल 2012) सिनेमाघरों में रिलीज (कुछ दिनों के अंतर पर) किया गया है। लेकिन इस फिल्म के निर्देशक जेम्स कैमरून के अनुसार ऐसा होना महज संयोग नहीं है, क्योंकि वह इस फिल्म के 3डी वजर्न का ऐलान तीन साल पहले (2009 के सैन डियागो कॉमिक-कॉन के दौरान) ही कर चुके थे। और इस बीच उन्हें कई बार लगा कि 3डी वजर्न को उनकी तकनीक के अनुसार बनाने में तयशुदा से ज्यादा समय लग सकता है।

हालांकि इन इन तीन सालों में कैमरून ने फिल्म में 3डी इफेक्ट्स पैदा करने के लिए 60 हफ्तों का समय लिया और उसे प्रोडय़ूस करने में 18 मिलियन का खर्च भी सहा। लेकिन इस 3डी वजर्न को देखने के बाद अहसास होता है कि उन्हें फिल्म तकनीक का पितामह यूं ही नहीं कहा जाता। अटलांटिक महासागर के तल के अंधकार को उन्होंने 3डी इफेक्ट्स में जरा भी धुंधला होने नहीं दिया। अक्सर 3डी प्रभाव में ये कमी देखी जाती है। वह डार्क शेड्स में तनाव की स्थिति-सी पैदा कर देते हैं। सीधी भाषा में कहें तो अंधेरे में उनका प्रभाव मजा कम, सजा ज्यादा लगता है। पिछले साल रिलीज हुई फिल्म दि प्रीस्ट और 2009 में आयी अंडरवर्ल्ड सिरीज की फिल्म राइज ऑफ दि लाइकंस के संदर्भ में ऐसा देखा गया है। लेकिन कैमरून ने अंडरवॉटर रोबोटिक में 3डी प्रभाव डालकर उसकी नीरसता को तोड़ा है।

1997 में आयी नॉन 3डी टाइटेनिक के मुकाबले इस फिल्म के पहले 20 मिनट अब ज्यादा प्रभावी और उत्सुकता भरे लगते हैं। महासागर के तल में पड़े टाइटेनिक से उड़ती धूल की मोटी परतें आपके चेहरे को छूती निकलेंगी। और इसके तुरंत बाद जब रोज (केट विंसलेट) अपनी कार से उतरती है तो 3डी प्रभाव की बदौलत ऐसा लगती है मानो वह केवल आप ही से मुखातिब है।

सच है, केट विंसलेंट  इस सीन में पहले से कहीं अधिक रॉयल और दिलकश लगती हैं। इस मामले में उन्होंने धूल फांकते जैक डॉसन (लियोनाडरे) को कहीं पीछे छोड़ दिया है। 3डी के असली प्रभाव जारी रहते हैं। जिन दृश्यों में संवाद हैं और मूविंग कैमरे के साथ अंधेरे-उजाले के प्रभाव हैं, उनमें 3डी की गुंजाइश कम दिखती है। लेकिन जैक और रोज के पेंटिंग वाले दृश्य में 3डी प्रभाव की कमी खलती है।

दरअसल इसके मूल वजर्न से इतर देसी वजर्न में आपत्तिजनक सीन्स को काट दिया गया है, जिसकी वजह से इस खास सीन में दृश्य काफी हिलते नजर आते हैं। यह एक बड़ी चूक है। खासतौर पर जब फिल्म के निर्देशक जेम्स कैमरून हों। क्योंकि जेम्स दुनिया के पहले निर्देशक हैं, जिन्होंने किसी फिल्म के 3डी वजर्न के लिए उसके किसी सीन को दोबारा शूट किया हो। और वो फिल्म की रिलीज के 15 साल बाद। जी हां, फिल्म के अंतिम सीन, जिसमें रोज लड़की के एक तख्ते पर बैठकर सितारों को देखती है, उसे जेम्स ने दोबारा शूट किया है।

कलाकार: लियोनाडरे डी कैप्रियो, केट विंसलेट, बिली जेन, फ्रांसिस फिशर, बिल पैक्सटन
निर्माता: जेम्स केमरून, जॉन लेंडो
निर्देशक: जेम्स केमरून
बैनर/स्टूडियो: 20 सेंचुरी फॉक्स, पैरामाउंट पिक्चर्स और लाइटस्ट्रोम एंटरटेनमेंट
संगीत: जेम्स हॉर्नर

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थ्री-डी इफेक्ट से भरपूर यह मूवी बहुत अच्छी लगी। दोबारा देखने की भी इच्छा हो रही है। अनुराधा गुप्ता, छात्र
बेहतरीन साउंड इफेक्ट के चलते फिल्म बेहद दमदार लगी। कई दृश्य तो देखते ही बनते हैं। राहुल चौहान, छात्र
बेहतरीन साउंड इफेक्ट के चलते फिल्म बेहद दमदार लगी। कई दृश्य तो देखते ही बनते हैं। राहुल चौहान, छात्र

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