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सदियों से युद्ध का हथियार है बलात्कार

उड़ीसा की एक नन ने 24 अक्तूबर को असाधारण साहस का परिचय दिया। टेलीविजन कैमरों के सामने उसने अपनी बात खुल कर रख दी। महीनों तक न कोई उसका नाम जानता था, न ही उसका चेहरा पहचानता था। फिर भी सब को इतना पता...

 सदियों से युद्ध का हथियार है बलात्कार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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उड़ीसा की एक नन ने 24 अक्तूबर को असाधारण साहस का परिचय दिया। टेलीविजन कैमरों के सामने उसने अपनी बात खुल कर रख दी। महीनों तक न कोई उसका नाम जानता था, न ही उसका चेहरा पहचानता था। फिर भी सब को इतना पता था कि जिस भयावह संकीर्ण हिंसा ने उड़ीसा को अपनी चपेट में ले रखा है, उसमें सबसे घृणित काम एक नन के साथ होने वाला बलात्कार था। हम यह भी जानते थे कि उसने अपनी इस दारुण स्थिति में भी पुलिस में एफआईआर दर्ज किया, लेकिन स्थानीय पुलिस ने उस मामले में जांच नहीं की। अब हमें यह भी जानकारी मिली कि पुलिस ने उसे एफआईआर दर्ज करने से रोका था। मेडिकल जांच में बलात्कार की पुष्टि होने के बावजूद कुछ भी नहीं किया गया। अब प्रशासन में थोड़ी बहुत हरकत हुई है, और वह भी मीडिया और नागरिक समाज के संयुक्त दबाव के बाद। नन का कहना है कि अगर उन्हीं पुलिस वालों को जांच का जिम्मा दिया गया, जिन्होंने हमला और बलात्कार करने वालों का गर्मजोशी से स्वागत करने में कोई झिझक नहीं दिखाई, तो उसे इंसाफ मिलने की उम्मीद नहीं है। हमें इस महिला की हिम्मत को सलाम करना चाहिए। बलात्कार के बाद बहुत कम महिलाएं खुलकर आती हैं, लेकिन अगर कोई आता है तो उसका यह कदम सराहनीय है। सैकड़ों महिलाएं बलात्कार की रपट ही नहीं दर्ज करातीं। फिर भी गुजरात की बिलकिस बानो ने कराई। नतीजतन बलात्कार करने वाले दोषी पाए गए। उसी तरह का साहस राजस्थान की भंवरी देवी ने भी दिखाया था, लेकिन उसके बलात्कारी बच निकले। बलात्कार का शिकार जब खुलकर सामने आता है तो यह भी खतरा बना रहता है कि उसे कभी इंसाफ न मिले और हमेशा कलंक के साथ ही जीना पड़े। इससे भी ज्यादा महत्त्वपूर्ण यह समझना है कि यह सिर्फ एक महिला या एक नन के साथ हुए बलात्कार की कहानी नहीं है। यह एक चेतावनी है कि बलात्कार युद्ध का एक हथियार है। उस महिला के साथ बलात्कार इसलिए हुआ कि उड़ीसा में ईसाइयों के खिलाफ युद्ध चला रहे लोग उन्हें ऐसा सबक सिखाना चाहते थे जो वे भूल न सकें। इसलिए उन्होंने घर जलाने, पादरी सहित लोगों को पीटने और चर्च फूंकने के अलावा उस महिला से बलात्कार करने का फैसला किया, जिसने चर्च की सेवा का संकल्प ले रखा था। हमलावरों को अपनी बात मनवाने का यह सबसे असरदार तरीका लगा। उन्होंने समझा कि इससे उनका दुश्मन हमेशा के लिए खामोश हो जाएगा। सदियों से युद्ध में इस हथियार का इस्तेमाल होता रहा है और महिलाएं किसी भी जाति, धर्म या वर्ग की हों, हमेशा से इसकी प्रमुख शिकार रही हैं। दिल्ली में नन की प्रेस कांफ्रेंस के दस दिन पहले हाारों मील दूर अफ्रीका के पश्चिमी तट पर स्थित कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य में एक और घटना घटी। कांगो में गृहयुद्ध चल रहा है। सरकारी सुरक्षा बल कई बागी समूहों से युद्ध लड़ रहे हैं। हाारों लोग विस्थापित हुए। संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना के 17000 सैनिकों की मौजूदगी के बावजूद शांति दूर-दूर तक नहीं दिखाई देती। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि दुनिया के किसी देश के मुकाबले कांगो की महिलाओं को ज्यादा यौन हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है। एक ताजा सव्रेक्षण के अनुसार हर चार वयस्क में एक व्यक्ित इस तरह की िहसा का चश्मदीद रहा है और हर छह में एक भुक्तभोगी। 12 फीसदी ने माना कि उनसे एक बार से ज्यादा यौन ज्यादती हुई है। भयावह घटनाओं के इस परिदृश्य में भी महिलाएं ज्यादती को बताने का साहस दिखा रही हैं , उन्हें यह उम्मीद रहती है कि इससे बलात्कारी पर कार्रवाई करने के लिए सरकार पर दबाव पड़ेगा। नन की तरह से उन महिलाओं को भी इंसाफ मिलने का यकीन नहीं है। फिर भी वे एसा कर रही हैं तो इसलिए कि उनके पास और कोई चारा नहीं है। इसी तरह की एक महिला ने सभा में ज्यादती का वर्णन इस प्रकार किया -‘रात का भोजन नहीं था। उनके लिए मैं ही रात का भोजन थी। उन्होंने मुझे लात मार कर जमीन पर गिरा दिया और मेर सभी कपड़े फाड़ डाले। उनमें से दो ने मेर पैर थामे। एक ने बायां और दूसर ने दायां। उन्हीं ने मेर हाथ भी थाम लिए। फिर उन दोनों के बीच उन्होंने मेरा बलात्कार शुरू किया। उसके बाद पांच लोगों ने मेर साथ बलात्कार किया।’(न्यूयार्क टाइम्स, 18 अक्तूबर 2008) आप जब यह पढ़ेंगे तो आप का सिर चकराने लगेगा, वैसे ही जसे उड़ीसा की नन के पूर बयान को पढ़ कर अनुभव होता है। ये किस तरह के पुरुष हैं ? इस तरह के अपराध कर के वे कैसे बच निकलते हैं? एसा क्यों होता है कि कानून को लागू करने वाली एजंसियों के पास दूसर दर्जनों अपराधों की जांच करने का समय तो रहता है लेकिन इस तरह की यौन िहसा की जांच को तवज्जो नहीं दिया जाता? पूर्व यूगोस्लाविया में गृहयुद्ध के दौरान 10 के दशक के अंतिम दौर में बलात्कार का युद्ध के हथियार के रूप मे इस्तेमाल किया गया। सरबियाई सैनिकों ने सैकड़ों क्रोएशियाई महिलाओं पर जुल्म ढाए। युद्ध खत्म होने के बाद उनमें से कुछ महिलाओं ने बोलने का साहस दिखाया। एम्सटर्डम में निर्वासित जीवन बिता रही उस इलाके की एक लेखिका दुबरावका उग्रेसिक ने 1में लिखा अपनी किताब कल्चर आफ लाइज(झूठ की संस्कृति) में लिखा है कि-‘युगोस्लाविया का युद्ध मर्दाना युद्ध है। इस युद्ध में महिलाओं को पोस्ट बाक्स के तौर पर इस्तेमाल करते हुए दूसर पुरुषों यानी दुश्मनों को संदेश भेजा जाता है। दुश्मन वे लोग हैं जो थोड़े समय पहले एसा करने वालों के भाई थे।’ उसके बाद उग्रेसिक एक सहयोगी के हवाले से कहती है- ‘युद्ध में बलात्कार एक सामान्य घटना है। यह पुरुष मनोविज्ञान का हिस्सा है और अतार्किक है। उम्मीद है कि तुम मुझे गलत नहीं समझोगी , पर यह एक महिला पर की गई एक नकारात्मक टिप्पणी है, यह एक तरह की विकृत किस्म की यौन गलती है।’ ‘एक विकृत यौन गलती?’ मुझे नहीं लगता कि उड़ीसा की नन या कांगो की महिला अपने पर किए गए हिंसक हमले को एक यौन गलती भर मानेंगी। यह यदा-कदा होने वाले काम नहीं है। वे तात्कालिक भावनाओं से संचालित नहीं होते। वे एसे संकीर्ण दिमाग की उपज हैं जो दुश्मन को इंसान से कमतर मानता है विशेषकर दुश्मन की औरतों को। औरतों को मारना या उनसे बलात्कार करना एक भूल के तौर पर नहीं देखा जाता बल्कि वह जिसे जायज युद्ध मानता है और ‘पराक्रम’ समझता है। लेखिका स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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