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टेलीविजन: सीरियल पीड़ित दर्शक का पत्र

प्रधानमंत्री जी आपको और हमको भी, बधाई कि मान्य मुंशीजी की अस्वस्थता के दौरान सूचना मंत्रालय आपके ज़ेरे इनायत चलेगा। मैं इस बात से बावस्ता हूं कि देश के आप जैसे अदीमुलफुर्सत राजनेता का इस मंत्रालय को...

 टेलीविजन: सीरियल पीड़ित दर्शक का पत्र
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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प्रधानमंत्री जी आपको और हमको भी, बधाई कि मान्य मुंशीजी की अस्वस्थता के दौरान सूचना मंत्रालय आपके ज़ेरे इनायत चलेगा। मैं इस बात से बावस्ता हूं कि देश के आप जैसे अदीमुलफुर्सत राजनेता का इस मंत्रालय को अपनी देखरेख में रखना बिलावजह नहीं है। जैसा सामान्य पढ़े-लिखे नागरिक को महसूस हेाता है कि प्राइवेट चैनल्स मनमानी कर रहे हैं। आपको भी पता पड़ा होगा। हो सकता है आपके डर और शराफत के मिलेजुले प्रभाव से उनमें कुछ सुधार हो। हालांकि ये दोनों अलग-अलग वर्ग के परस्पर विरोधी भाव हैं। आप तो सीरियल्स कहां देख पाते होंगे। यह निठल्लों और सेमी निठल्लों की चक्षु परेड है। इन सीरियलों ने महिलाओं के सम्मान को जिस तरह रौंदा है वह इस तथाकथित सांस्कृतिक देश के लिए कितना शर्मनाक है। एक-एक सीरियल में चार-चार छ:-छ: खल नायिकाएं। यही नहीं बीच-बीच में नई-नई खलनायिकाएं आती रहती हैं। जैसे सब महिलाएं खलनायिकाएं हों। महिला सशक्ितकरण में सब बातें उठती हैं पर महिलाएं इस सवाल पर दरियादिल हैं। पहले मुद्दों को लेकर अहिंसात्मक आंदोलन होते थे, अब स्वार्थो को लेकर होते हैं। इस समस्या के बारे में मैंने प्रियरंजनदास मुंशी जी को पत्र लिखा था। पावती भेजन के सिवाय शायद ही उस पर कोई कार्रवाई हुई हो। मंत्री का पत्रोत्तर आ जाना ही रेगिस्तान में वर्षा की तरह है। मैं यह सब लिखन की धृष्टता दो वजह स कर रहा हूं। एक तो इन हंसोंड़ों और फि़ल्म वालों ने न्यूज ौसी चीज को हास्यास्पद व नॉनसीरियस बना दिया। बेहतर हो एक-दो हंसोड़ चैनल्स हो। जिस तरह के द्विअर्थी और भदेस लतीफे अभिनीत होते हैं वह शायद लोगों की तहज़ीब का हिस्सा बनता जा रहे हैं। यह नाचने गाने वाले चैनल्स पर ही नहीं होता न्यूज़ चैनल्स पर भी होता है। आप तो अंग्रेज़ी की खबर सुनते होंगे। वहां यह गुस्ताख़ी नहीं। इस काम में संसद सदस्य तक पैस के लिए बनावटी हंसी हंसते हैं और प्रोत्साहन देते हैं। बिना यह सोचे कि जनता पर क्या असर पड़ेगा। इस बीच सबसे बड़ी गैरदयानतदारी इन चैनलें द्वारा जा की गई, वह है जनता को कलाकारों की हड़ताल के कारण नए एपिसोड्स न दिखा पान की वजह से पुराने एपिसोड्स दिखा-दिखा कर बच्चों-बूढ़ों, औरतों-मर्दों के समय और धन का अपव्यय करना। आप अगर गणना कराएं तो पता लगेगा कितन कीमती मैनआवर और धन का प्रति व्यक्ित इस मंदीमहंगाई में अपव्यय हुआ है। सिफऱ् इसलिए कि नश का वह स्पेल न टूटे जिसका जाल उन्होंने बुनकर देश को एडिक्ट बनाया है। इस बीच उनका किताबों, खेल आदि की ओर रुझान न हो जाए। उनको तो विज्ञापन मिलते रहे हैं। हो सकता है फ्री या कम पैसों में पुराने सीरियल दिखला रहे हों। उनका मकसद नश के इस संसार को किसी न किसी तरह बनाए रखना है। जनता के मूल्य पर यह मनमानी नहीं चल सकती, न चलती। प्रधानमंत्री जी मंदी की काट, बकौल वित्तमंत्री के, उत्पादों के दाम कम करना ही नहीं है। सबसे ज॥रूरी है कि जो और जहां समय और धन का अपव्यय हो रहा है, उस पर नज़र रखी जाए। इस देश की स्थिति इस मंदी में भी संभली रहन का कारण सरकार की निगरानी ही नहीं है, बल्कि मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग की अपने व्यय पर निगरानी रखना भी है। मज़दूर वर्ग भी बचत करता है। यदि ठीक सलाह मिल जाती है तो डाकख़ाने में खाता खोल देता है। इनके खाते से पैसा तब तक नहीं निकालता जब तक आपात्काल नहीं होता। निकालता है तो दस-पांच रुपए। मध्यम वर्ग बैंक में पैसे को डालकर तब तक भूला रहना चाहता है, जब तक अनिवार्यता न हो। अगर एसा नहीं होता तो आप जी-20 की बैठक में यह कहन की स्थिति में अपन को न पाते कि हमारी अर्थव्यवस्था विकसित देशों से बेहतर है। अगर चहूंओर नज़्ार नहीं रखी जाएगी तो यह वर्ग भी मंदी की सुनामी का शिकार हो जाएगा। आप जानते हैं कि धनी वर्ग अपना पैसा देश में उतना ही रखता है, जितना उसकी व्यावसायिक ज॥रूरत के लिए जरूरी है। यह एक उदाहारण मात्र है कि सूचना मंत्रालय की अनदेखीपन से प्राइवेट चैनल्स कितने मैन आवर्स, और देखे हुए सिरियल्स को आदतन देखने में कितने धन और बिजली का दुरुपयोग करा रहे हैं। यह समस्या चैनल्स के मैनेजर्स की है कि वे स्टाफ़ के साथ अपनी समस्या को सुलझाएं। स्क्रीन पर असुविधा के लिए खेद प्रकट कर देना इतने बड़े नुकसान की भरपाई नहीं कर देता। वे इधर कमाएं और कर्मचारियों की मांग को महीनों नजरंदाज करें। जनता का शेाषण होता रहे, क्या सरकार दर्शक बनी रह सकती है? लेखक साहित्यकार हैं

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