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ब्लॉग वार्ता : ठेका, देसी दारू और शराब का ज्ञान

देश में ऐसे राज्य और शहर की कमी नहीं, जहां चाय की दुकानों के साथ शराब की दुकानें खुल जाया करती हैं। हाईवे पर ठेका, देसी शराब के विज्ञापन और शराब पी कर गाड़ी न चलायें की सरकारी नसीहत व चेतावनियों का...

 ब्लॉग वार्ता : ठेका, देसी दारू और शराब का ज्ञान
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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देश में ऐसे राज्य और शहर की कमी नहीं, जहां चाय की दुकानों के साथ शराब की दुकानें खुल जाया करती हैं। हाईवे पर ठेका, देसी शराब के विज्ञापन और शराब पी कर गाड़ी न चलायें की सरकारी नसीहत व चेतावनियों का ही नतीजा है कि शराब पहले स ज्यादा सामाजिक हो चली। पियक्कड़ों की जानकारी भी बढ़ जाए, इसीलिए अंकुर वर्मा ने ब्लॉग पर एक ठेका खोल दिया है। मदिरा ज्ञान का ठेका। पता है-द्धह्लह्लश्चज्द्वड्डस्र्न्rड्डद्द4ड्डठ्ठ.2orस्र्श्चrद्गह्यह्य.ष्oद्व। अंकुर वर्मा बताते हैं कि स्कॉच के बाद दुनिया में अमेरिकन व्हिस्की की सबसे अधिक मांग हैं। अमेरिकन व्हिस्की पर पूरा व्याख्यान है। अंकुरित पीसे हुए अनाज से बनने वाली अमेरिकन व्हिस्की के छह प्रकार होते हैं। सभी प्रकारों के मशहूर ब्रांड की भी जानकारी दी गई है। अमेरिकन व्हिस्की जलाये गए ओक के पीपो में पकाई जाती है। अगर दो साल तक पकी है तो हर ब्रांड के आगे स्ट्रेट शब्द का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद, अंकुर वर्मा आयरिश व्हिस्की के बारे में ज्ञान बांटने लगते हैं। बताते हैं कि अब आयरलैंड में मुख्य रूप से तीन ही डिस्टिलरियां बची हैं। स्कॉटलैंड और आयरलैंड के बीच प्रतियोगिता रहती है कि कौन सबसे अच्छी व्हिस्की बना सकता है। अंकुर कहते हैं कि विदेशों में या फिर मुंबई-दिल्ली जैसे शहरों में आयरिश व्हिस्की मिल सकती है। अंकुर अपने परिचय में सांवैधानिक चेतावनी भी देते हैं। कहते हैं कि इस ब्लॉग का उद्देश्य मदिरापान को बढ़ावा देना नहीं है। जानकारी बढ़ाना है। यह ब्लॉग केवल वयस्कों के लिए है। अवयस्क कृपया वयस्क होन की प्रतीक्षा करें। तो कुल मिलाकर व्हिस्की अनाज से बनती है और माल्ट और ग्रेन दो प्रकार की होती है। स्कॉच व्हिस्की उस कहते हैं जो स्कॉटलैंड में बनती है। समीरलाल और रतन सिंह जैसे ब्लॉगर पाठक इस जानकारी पर खूब दाद देते हैं। कहते हैं, वाह बहुत बेहतरीन जानकारी दी है। पंद्रहवीं सदी में सबसे पहले आयरलैंड या स्कॉटलैंड में व्हिस्की बनाई गई थी। आखिर जब यह पता चले कि गेहूं, जौ, मक्का और राई से व्हिस्की बनती है तो खेतों में खड़े अनाजों को देखकर पीने वालों को थोड़ा मज़ा आ सकता है। पाउच, अध्धा, पव्वा ये सब शराब के देसी नाम हैं, जहां कभी इसे मदिरा कहा जाता था। मदिरा का इस्तेमाल नहीं होता, लकिन शराब ड्रिंक्िस के नाम से ज्यादा जानी जा रही है। भारत में बनी ग्रेन व्हिस्की ( 750 एम एल) की कीमत 400 से 1000 रुपये होती है, जबकि आयातित व्हिस्की का दाम 4000 से लेकर 10,000 रुपये तक हो सकता है। कुछ महीने पहले मेरठ में सरकारी शराब की दुकानों पर वाइन की बोतलों पर डिस्काउंट के बैनर लगे दिखाई दिये। दुकानदार से पूछा तो जवाब मिला कि यूपी में लोग वाइन कम पीते हैं। सब व्हिस्की के बारे में ही जानते हैं। वाइन के बारे में किसी को नहीं पता। इसीलिए सेल यानी बिक्री बढ़ान के लिए डिस्काउंट दे रहे हैं। हैरानी होती है। जिस शराब को हम अंगूर की बेटी कहते हैं, उस अंगूर से तो वाइन बनती है। व्हिस्की जौ और गेंहू की बेटी है। मदिरा ज्ञान वाइन पर भी प्रकाश डालता है। इस्रइल, ज्योर्जिया, इरान, चीन और मिस्र् जैसे देशों में 6000 वर्ष ईसा पूर्व भी इसके बनाये जान के ममले मिले हैं। वाइन सभ्य लोगों और बियर असभ्य लोगों का पेय समझा जाता था। इस तरह की कैटगरी हमारे यहां नहीं चलती। जो शराब नहीं पीते वे सभी शराबियों को असभ्य समझते हैं। एक किस्म की नैतिक मास्टरी करने लगते हैं। लकिन अंकुर नैतिक मास्टरों से डरे बिना मदिरा ज्ञान का प्रसार कर रहे हैं। ठीक उसी तरह से जैसे अधिक राजस्व की अभिलाषा में हमारी सरकारें मदिरापान का प्रसार कर रही हैं। अब ज़माना गया, जब लोग अपनी पतलून में बोतल छिपा कर घर आया करते थे। अब तो ड्राइंगरुम में बकायदा शा केस बना कर शराब रखी जा रही है। वैसे मैं भी यह पढ़ कर हैरान हो गया कि पानी और चाय के बाद दुनिया में सबसे अधिक बियर पी जाती है। क्यों भाई? कोई टॉनिक है, जो दुनिया वाले गटके जा रहे हैं। मेसोपोटामिया वाल कभी बियर पीया करते थे। । अंग्रेजी में शराब पर लिखन की परंपरा है। हिंदी में सिर्फ पीन की परंपरा है, लिखन की अभी शुरू हो रही है। शराब नहीं पीने वाले भी इस ब्लॉग को पढ़ सकते हैं। पूरे परिवार के साथ भी। जो पीने वाले हैं..वो क्यों और कब पढ़ेंगे यह अभी तक समझ में नहीं आ रहा है? लेखक का ब्लॉग है ठ्ठड्डन्ह्यड्डस्र्ड्डद्म.ड्ढद्यoद्दह्यश्चoह्ल.ष्oद्वड्ढr

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