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उप्र में पार्टी प्रदेशाध्यक्षों की प्रतिष्ठा दांव पर

आगामी फरवरी में होने जा रहे देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के साथ-साथ उनके प्रदेश अध्यक्षों की अग्निपरीक्षा होगी। उनके सामने अपने दल को सबसे ऊपर ले...

उप्र में पार्टी प्रदेशाध्यक्षों की प्रतिष्ठा दांव पर
एजेंसीFri, 30 Dec 2011 12:12 PM
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आगामी फरवरी में होने जा रहे देश के सर्वाधिक आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक दलों के साथ-साथ उनके प्रदेश अध्यक्षों की अग्निपरीक्षा होगी। उनके सामने अपने दल को सबसे ऊपर ले जाने के साथ-साथ खुद का चुनावी मैदान जीतने की भी चुनौती होगी।

पिछले कुछ सालों की राजनीति में यह पहला मौका है जब लगभग सभी राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्ष चुनावी मैदान में हैं। विधानसभा चुनाव में उनकी लोकप्रियता की अग्निपरीक्षा होगी।

कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा जहां लखनऊ कैंट सीट से चुनाव लड़ रही हैं तो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही देवरिया की पथरदेवा सीट से, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के प्रदेश अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर की पडरौना सीट से, राष्ट्रीय लोक दल (रालोद) के प्रदेश अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह आगरा से और पीस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल मन्नान बलरामपुर की उतरौला सीट से चुनावी मैदान में उतरेंगे।

इसी क्रम में जनता दल (युनाइटेड) के प्रदेश अध्यक्ष सुरेश निरंजन भैया का बुंदेलखंड की किसी सीट से और इंडियन जस्टिस पार्टी (इंजपा) के प्रदेश अध्यक्ष कालीचरण सोनकर का इलाहाबाद की किसी सीट से चुनाव लड़ना लगभग तय है।

समाजवादी पार्टी (सपा) के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। वह कन्नौज से सांसद हैं। सपा पदाधिकारियों का कहना है कि वह विधानसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशियों को जीत दिलाकर सपा को सबसे आगे ले जाने के अभियान में लगे हैं।

राजनीतिक दलों के प्रदेश अध्यक्षों ने चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद अपनी-अपनी विधानसभा सीट के साथ सूबे के अलग-अलग क्षेत्रों में चुनाव प्रचार भी शुरू कर दिया है।

राष्ट्रीय लोक दल के प्रदेश अध्यक्ष बाबा हरदेव सिंह ने कहा कि जब सेनापति लड़ाई के मैदान में उतरता है तो सैनिकों के जोश में बढ़ोत्तरी होती है।

राजनीतिक विश्लेषक एवं लखनऊ विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रमेश दीक्षित ने कहा, ''सेनापति के लड़ने से सैनिकों में ज्यादा उत्साह रहता है। प्रदेश अध्यक्ष के चुनावी मैदान में आने से पार्टी कार्यकर्ता ज्यादा उत्साह से लड़ते हैं।'' उन्होंने कहा, ''हर पार्टी अध्यक्ष का अपना एक जनाधार होता है। चुनाव में उसके उतरने से पार्टी को निश्चित रूप से लाभ मिलता है लेकिन अध्यक्ष की प्रतिष्ठा भी दांव पर रहती है।''

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