सत्यवती दे रही रोचागार
परिस्थितियां संघर्ष सीखाती हैं, लेकिन सत्यवती तो अब संघर्ष और उसपर विजय की पाठशाला बन चुकी हैं। साकची काशीडीह की सत्यवती देवी आसपास में शायद पहली महिला मिस्त्री हैं जो पंचर की दुकान चलाती हैं। दरअसल,...
परिस्थितियां संघर्ष सीखाती हैं, लेकिन सत्यवती तो अब संघर्ष और उसपर विजय की पाठशाला बन चुकी हैं। साकची काशीडीह की सत्यवती देवी आसपास में शायद पहली महिला मिस्त्री हैं जो पंचर की दुकान चलाती हैं। दरअसल, पति की मौत के बाद वसीयत में मिला यह मर्दो वाला पेशा और साथ में मिले भविष्य की ओर टकटकी लगाये चार बिन-बाप के बच्चे। सबसे बड़ा बेटा 10 साल का था उसके बाद तीन बेटियां।ड्ढr 26 साल की अकेली विधवा पंचर दुकान चलाये, आसान नही था। लेकिन, कोई और चारा भी तो नहीं था। जी-ाान से जुट गयीं और बच्चों का पेट पालना शुरू कर दिया। इसी दौरान उसे एक लावारिस महिला रानी पर तरस आ गयी। उसे भी अपने पास रख लिया। बाद में, उसकी शादी भी करवा दी। सोचा था, एक परिवार बस जायेगा। उनसे एक बच्चा विक्की हुआ। लेकिन, यह क्या, दुधमुंहे विक्की की जिम्मेवारी भी सत्यवती के मत्थे छोड़ माता पिता भाग लिये। अब सत्यवती के पांच बच्चे हो गये। ऊपरवाले की मर्जी मानकर उसने जिन्दगी का सफर जारी रखा। बाद में उसी कमाई से एक टायर की दुकान भी खोल ली। आज सत्यवति की दुकान से कई बेसहारा युवकों की रोी चल रही है। वह युवकों को काम सिखाती है और स्वरोगार मुहैया कराती है। मदन, आमिर, रौशन जंसे कई युवक है जो सत्यवती की सीख से पंचर की दुकान चला घरवालों का पेट पाल रहे हैं। ं