गृह प्रवेश
‘मधुमन् मे परायणं मधुमत् पुनरायनम्।ड्ढr ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस् कृतम्॥’ड्ढr मेरा घर से बाहर जाना भी सुखमय हो। इस घर में लौटना भी सुखकारी हो। हे अश्विनीकुमारो! अपनी कृपा से हमारा जीवन मधुमय...
‘मधुमन् मे परायणं मधुमत् पुनरायनम्।ड्ढr ता नो देवा देवतया युवं मधुमतस् कृतम्॥’ड्ढr मेरा घर से बाहर जाना भी सुखमय हो। इस घर में लौटना भी सुखकारी हो। हे अश्विनीकुमारो! अपनी कृपा से हमारा जीवन मधुमय करें। ‘रासिक्षयं रासि मित्रम् अस्मे।’ हमें एक घर दीजिए। एक मित्र भी। गृहप्रवेश के समय के मंत्र का अर्थ है -‘हे घर! भयभीत मत होइए। आप कांपिए मत। हम तेजवान होन के लिए आपके पास आते हैं। हम ओज संपन्न होकर आप में प्रविष्ट करते हैं। हम श्रेष्ठ बुद्धिमान होकर आप में प्रविष्ट करते हैं।’ हम अपने जीवन को सुखी बनान के लिए सभी प्रकार के साधनों के साथ गृहप्रवेश करना चाहते हैं। घर भी हमार लिए पूजा स्थल है। वहां अग्नि, सविता (सूर्य), इंद्र और विष्णु का आह्वान करते हैं ताकि वे सभी देवता उस घर में विराजमान रहकर हमें धनधान्य, पुत्र-पुत्रियों और मेहमानों के साथ सुख से रहने दें। ग्रामीण जीवन में एक कहावत है -‘घर दही तो बाहर दही’ अर्थात घर में सुख से रहने वाले व्यक्ित को बाहर भी सुख मिलता है। ‘घर फूटे, गंवार लूटे’ अर्थात घर में मतभेद और मनभेद होने से दूसरे लोग भी लाभ उठाते हैं। ‘घर एक मंदिर है’ भी कहा जाता है। गृहप्रवेश के समय हाथ में फल और दही लेकर प्रवेश करन का विधान है। हम घर का मान रखते हैं, वहां स्थित देवी-देवताओं की आराधना करते रहते हैं, ताकि घर में सुख-शांति रहे। दरअसल, सुख पाना ही जीवन का लक्ष्य है, जो घर में ही संभव है। घर का दिल बड़ा होना चाहिए। उसका आकार-प्रकार नहीं। झोपड़ी में भी सुख हो सकता है। महलों में नहीं भी। जहां सुख है, वहीं घर है। मकान और महल का क्षेत्रफल और भव्यता तो आवरण मात्र है। इसलिए तो मकान निर्जीव है, घर जीवित। घर का अपना व्यक्तित्व होता है। तभी किसी घर में जाकर आनंद आता है। किसी में नहीं।