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बाबा की तुमड़ी.. और चुनावबाबा धर्म-कर्म में व्यस्त थे। लेकिन अचानके उनको भी राजनीति का रोग लग गया। मन इतना ताव खाया कि चुनाव मैदान में धुरंधरों से फरियाने कूद गये। देवी-देवता के पूजा-पाठ के...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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बाबा की तुमड़ी.. और चुनावबाबा धर्म-कर्म में व्यस्त थे। लेकिन अचानके उनको भी राजनीति का रोग लग गया। मन इतना ताव खाया कि चुनाव मैदान में धुरंधरों से फरियाने कूद गये। देवी-देवता के पूजा-पाठ के साथ-साथ जनता-ानार्दन की पूजा में लीन हो गये। फिर तो जनता को ही भगवान मान बैठे। प्रचार के दौरान कहते फिर-ानता की सेवा सबसे बड़ी सेवा। नर ही नारायण है। जनता खुश तो सब खुश। जब चुनाव में कूद गये तो घोर कलियुग में पैसे की भी जरूरत थी। अपने जीवनकाल में उन्होंने पाइ-पाइ जोड़कर कुछ जमा भी किया था, जिसे हनुमान जी के भरोसे जोड़ दिया था। उसी के जोश पर चुनाव में कूद पड़े। लेकिन प्रचार में निकले, तो बाबा की तुमड़ी ही गायब हो गयी। अब तो बाबा न इधर के रहे, न उधर के। अब हर रो बजरंगबली के आगे सिर धुन रहे हैं। पूजा स्थल से गायब दोनों पेटी दिला देने की प्रार्थना कर रहे हैं। मन्नत मान रहे हैं कि तुमड़ी मिल गयी, तो भगवान जी तुम्हें लड्डू चढ़ायेंगे। अब देखना है कि राम भक्त हनुमान की लाल बाबा पर कितनी कृपा होती है। बाबा खड़ग सिंह की तरह क्या चोर उनकी तुमड़ी लौटा जाते हैं या फिर बाबा चुनाव के नाम पर तौबा करते हैं।

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