फोटो गैलरी

Hindi Newsबेटियों से है खुशियों का संसार

बेटियों से है खुशियों का संसार

राखी पास है, सहज ही मन में प्रश्न उठता है कि यदि घरों में बेटियां ही नहीं होगी तो राखी कैसे मनेगी? उत्तर भारत के राज्यों में जहां राखी सबसे अधिक मनाई जाती है, वहां कन्या भ्रूण हत्या रुकने का नाम नहीं...

बेटियों से है खुशियों का संसार
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 04 Aug 2011 02:17 PM
ऐप पर पढ़ें

राखी पास है, सहज ही मन में प्रश्न उठता है कि यदि घरों में बेटियां ही नहीं होगी तो राखी कैसे मनेगी? उत्तर भारत के राज्यों में जहां राखी सबसे अधिक मनाई जाती है, वहां कन्या भ्रूण हत्या रुकने का नाम नहीं ले रहीं। प्रश्न यह भी कुलबुलाता है कि हर त्योहार में बहन और बेटियों को आगे रखने वाले लोग अपने घर में ही बेटी के जन्म की आशंका मात्र से डरने क्यों लगते हैं? समय है कि पर्वो को मात्र मनाए नहीं उनको जिएं भी। आखिरकार त्योहारों का मजा सबके साथ ही तो आता है। बता रही हैं पूनम जैन

किसी भी अन्य देश की तुलना में भारतीय त्योहारों में परिवार और रिश्तों को खासी अहमियत दी गई है। इन त्योहारों में अहम भूमिका होती है घर की महिलाओं और बेटियों की। हैरत तब होती है जब बेटियों के प्रति उपेक्षा का भाव रखने में दूर-दराज के गांवों के कम पढ़-लिखे लोगों के साथ बड़े शहरों के शिक्षित लोग भी खड़े दिखाई देते हैं। वर्ष 2011 के जनगणना के अनुसार केरल, मणिपुर, मिजोरम, पांडिचेरी को छोड़कर बाकी सभी राज्य में प्रति 1000 लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम है। हालांकि दक्षिण भारतीय राज्यों और त्रिपुरा, मेघालय में स्थिति उत्तर भारत से बेहतर है, पर हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, झारखंड, उत्तर प्रदेश यहां तक कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्रों में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या का अंतर सौ से भी अधिक है। उत्तर भारत के कुछ गांवों में लिंग अनुपात शहर की तुलना में बेहतर है।

त्योहारों को समझना होगा

एक मीडिया हाउस के मार्केटिंग विभाग में काम करने वाली स्मिता बंसल कहती हैं, हम त्योहारों को मनाते जरूर हैं, परंपराओं को निभाते जरूर हैं, पर उन्हें जीते नहीं हैं। अभी भी कई जगह बेटियों की पूजा, बहनों का मान-सम्मान एक दिन विशेष तक सीमित रह जाता है। यहां तक कि पढ़े-लिखे भाई भी हर साल सुरक्षा और प्यार का आश्वासन देकर घर में बहन के प्रति हो रहे भेदभाव को महसूस नहीं करते।

इस मामले में चंडीगढ़ शहर से दिल्ली में एक इंटरनेशनल एनजीओ के साथ काम कर रही मोनिका जैन खुद को भाग्यशाली मानती हैं। वह कहती हैं जब घर में भाई की विदेश जाकर पढ़ाई करने और मेरे मुंबई के एसपी जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट से एमबीए करने में से किसी एक के चुनाव का विकल्प सामने आया तो उनके भाई ने ही तीन माह बाद आने वाली राखी के उपहार में उसे भेजने के लिए मम्मी-पापा को तैयार किया था।

गलती होने से बच गई

विनीता शर्मा (बदला हुआ नाम) आज भी 23 साल पहले एक काम जो नहीं कर सकी थीं, उसको सोचकर खुशी मनाती हैं। विनीता कहती हैं, पहले घर में और फिर ससुराल में बेटों की खास चाह देखने को मिली। शादी के बाद मुझे एक लड़का हुआ। दो साल जब दोबारा गर्भवती हुई, तो लिंग परीक्षण करवाया गया। लड़की के बारे में पता चलने पर परिवार के सदस्य बात कर रहे थे कि लड़की को किसी दूर के रिश्तेदार को दे देंगे। शर्म की बात यह थी कि मैं और मेरे पति भी तैयार हो गए थे। पर तभी मेरा पांच साल का बेटा नितीश कमरे में आया। पता नहीं उसे लड़की की बात किसने बताई, पर वह बोला ‘मम्मी अब तो मेरी कलाई पर भी राखी बंधेगी ना, बड़ा मजा आएगा।’ विनीता कहती हैं, ‘उसके बाद बेटी को अलग करने की हिम्मत ही नहीं हुई। आज खुश हूं कि मैं उस गलती से बच गई।’

हर रिश्ता अनमोल

‘सवाल बेटियों का ही नहीं है, राखी से जुड़ा हर रिश्ता अनमोल है। हर साल राखी मनाने के साथ यदि उन रिश्तों को बनाए रखने की कोशिश की जाए तो घर-परिवार से जुड़े कितने ही तनाव और चिंताएं खत्म हो जाती हैं।’ बैंक में काम करने वाली गीतिका जोशी के अनुसार हमारे यहां ननद भाभी को भी राखी बांधती हैं। मेरे पति और ननद (नताशा) में कभी किसी बात पर अनबन हो गई थी, जिसके बाद से वे दोनों राखी भी नहीं मनाते थे। मुझे यह अच्छा नहीं लगता था। मैंने इस रिश्ते को दोबारा जीवन देने का मन बनाया और पहली राखी पर नताशा से राखी बंधवाने चली गई। समय के साथ-साथ हमारा घुलना मिलना बढ़ गया। घर के लोग भी काफी खुश हैं। मुझे ससुराल में हमेशा के लिए एक अच्छी दोस्त मिल गई।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें