भारतीय टेलीविजन पर लव, सेक्स और धोखा
यदि हिंदी फिल्मों का लोगों को प्यार की सीख देने वाला सुपरहिट फॉर्मूला असफल रहा है तो अब छोटा पर्दा आगे आ गया है। टेलीविजन के 'सुपरस्टड', 'परफेक्ट कपल' और 'इमोशनल अत्याचार' जैसे शो दर्शकों के सामने...
यदि हिंदी फिल्मों का लोगों को प्यार की सीख देने वाला सुपरहिट फॉर्मूला असफल रहा है तो अब छोटा पर्दा आगे आ गया है। टेलीविजन के 'सुपरस्टड', 'परफेक्ट कपल' और 'इमोशनल अत्याचार' जैसे शो दर्शकों के सामने इश्क, रोमांस और विश्वासघात की कहानियां परोस रहे हैं।
इन रिएलिटी कार्यक्रमों में छोटी-छोटी बातों पर लोगों को एक-दूसरे के बाल नोंचते या दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए जोड़-तोड़ करते और चालें चलते देखा जा सकता है। इन कार्यक्रमों में किसी भी बात की कोई सीमा नहीं होती।
दूसरी ओर इन कार्यक्रमों के निर्माताओं का कहना है कि ये शो सिर्फ समाज की वास्तविकताओं का प्रतिबिंब हैं।
यूटीवी बिंदास की कार्यक्रम प्रमुख शालिनी सेठी ने कहा कि वास्तविक जीवन में भी लोग एक-दूसरे का आलिंगन करते हैं और एक-दूजे के बेहद नजदीक जाते हैं और वास्तविक जीवन में भी काफी गुस्सा करते हैं, यह स्थितियों के अनुसार होता है। इसके अलावा टेलीविजन पर जो कुछ दिखाया जाता है वह वास्तविकता का ही प्रतिबिंब है। इसलिए आप जो पर्दे पर देखते हैं वह पूरी तरह से वास्तविकता है।
चैनल वी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष व महाप्रबंधक प्रेम कामथ का कहना है कि इन कार्यक्रमों में शामिल होने वाले प्रतिभागियों का व्यवहार भारतीय युवाओं के रवैये को दिखाता है। कामथ कहते हैं कि मैं शो के कुछ खास दृश्यों पर टिप्पणी नहीं करना चाहता लेकिन मोटे तौर पर प्रतिभागियों का व्यवहार ऐसी ही समान स्थितियों में फंसे किसी युवा के बर्ताव को प्रतिबिंबित करता है।
छोटे पर्दे पर रिश्तों के उलझाव को दिखाने वाले अनेक रिएलिटी कार्यक्रम हैं। इनमें यूटीवी बिंदास पर 'सुपरस्टड' युवाओं को इश्कबाजी सिखाता है तो 'इमोशनल अत्याचार' जहां तक सम्भव हो सब कुछ स्पष्ट दिखाता है। वहीं चैनल वी के 'लव नेट', 'परफेक्ट कपल' या 'लव किया तो डरना क्या' जैसे कार्यक्रमों में युवा विपरीत लिंगी व्यक्ति को आकर्षित करने के लिए किसी भी हद तक कुछ भी कर गुजरने को तैयार दिखते हैं।
इन रिएलिटी कार्यक्रमों को देखने वाले दर्शक भी यह मानते हैं कि इन्हें पूरे परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता। बाईस वर्षीय अखिल अनुराग कहते हैं कि प्यार, घृणा और विश्वासघात युवाओं की जिंदगी का हिस्सा है और यदि इस तरह के कार्यक्रम उन्हें समाधान देते हैं तो वे इन कार्यक्रमों को क्यों न देखें। मुझे ये कार्यक्रम देखना रोचक लगता है लेकिन मैं यह भी मानता हूं कि इन्हें परिवार के साथ नहीं देखा जा सकता क्योंकि कभी-कभी इनमें बहुत हिंसा व गालियों का इस्तेमाल होता है।