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किसके लिए है मंदिरों की दौलत?

तिरुअनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिली संपत्ति ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। हमारे मंदिरों की अकूत संपत्ति हैरान करती है और हमें सोचने पर भी मजबूर करती है कि आखिर मंदिरों की संपत्ति किसकी...

किसके लिए है मंदिरों की दौलत?
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 06 Jul 2011 10:05 PM
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तिरुअनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिली संपत्ति ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। हमारे मंदिरों की अकूत संपत्ति हैरान करती है और हमें सोचने पर भी मजबूर करती है कि आखिर मंदिरों की संपत्ति किसकी है? किसके लिए है?

कल तक तिरुपति के भगवान वेंकटेश्वर सबसे अमीर देवता थे। आज तिरुअनंतपुरम के पद्मनाभ स्वामी ने उन्हें बहुत पीछे छोड़ दिया है। अभी एक तहखाना तो खुलना बाकी है। पद्मनाभ स्वामी मंदिर से मिले खजाने ने कई सवालों को खड़ा कर दिया है। आखिर उस खजाने का क्या किया जाए, जिसे एक लाख करोड़ का माना जा रहा है? या देश के तमाम धार्मिक स्थलों का प्रबंधन किसके हाथ में हो? उसकी क्या सूरत हो? और उनकी अकूत संपत्ति का क्या किया जाए?

इतिहासकार के. एम. पणिक्कर का मानना है कि मंदिर की संपत्ति राज्य और उसके लोगों की है। पद्मनाभ मंदिर की पूरी संपत्ति केरल की विरासत है, इसलिए उसे एक म्यूजियम में रखा जाना चाहिए। एक ऐसा म्यूजियम, जिसमें जबर्दस्त सुरक्षा व्यवस्था हो। उसकी देखरेख विशेषज्ञों का एक ट्रस्ट करे। उसमें सरकारी प्रतिनिधि भी हों। लेकिन केरल भाजपा के अध्यक्ष वी. मुरलीधरन मानते हैं कि मंदिर की संपत्ति मंदिर की है। और किसी को उसमें दखल देने का अधिकार नहीं है। वैष्णो देवी मंदिर की कायापलट करने वाले जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल जगमोहन मानते हैं कि सभी मंदिरों को सरकार के हवाले कर देना चाहिए। उनका एक बोर्ड हो, जो कायदे से उनका प्रबंधन करे।

अब सवाल है कि मंदिरों के अकूत खजाने का क्या किया जाए? हमारे धार्मिक स्थलों की संपत्ति देख कर महसूस होता है कि यों ही अपने देश को सोने की चिड़िया नहीं कहा जाता था। अपने मंदिरों में जिस कदर सोना बिखरा पड़ा है, उससे क्या साबित होता है? तिरुपति में एक हजार किलो सोना। पद्मनाभस्वामी मंदिर में हजार किलो वजन के सोने के सिक्के। पांच सौ करोड़ रुपए की कीमत की भगवान विष्णु की अनंत शयनम् मूर्ति। शिरडी में एक ही साल में तीन सौ करोड़ के जेवर वगैरह-वगैरह। यह तो एक नमूना है। यह सोने की चिड़िया कितनी बड़ी है? इसका अंदाज लगाना ही आसान नहीं है। लेकिन सवाल है कि उस सोने की चिड़िया से समाज या देश का क्या भला हो रहा है?

भक्तों ने ही अपने मंदिरों को सोने की चिड़िया बनाया है। उनके चढ़ावे का क्या हो? यही बड़ा मसला है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वीआर कृष्ण अय्यर का मानना है कि वह समाज के काम आना चाहिए। और उसके लिए हमारी संसद को कुछ करना चाहिए।

हमारे चढ़ावे का क्या होता है? यह सवाल भी भक्त के मन में नहीं आता। प्रभु को भक्तों ने चढ़ावा चढ़ा दिया। उसका क्या होना है, प्रभु जानें? केरल में नास्तिक आंदोलन चलाने वाले यू. कलानंदन कहते हैं कि हम तो यह भी इच्छा जाहिर नहीं करते कि उसका किसी भले काम के लिए इस्तेमाल होना चाहिए। सो, मंदिर का बोर्ड या जो भी उसे देख रहा है, उसका जैसा चाहे इस्तेमाल कर लेता है। इस तरह का अनसोचा चढ़ावा ही समस्या की जड़ है। जाहिर है उसका फायदा किसी और को होता है।

आखिर प्रभु तो पूर्ण हैं। उन्हें तो कुछ नहीं चाहिए। नारायण का चढ़ावा अगर दरिद्र नारायण के काम आ सके तो उससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। हर धर्म में दान को बेहद अहम माना जाता है। हम समाज से कुछ लेकर ही तो अमीर बनते हैं। फिर उसी पैसे का कुछ हिस्सा हम समाज को वापस करते हैं।

प्रभु को चढ़ावे के पीछे क्या तर्क है? यही न कि प्रभु़ आपकी कृपा से हमें जिंदगी में इतना कुछ मिला है। तो हमें भी उसका कुछ हिस्सा वापस देना चाहिए। प्रभु को चढ़ावे के पीछे समाज को वापस देने की ही बात है। हम प्रसाद चढ़ाते हैं तो प्रभु क्या लेते हैं? उसे हम ही तो खाते हैं। लेकिन हम उसे बांट कर खाते हैं। सो, दान समाज के लिए ही है। उसकी महिमा सब जानते हैं, लेकिन उसका इस्तेमाल काले धन को ठिकाने लगाने के लिए नहीं होना चाहिए। हम प्रभु को ही ठगना चाहते हैं। कम से कम प्रभु को तो छोड़ ही दीजिए। हर धार्मिक स्थल चाहता है कि हर भक्त तो पूरी ईमानदारी बरते। लेकिन उसे चलाने वालों को कुछ भी करने की छूट हो। वे तो प्रभु के बंदे हैं। उन पर कैसी बंदिश? लेकिन यह बंदिश होनी ही चाहिए।

मंदिरों की पूरी व्यवस्था सरकार के हवाले हो या किसी ट्रस्ट के हाथ में, लेकिन इतना तो होना ही चाहिए कि उसका पैसा आम आदमी के काम आए। नारायण का खजाना दरिद्र नारायण के काम आ सके। समाज की बेहतरी के लिए उसका इस्तेमाल हो। वह चाहे कोई भी करे। कोई ट्रस्ट भी यह काम कर सकता है और सरकार भी।  ट्रस्ट भी उसका बेजा इस्तेमाल कर सकता है और सरकार भी।
 
दरअसल, धार्मिक स्थलों को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बननी चाहिए। और वह नीति सभी पर लागू होनी चाहिए। सबसे पहले तो उनकी जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। उन्हें किसी के लिए तो जवाबदेह होना ही चाहिए। उनके हर काम में पारदर्शिता होनी चाहिए। एक-एक चीज का लेखा-जोखा होना चाहिए। कोई उसका गलत इस्तेमाल न करे, इसे सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हर धार्मिक-स्थल में पूजा इबादत का अपना तरीका हो सकता है, लेकिन उसका प्रशासन और उसमें पारदर्शिता तो एक ही तरह की होनी चाहिए। देश की कानून व्यवस्था अलग-अलग नहीं हो सकती न। वही धार्मिक स्थलों पर भी लागू होता है।

धार्मिक ट्रस्टों के सामाजिक कार्य
- सत्यसाई ट्रस्ट द्वारा आंध्र प्रदेश में अनंतपुर, मेडक व महबूब नगर, चेन्नई और पूर्वी गोदावरी व पश्चिमी गोदावरी जल परियोजनाएं चलाई जा रही हैं।
- बाबा रामदेव के पतंजलि योगपीठ द्वारा गरीबों को नि:शुल्क चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। उनके ट्रस्ट द्वारा कई योग शिक्षण और मेडिकल संस्थान चलाए जाते हैं।
- श्री श्री रविशंकर का ‘आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन’ 2003 से इराक में ट्रॉमा रिलीफ प्रोग्राम चला रहा है, जिसमें 5000 से ज्यादा लोग हिस्सा ले चुके हैं।
- तिरुपति बालाजी मंदिर की देखरेख करने वाला ‘तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम’ ट्रस्ट तिरुपति के एस.वी. इंस्टीटय़ूट ऑफ ट्रेडिशनल स्कल्पचर एंड आर्किटेक्चर, एस.वी. पॉलिटेक्नीक फॉर द फिजिकली चैलेंज्ड, बालाजी इंस्टीटय़ूट ऑफ सजर्री, रिसर्च एंड रिहैबिलिटेशन फॉर द डिसेबल्ड, श्री वेंकटेश्वर पुअर होम, श्री वेंकटेश्वर स्कूल फॉर द डेफ, श्री वेंकटेश्वर ट्रेनिंग सेंटर फॉर द हैंडीकेप्ड सहित कई शिक्षा संस्थान संचालित करता है। ट्रस्ट जरूरतमंद छात्रों को स्कॉलरशिप भी देता है।
- अम्मा के नाम से विख्यात सतगुरु माता अमृतानंदमयी सुनामी, चक्रवात, बाढ़, भूकंप में पीड़ित लोगों के लिए कई आपदा राहत कार्यक्रम चलाती हैं। अम्मा ने भारत में इंजीनयरिंग, मेडिकल, मैनेजमेंट, पत्रकारिता, आईटी के 60 से ज्यादा शैक्षणिक संस्थानों का एक विशाल नेटवर्क स्थापित किया है।

बहुत कुछ हो सकता है इस खजाने से
- यह राशि केरल राज्य के सार्वजनिक ऋण (पब्लिक डेब्ट), जो करीब 71 हजार करोड़ रुपए है, से ज्यादा है। इस राशि से केरल की अर्थव्यवस्था बदल सकती है।
- इससे ‘फूड सिक्युरिटी एक्ट’ (करीब 70 हजार करोड़ रुपए) और ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (करीब 40 हजार करोड़ रुपए) का खर्च निकल सकता है।
- यह राशि भारत के सालाना शिक्षा बजट की ढाई गुणा है।
- इस राशि से भारत का सात माह का रक्षा खर्च पूरा हो सकता है।
- यह राशि भारत के तीन राज्यों- दिल्ली, झारखंड और उत्तराखंड के सालाना बजट से ज्यादा है।
- यह कोरिया की स्टील कंपनी पॉस्को द्वारा उड़ीसा में किए जा रहे 12 बिलियन डॉलर (करीब 54 हजार करोड़ रुपए) के प्रस्तावित निवेश, जो भारत में अब तक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) है, से करीब दोगुना है।
- यह राशि भारत की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज के मार्केट वैल्यू की एक तिहाई और विप्रो (1.02 लाख करोड़) के लगभग बराबर है।

तिरुपति तिरुमला वेंकटेश्वर, आंध्र प्रदेश
1000 किलो सोना और 52,000 करोड़ रुपए की संपत्ति। सालाना आय 650 करोड़ रुपए। हर साल करीब 300 करोड़ रुपए, 350 किलो सोना दान के रूप में प्राप्त होता है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के खजाने का पता चलने से पहले तक सबसे धनी मंदिर।

वैष्णो देवी मंदिर, जम्मू व कश्मीर
यह मंदिर जम्मू-कश्मीर के कटरा कस्बे में स्थित है। सालाना 500 करोड़ रुपए की आय। संचालन श्री माता वैष्णो देवी स्थापन बोर्ड द्वारा, जिसे श्रइन बोर्ड भी कहा जाता है। पिछले पांच साल में आय में सबसे ज्यादा वृद्धि हुई है। तिरुपति के बाद सबसे ज्यादा श्रद्धालु इसी मंदिर में आते हैं।

शिरडी साईं बाबा, महाराष्ट्र
सालाना आय करीब 450 करोड़ रुपए। 300 करोड़ करोड़ रुपए के जेवर इसी साल दान में मिले। करीब 4.5 अरब रुपए का निवेश। संचालन शिरडी साईं बाबा संस्थान ट्रस्ट द्वारा।

सिद्धिविनायक मंदिर, महाराष्ट्र
सालाना आय 46 करोड़ रुपए। 125 करोड़ रुपए का फिक्स्ड डिपॉजिट। संचालन सिद्धि विनायक मंदिर ट्रस्ट द्वारा। हर साल 10 से 15 करोड़ रुपए दान के रूप में प्राप्त होते हैं।

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