बदलाव नहीं समझ पैदा करने की कोशिश करता हूं
फिल्मकार प्रकाश झा सिनेमा की शक्ति में भरोसा करते हैं और यही वजह है कि वह राजनीतिक व सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बड़े पर्दे पर उठाते हैं। उनकी अगली फिल्म 'आरक्षण' है। झा नहीं मानते कि उनकी यह फिल्म एक...
फिल्मकार प्रकाश झा सिनेमा की शक्ति में भरोसा करते हैं और यही वजह है कि वह राजनीतिक व सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बड़े पर्दे पर उठाते हैं। उनकी अगली फिल्म 'आरक्षण' है। झा नहीं मानते कि उनकी यह फिल्म एक बहस शुरू करेगी लेकिन वह यह जरूर कहते हैं कि उनका सिनेमा समाज में जागरूकता फैलाने की कोशिश है।
झा ने एक साक्षात्कार में कहा कि मैं केवल समझ पैदा करने की कोशिश करता हूं। यदि बदलाव होते हैं तो मेरी फिल्मों का धन्यवाद, यह अद्भुत है! वैसे मैं एक अच्छी कहानी कहने की कोशिश करता हूं और दर्शकों को मुद्दे के प्रति समझ देना चाहता हूं।
झा ने अपनी फिल्म 'दामुल' में बंधुआ मजदूरी के मुद्दे को उठाया था तो मृत्युदंड में लिंग आधारित भेदभाव की कहानी थी। उन्होंने 'गंगाजल' में भ्रष्ट पुलिस बल की कहानी पेश की तो 'अपहरण' में बिहार के अपहरण उद्योग को उभारा। उनकी 'राजनीति' राजनीतिक पृष्ठभूमि की फिल्म है और 'आरक्षण' में जाति आधारितआरक्षण का मुद्दा है।
उन्होंने कहा कि मैं मुद्दों से ज्यादा नई नीतियों से आए बदलावों पर ध्यान देता हूं। मैं भारतीय समाज के इन बदलावों को समझना चाहता हूं, उन्हें देखना चाहता हूं और जब मुझे लगता है कि मैं मुद्दे को अच्छी तरह समझ रहा हूं तो मैं उस पर एक कहानी पेश करता हूं।
झा कहते हैं कि उनकी फिल्म 'आरक्षण' जाति आधारित आरक्षण से आई असमानता को दूर करने का उपाय नहीं सुझाती। उन्होंने कहा कि मैं सिर्फ एक कहानी पेश कर रहा हूं। समाधान नहीं दे रहा हूं। 'आरक्षण' एक परिवार की भावनात्मक कहानी है। यह परिवार आरक्षण के मुद्दे के बाद के हालातों में फंस जाता है। यह एक ऐसे प्राचार्य की कहानी है जो आरक्षण के चलते प्रभावित हुए समाज का पक्ष लेने को मजबूर होता है।
अमिताभ बच्चन, सैफ अली खान, दीपिका पादुकोण, मनोज बाजपेयी और प्रतीक बब्बर के अभिनय वाली 'आरक्षण' 12 अगस्त को प्रदर्शित होगी।