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न्याय का गला घोंटती राजनीति

यह कैसी पढ़ाई? ‘हिंसा के मास्टर, अहिंसा में पीएचडी’ पढ़ कर सोचने पर मजबूर हो गया कि जो व्यक्ित एक तरफ हिंसा का मास्टर माना जाता हो, उसने अहिंसा में पीएचडी कर ली और अब डीलिट करने की सोच रहा है। जो...

 न्याय का गला घोंटती राजनीति
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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यह कैसी पढ़ाई? ‘हिंसा के मास्टर, अहिंसा में पीएचडी’ पढ़ कर सोचने पर मजबूर हो गया कि जो व्यक्ित एक तरफ हिंसा का मास्टर माना जाता हो, उसने अहिंसा में पीएचडी कर ली और अब डीलिट करने की सोच रहा है। जो भी हो सुनील पांडे ने उन नेताओं के लिए एक मिसाल जरूर कायम की है, जिन्होंने राजनीति की आड़ में अपराध को अपना पेशा बना रखा है। राजनीति के अपराधीकरण पर बहुत लिखा जा चुका है। चुनाव सुधार पर भी चर्चा होती रही है फिर भी लोकतंत्र के सागर में मंथन करने पर अमृत की जगह गंदगी निकल रही है। प्रभात कुमार, रमेश नगर, नई दिल्ली जरा याद करो कुर्बानी भारत की संसद पर हमले में हुए शहीदों को पिछले दिनों याद किया गया। पर मुद्दे की बात यह है कि कितने लोगों ने इसे याद किया। मुंबई पर हुई घटना के बाद तो उन्हें याद करना और प्रासंगिक हो जाता है, क्योंकि वे भी आतंकी हमलों में ही शहीद हुए। आश्चर्य तो तब हुआ जबकि संसद का प्रतिनिधित्व करने वाले ही संसद को बचाने वालों को भूल गए। हमले के 7 वर्ष बाद, 13 दिसम्बर 2008 को, सिर्फ 14 सांसदों का आना और शहीदों को याद करना बड़ा ही शर्मनाक लगा। गोपाम्बुज सिंह राठौर, मुखर्जी नगर, दिल्ली लाशों की तौहीन न करंे जब हम यह कहते हैं कि आतंकवादी सिर्फ आतंकवादी होता है, उसका कोई धर्म नहीं होता तो फिर यह जानते हुए भी कि वे मुसलमान हैं उन्हें कब्रिस्तान में दफन न करने देना एक राजनीतिक स्टंट तो हो सकता है, मानवीय दृष्टिकोण नहीं हो सकता है। ये आतंकवादी मार गए हैं। इनसे पहले भी बम कांडों में बहुत से मुसलमान व हिंदू आतंकवादी मार गए हैं, उनका क्या किया गया है? वही इनका किया जाए। मानवता के नाते इन्हें किसी हिंदू संस्था को आगे आकर मुस्लिम रीति से दफन करना चाहिए। लाशों पर राजनीति न करं। सोहन सिंह बीकानेरी, रोहिणी, नई दिल्ली किराया घटाएं अब इसे सरकार की मेहरबानी कहें या अंतरराष्ट्रीय जगत में कच्चे तेल की कीमतों में कमी अथवा मंदी का वरदान कि डीाल-पेट्रोल की कीमतों में सरकार ने हाल ही में कमी की घोषणा की हालांकि यह अपेक्षा के मुताबिक नहीं थी। जब-ाब सरकार ने नाममात्र ही सही, पेट्रोल-डीाल की कीमतें बढ़ाई हैं तब-तब बस, टैक्सी, स्कूटर वालों ने हाय-तौबा मचाकर सरकार को किराया बढ़ाने पर विवश कर दिया था। लेकिन अब जब डीाल-पेट्रोल की दरं घटी हैं और खबरों के अनुसार सीएनजी भी तीन रुपए प्रतिकिलो तक सस्ती हो सकती है तो ऐसे में टैक्सी, स्कूटर व बसों के किराए में भी कमी की जानी चाहिए तुरंत। - इन्द्र सिंह धिगान, 21 गांधी आश्रम, किंगवे कैम्प, दिल्ली

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