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तालिबान के सह-संस्थापक ने बताया लादेन का ठिकाना

तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने एक समझौते के तहत अमेरिकी जांचकर्ताओं को उस स्थान के बारे में बताया था, जहां अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन छिपा था। संडे मिरर में सोमवार को प्रकाशित...

तालिबान के सह-संस्थापक ने बताया लादेन का ठिकाना
एजेंसीMon, 30 May 2011 03:41 PM
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तालिबान के सह-संस्थापक मुल्ला अब्दुल गनी बरादर ने एक समझौते के तहत अमेरिकी जांचकर्ताओं को उस स्थान के बारे में बताया था, जहां अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन छिपा था।

संडे मिरर में सोमवार को प्रकाशित एक खबर में यह खुलासा करते हुए कहा गया है कि इस समझौते के एवज में अमेरिका ने अफगानिस्तान में तालिबान की पकड़ वाले इलाकों से अपने सैनिक हटा लेने का वादा किया था।

अखबार में कहा गया है कि इस अत्यंत गोपनीय समझौते का ब्यौरा ऐबटाबाद स्थित ओसामा के ठिकाने के बारे में गोपनीय अमेरिकी बातचीत से मिला। अखबार के अनुसार, पाकिस्तान की खबरों में कहा गया है कि अखबारों में बरादर का नाम आया है। बरादर तालिबान का सह संस्थापक और ओसामा के सर्वाधिक विश्वसनीय सहयोगियों में से एक है।

प्रकाशित खबर में कहा गया है कि बरादर और ओसामा के संगठन में मौजूद अन्य जासूसों ने भी अमेरिकी खुफिया विशेषज्ञों को अहम सूचनाएं दी थीं। अब तक माना जाता रहा है कि ओसामा के संदेशवाहक अबू अहमद अल कुवैती ने उसे एक फोन किया था। अमेरिकी अधिकारियों ने बीच में ही इस फोन कॉल को रोक कर उसका ब्यौरा हासिल किया। दो मई को ऐबटाबाद स्थित परिसर पर अमेरिकी बलों की एक कार्रवाई में ओसामा और अबू अहमद दोनों मारे गए थे।

बहरहाल, पाकिस्तान में इन दिनों चल रही नई खबरों में कहा गया है कि बरादर ने अमेरिका को बताया था कि ओसामा कहां छिपा है। अफगानिस्तान में सड़क के किनारे बमों का इस्तेमाल करने में दक्ष बरादर को फादर ऑफ द आईईडी कहा जाता है। उसे पिछले साल कराची में पाकिस्तान-अमेरिका के एक संयुक्त अभियान में गिरफ्तार किया गया था और गत अक्टूबर को रिहाई से पहले तक उससे पूछताछ की गई थी।

करीब 40 बरस का मुल्ला बरादर तालिबान के प्रमुख मुल्ला मोहम्मद उमर का सहायक और पाकिस्तान में उग्रवादी समूह क्वेटा शूरा का नेता है। अखबार ने सुरक्षा विशेषज्ञ नील डोयले के हवाले से कहा है कि अमेरिका ने ओसामा के मारे जाने के बाद पाकिस्तान में अपने सैन्य अभियानों में कमी करने की घोषणा की है, जिसके बाद ये अटकलें तेज हो रही हैं कि क्या इससे विद्रोहियों के साथ बातचीत का कोई रास्ता खुलेगा।

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