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पैर कटवाने की सलाह ठुकरा दी थी शंकर लक्ष्मण ने

हॉकी गोल पोस्ट के सामने अंगद की तरह पैर जमाकर भारत को ओलंपिक में दो बार सुनहरी कामयाबी दिलाने वाले शंकर लक्ष्मण का जुझारूपन उनके आखिरी दम तक कायम रहा था। भारत के जुझारू गोलची का पैर उनके जीवन की...

पैर कटवाने की सलाह ठुकरा दी थी शंकर लक्ष्मण ने
एजेंसीThu, 28 Apr 2011 08:24 PM
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हॉकी गोल पोस्ट के सामने अंगद की तरह पैर जमाकर भारत को ओलंपिक में दो बार सुनहरी कामयाबी दिलाने वाले शंकर लक्ष्मण का जुझारूपन उनके आखिरी दम तक कायम रहा था।

भारत के जुझारू गोलची का पैर उनके जीवन की संध्या बेला में गैंगरीन का शिकार हो गया था। डॉक्टरों की सलाह थी कि इसे कटवा लिया जाए, ताकि बीमारी शरीर में फैल न सके। मगर उन्होंने इस सलाह को ठुकरा दिया था और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति से अपने पैर का इलाज जारी रखा था।

बीमारी से जूझते हुए 29 अप्रैल 2006 को लक्ष्मण ने इंदौर से करीब 20 किलोमीटर दूर अपनी जन्मस्थली महू में दम तोड़ दिया था। लेकिन जब भी भारतीय हॉकी के स्वर्णिम इतिहास के पन्ने पलटे जाते हैं, इस शातिर गोलची का जिक्र बरबस ही छिड़ जाता है।

वह हॉकी इतिहास में पहले ऐसे गोलची थे, जिसने किसी अंतरराष्ट्रीय टीम की कप्तानी का गौरव हासिल किया था। लक्ष्मण की गिनती हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में होती है और पचास व साठ के दशक में भारत के राष्ट्रीय खेल को देश में धर्म जैसा दर्जा दिलाने में उनकी अहम भूमिका थी।

वर्ष 1964 के तोक्यो ओलंपिक में भारत की 1-0 से पाकिस्तान के खिलाफ खिताबी जीत में लक्ष्मण के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। खेल के जानकारों के मुताबिक लक्ष्मण ने उस जमाने में गोल बचाने की भूमिका को नए सिरे से परिभाषित किया और साबित कर दिया कि एक गोलची भी अपने बूते टीम को जीत दिला सकता है।

बहरहाल, महू में सात जुलाई 1933 को जन्मे लक्ष्मण ने अपनी सफलता की इबारत उस दौर में लिखी, जब गोलची न तो छाती ढंकने वाला गार्ड पहनता था, न ही सिर बचाने के लिए हेलमेट। उसके पास रक्षा कवच के नाम पर होते थे तो सिर्फ मामूली पैडस और हॉकी स्टिक।

टोक्यो ओलंपिक (1964) से पहले लक्ष्मण मेलबर्न (1956) और रोम (1960) में आयोजित ओलंपिक में भी अपने खेल के जौहर दिखा चुके थे। तीनों खिताबी मुकाबलों में खास बात यह भी थी कि इनमें भारत का मुकाबला परंपरागत प्रतिद्वन्द्वी पाकिस्तान से था। इनमें भारत को दो बार स्वर्ण और एक बार रजत पदक हासिल हुआ।

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