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जो बात चांदनी चौक में है, अमेरिका, इंग्लैंड में कहां

कुड़ी कुरमुरी.. से देश और दुनिया में धूम मचाने वाले पॉपुलर गायक शंकर साहनी को दिल्ली खूब भाती है। खास तौर पर वे पुरानी दिल्ली और चांदनी चौक और वहां के खान-पान के मुरीद हैं। बस, थोड़ी दिक्कत उन्हें...

जो बात चांदनी चौक में है, अमेरिका, इंग्लैंड में कहां
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 28 Apr 2011 01:26 PM
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कुड़ी कुरमुरी.. से देश और दुनिया में धूम मचाने वाले पॉपुलर गायक शंकर साहनी को दिल्ली खूब भाती है। खास तौर पर वे पुरानी दिल्ली और चांदनी चौक और वहां के खान-पान के मुरीद हैं। बस, थोड़ी दिक्कत उन्हें यहां के ट्रैफिक से है। बताया सत्य सिंधु को दिल्ली से आपका रिश्ता कब और कैसे जुड़ा?

मैं 12-13 साल पहले चंडीगढ़ से इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर नौकरी करने दिल्ली आया था। चंडीगढ़ में ही गायक के रूप में पहचान बन चुकी थी, लेकिन घर का दबाव था कि नौकरी करो। दिल्ली में आकर नौकरी तो कर ली, लेकिन उसमें मन नहीं लग रहा था। संगीत जगत में फिर से वापसी के लिए कोशिश कर ही रहा था। लगभग दो साल बाद संगीत निर्देशक जवाहर वट्टल से मुलाकात हो गई और यारी-यारी.. एलबम तैयार हुआ। एलबम हिट भी हो गया। मैं नौकरी छोड़कर संगीत और दिल्ली की सांस्कृतिक गतिविधियों से पूरी तरह जुड़ गया।

तब का सांस्कृतिक माहौल कैसा होता था और आज का कैसा है?
दिल्ली पॉलिटिकल कैपिटल के साथ-साथ कल्चरल कैपिटल भी है। पूरे देश के लोग यहां रहते हैं और वे अपनी-अपनी संस्कृति को बढ़ावा देते हैं। इससे यहां का सांस्कृतिक माहौल अलग है। यह देखकर बड़ा अच्छा लगता है कि यहां जय महाराष्ट्र, जय बिहार, जय पंजाब, जय गुजरात या जय बंगाल नहीं कहा जाता बल्कि सब जय इंडिया कहने वाले हैं। दिल्ली में रहने वाले देश की बात करते हैं।

तब से आपने खुद में और अपने आसपास क्या परिवर्तन महसूस किया है?
दिल्ली में टीनएजर के दिमाग में सबसे महत्वपूर्ण बात यह हो गई है कि जल्द से जल्द धनवान कैसे हो जाएं। पहले शिक्षा की प्लानिंग होती थी, आज बिजनेस की प्लानिंग होती है। मैटेरियलिज्म बढ़ा है। नेताओं के प्रति लोगों में घृणा बढ़ी है, दोनों के बीच विश्वास कम हो गया है। मीडिया के प्रति विश्वास बढ़ा है क्योंकि उनकी वजह से बहुत सारी बातें सामने आने लगी हैं। धर्म के प्रति लोगों में खासकर पिछले 10 वर्षों में आस्था 100 गुणा बढ़ी है। तब जन्माष्टमी के मौके पर भी 10-20 लोग दिखते थे, आज ऐसे अवसरों पर मंदिरों के बाहर लम्बी-लम्बी लाइनें लगी हैं। इसकी वजह है कि कामनाएं। इच्छाएं बढ़ गई है, लेकिन उस अनुरूप साधन नहीं बढ़े हैं। ऐसे में भगवान की याद आती है। इसका एक लाभ यह हुआ है कि लोगों के अंदर डर का भाव बढ़ा है और काफी लोग शाकाहारी हो गए हैं।

मनोरंजन के लिए कहां जाना पसंद करते हैं?
बार और क्लब में जाता रहता हूं। अशोका का एफ बार पसंद है। वहां महीने में दो-तीन बार चला जाता हूं। 8-10 पार्टियां अटेंड कर लेता हूं।

किन-किन जगहों को आप मिस करते हैं?
अगर लाल किला और चांदनी चौक की ट्रैफिक की समस्या ठीक हो जाए तो मैं वहां रोज जा सकता हूं। वहां छोटी-छोटी दुकानों पर बढ़िया और साफ खाना मिल जाता है। पुरानी दिल्ली का यह क्षेत्र अपने आप में खास है। मैं इतने वर्षों में 10-15 बार ही वहां जा पाया हूं। खाने के अलावा खरीदारी करने के लिए भी चांदनी चौक का जवाब नहीं। ड्रेस हो या मोतियों के सामान, आधुनिक सामान, सजावट के सामन, सब कुछ बढ़िया और सस्ता है। अमेरिका, इग्लैंड, कनाडा आदि शहरों में हर साल जाता हूं लेकिन जो सुकून चांदनी चौक जाकर मिलता है, कहीं और कहां। विदेशों में हवा ताजा है और खूबसूरती भी है, लेकिन अपनापन नहीं होता। इस लिए वे शहर निर्जीव लगते हैं। यहां पुरानी दिल्ली की इन गलियों में धड़कती हुई सुंदरता है। इसके अलावा जनपथ मार्केट भी मुझे बहुत पसंद है जहां मैं एक-एक दुकान पर एक-एक घंटे बिता सकता हूं। वहां कॉफी की एक दुकान है जहां कॉफी पीना बहुत पसंद है।

आपको खाने की कौन-कौन जगहें पसंद हैं?
मैं फूडी नहीं हूं। बाहर मैं फ्रूट आदि ही ले पाता हूं। कभी रेहड़ियों पर चाट खाना अच्छा लगता है, लेकिन वहां की सफाई से संतुष्टि नहीं मिलती और इस कारण खा नहीं पाता।

आपकी पूरी दिनचर्या क्या होती है?
अगर मैं दिल्ली में होता हूं तो सुबह 10-10.30 बजे फ्रैश होता हूं। उसके बाद ईश्वर का नाम लेता हूं और ब्रेकफास्ट में परांठा, दही, लस्सी लेता हूं। फिर दो घंटे रियाज करता हूं। उसके बाद जिम में रनिंग करता हूं। फिर घर आकर फ्रैश होकर स्टूडियो जाता हूं जहां कुछ न कुछ रिकॉर्ड करता हूं। फिर पार्टी/प्रोग्राम आदि में व्यस्त हो जाता हूं। लंच और डिनर के नाम पर दाल, सब्जी, सलाद ले लेता हूं, रोटी चावल नहीं लेता। रात में 2-2.30 बजे तक घर लौट पाता हूं और पूजा करके सो जाता हूं।

समय के साथ अपने घर में क्या-क्या प्रमुख बदलाव कर पाए हैं?
10 साल पहले घर में ज्यादा रहता था और अब 25 प्रतिशत ही रह पाता हूं। पहले एक मंजिला घर था, अब घर में तीन मंजिलें हो गई हैं। व्यस्तता बढ़ गई है जो ईश्वर से मांगा था।

घर का कौन-सा कोना सबसे अधिक पसंद है और क्यों?
मुझे मेरे घर का मंदिर वाला कमरा बहुत पसंद है। वहां मैं रोज कम से कम दो घंटे बिताता हूं। वैसे तो 24 घंटे मैं उनके साथ हूं और वे मेरे साथ हैं लेकिन मंदिर में एक नशे की पूर्ति होती है जिसे मैं रूह की खुराक कहता हूं। भगवान से मांगता कुछ नहीं, लेकिन वहां बैठने का नशा है। फुरसत में घर पर सोना पसंद है। इसके अलावा शायरी करना भी पसंद है। सोना इस लिए अच्छा लगता है क्योंकि नींद पूरी नहीं हो पाती।

पहले और आज की दिल्ली में क्या अंतर महसूस करते हैं?
तब यहां ट्रैफिक इतना ज्यादा नहीं था। कहीं भी आ-जा सकते थे। आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है। आज ट्रैफिक का यह हाल है कि काम होने पर भी बाहर जाने से बचने की कोशिश करता हूं। दूसरी तरफ, मेट्रो की वजह से काफी बदलाव आया है और कहीं भी जाना आसान हो गया है। आज यहां की नाइट लाइफ बढ़ गई है। यहां सन्नाटा नहीं है। यहां की यह लाइफ मुझे बहुत पसंद है।

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