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तुलना न बन जाए जीवनभर का रोना, दोस्ती: जरा संभलकर

अक्सर आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि हमारा व्यवहार कैसा है या हम किस तरह का व्यक्तित्व रखते हैं, यह हमारी संगत से ही पता चलता है। लेकिन क्या आपको पता है ऐसा क्यों है? इसका सीधा सा जवाब है कि...

तुलना न बन जाए जीवनभर का रोना, दोस्ती: जरा संभलकर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 09 Apr 2011 11:29 AM
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अक्सर आपने लोगों को यह कहते हुए सुना होगा कि हमारा व्यवहार कैसा है या हम किस तरह का व्यक्तित्व रखते हैं, यह हमारी संगत से ही पता चलता है। लेकिन क्या आपको पता है ऐसा क्यों है? इसका सीधा सा जवाब है कि हम चाहे-अनचाहे अपने दोस्तों की बहुत सारी अच्छी और बुरी आदतों को अपना लेते हैं।

‘मां मुझे भी अंकुर की तरह डांस सीखना है, मुझे डांस क्लास में जाना है।’ यह डिमांड मेरे 12 साल के भतीजे अमन ने अपनी मम्मी से की थी। जबकि अमन से कई बार पहले डांस सीखने को कहा जाता था तो वह मना कर देता था। दरअसल, बचपन से ही हमें अपने दोस्तों से बेहतर करने की इच्छा जाग जाती है। दोस्तों से अच्छे मार्क्स लाना, एक्टिविटीज में उनसे अच्छा प्रदर्शन करना, कॉलेज में ज्यादा फंकी या ट्रेंडी कपड़े पहनने से लेकर उनसे ज्यादा गर्लफ्रेंड या ब्वायफ्रेंड बनाने की चाह, इसी का परिणाम है। 

जब हम कामकाजी हो जाते हैं तो यह आदत उनसे बड़े घर और बड़ी गाड़ी लेने में तब्दील हो जाती है। हम चाहे कितना भी कमाते हों या हमारे पास कितनी भी बड़ी गाड़ी हो, अगर वह हमारे किसी दोस्त की कमाई और गाड़ी से छोटी है तो हमें सुकून नहीं मिलता।

बंगलुरू के गणेश चंद्र के अनुसार ‘अगर हमारे दोस्तों की जॉब किसी अच्छी जगह लगती है तो अच्छा लगता है, यदि हम किसी अच्छी जगह काम नहीं करते तो हमें यही बात चुभ सकती है। ये बातें तब ज्यादा चुभती हैं जब हम अपने दोस्तों के साथ किसी अच्छे रेस्तरां में बैठे हों और बिल भरने के लिए हमें दस बार सोचना पड़े, उस समय वाकई बुरा लगता है।’
अच्छी बातें अपनाते हैं

हम अपने दोस्तों की अच्छी आदतों को अपनाते हैं। जैसे यदि हमारे दोस्तों में सभी अपनी सेहत पर ध्यान देते हैं तो हम भी अपनी सेहत पर ध्यान देना शुरू कर देते हैं। दिल्ली के मुकेश सिंह बताते हैं- ‘मेरे सारे दोस्तों में मैं सबसे पतला हूं, इसीलिए सब मेरा मजाक उड़ाते हैं, जो मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता। इसीलिए मैंने भी जिम जाना शुरु कर दिया है।’ यह केवल मुकेश के जिम जाने तक की ही बात नहीं है।

दोस्ती होती ही एक जैसे लोगों के बीच में है। जिनकी सोच कहीं न कहीं मेल खाती है, या सेहत एक जैसी होती है, या कपड़े या किताबों का शौक। दिल्ली के मैत्रेयी कॉलेज की तेजस्विता बताती हैं कि ‘लड़कियों में दोस्तों का असर कुछ ज्यादा पड़ता है। यदि किसी स्टाइलिश ग्रुप में कोई सिंपल लड़की आ जाती है तो देर-सवेर वह भी उन्हीं स्टाइलिश लड़कियों के रंग में रंग जाती है और अगर वह ऐसा न कर पाए तो या तो उसे पूरे ग्रुप में मजाक का पात्र बनना पड़ता है या सब उससे दूरी कायम कर लेते हैं।’ बात यहीं तक नहीं है। हम कैसे इंसान बनेंगे, यह सब भी हमारे दोस्तों पर ही निर्भर करता है। यदि हमारे दोस्तों को धोखाधड़ी, घूसखोरी आदि में कोई बुराई नहीं दिखती है, तो इन सबको हम भी अपने जीवन में बुराई नहीं, बल्कि जिंदगी जीने का तरीका मान लेते हैं।

यह बहुत जरूरी है कि हम अपने दोस्तों का चुनाव बहुत सोच-समझकर करें क्योंकि अच्छे दोस्त जहां जिंदगी को खुशहाल बनाते हैं, वहीं बुरे दोस्त जिंदगी तबाह कर देते हैं।

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