सफाईकर्मियों का महत्व
हमारे देश में सबसे अधिक प्रोत्साहन उस वर्ग को मिलना चाहिए, जो सबसे अधिक उपेक्षित है। जी हां, हमारे देश में सफाई के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता है, जबकि यह काम करने वाले देशवासियों के स्वास्थ्य के...
हमारे देश में सबसे अधिक प्रोत्साहन उस वर्ग को मिलना चाहिए, जो सबसे अधिक उपेक्षित है। जी हां, हमारे देश में सफाई के काम को हेय दृष्टि से देखा जाता है, जबकि यह काम करने वाले देशवासियों के स्वास्थ्य के लिहाज से काफी बड़ी जिम्मेदारी निभाते हैं। विदेश में रहकर मैंने देखा है कि वहां सफाईकर्मी, डॉक्टर, इंजीनियर आदि में कोई खास फर्क नहीं है। वेतन लगभग सभी का समान है। तभी तो वहां भारतीय भी बड़ी शान से कहते हैं कि हम क्लीनर का काम करते हैं। जब भारतीय विदेश में क्लीनिंग शान से करते हैं, तो अपने देश में हम क्लीनिंग को महत्वपूर्ण क्यों नहीं मानते? हमें अपना नजरिया बदलना होगा। सफाई क्षेत्र पर भी अन्य क्षेत्रों की भांति ध्यान देना होगा, तभी देश में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा, अन्यथा तब तक हम स्वस्थ नहीं होंगे, ऊर्जावान नहीं होंगे।
नरेंद्र कुमार बतरा, एच 135, सेक्टर-23, राजनगर, गाजियाबाद
अनुकरणीय संघर्ष
इरोम शर्मिला करीब एक दशक से अनशन पर बैठी हैं। प्लास्टिक टय़ूब के जरिये भोजन देकर इस सामाजिक कार्यकर्ता को जीवित रखा गया है। मणिपुर से आर्म्ड फोर्सेस (स्पेशल पावर्स) ऐक्ट 1958 (एएफएसपीए) को वापस लेने की मांग कर रही शर्मिला की बेबसी आज भी बरकरार है। मौजूदा केंद्र सरकार अपने काले कारनामों में ही इस कदर उलझी है कि उसे अहिंसक सत्याग्रह करने वालों की दूर-दूर तक कोई सुध नहीं है। सरकारें यों भी उस वक्त तक इंतजार करती हैं, जब तक कि कोई व्यक्ति या संगठन हिंसा या बल प्रयोग के रास्ते अपनी मांग मनवाने का दबाव नहीं बनाता।
सौरभ शर्मा, खालसा कॉलेज, देवनगर
यह तो पाखंड है
यह सत्य है कि आजकल अनेक धर्माचार्य मठाधीश बनकर अपने अहंकार को पोषित करने में लगे हैं। उनका ध्यान धर्म के मूल तत्व की अपेक्षा भौतिक साधनों पर केंद्रित होता जा रहा है। इसका सबसे बड़ा प्रमाण यही है कि प्रवचन स्थलों तथा मंदिरों में जनता की भीड़ तो बढ़ रही है, फिर भी समाज में नैतिक मूल्यों का ह्रास हो रहा है। साफ है, लोग अब धार्मिक होने का दिखावा ज्यादा करने लगे हैं। यही पाखंड धर्म के साथ-साथ समाज को भी नुकसान पहुंचा रहा है।
युधिष्ठिर लाल कक्कड़, लक्ष्मी गार्डन, गुड़गांव, हरियाणा
क्यों हारे कंगारू
तीन बार के विश्व चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के विश्व कप 2011 से बाहर होने की घटना ने सबको अचंभित कर दिया है। टीम इंडिया के मौजूदा फार्म को देखकर उसकी जीत के बारे में किसी ने सोचा भी नहीं होगा, लेकिन एक बात तो जरूर उजागर हो चुकी है कि अच्छा खेलने से ही जीत मिलती है, न कि बड़े नामों से। वैसे यह प्रकृति का नियम है कि किसी के उत्थान के साथ किसी का पतन भी जुड़ा होता है। आज टीम ऑस्ट्रेलिया अपने बुरे दौर से गुजर रही है। इसका कारण यह है कि पुराने खिलाड़ी जोश में नहीं हैं और टीम में एकजुटता का अभाव है। क्रिकेट में अपनी प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए ऑस्ट्रेलिया को लय में लौटना ही होगा।
सोनु कुमार ‘सुमन’,बी-466, तिमारपुर, दिल्ली
हमारा-तुम्हारा भ्रष्टाचार
नक्कारखाना में राजेंद्र धोड़पकर का ‘अपना-अपना भ्रष्टाचार’ पढ़ा। उन्होंने वर्तमान भारतीय राजनीति व नेताओं पर सटीक टिप्पणी की है। वाकई आज हर क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनीतिक दल के नेता भ्रष्टाचार के रंग में रंगे हैं, किंतु वे दूसरों को रंगा सियार घोषित करने पर तुले रहते हैं। आज के राजनीतिक माहौल को देखते हुए हरिशंकर परसाई की ‘भेड़ और भेड़िए’ की कथा बरबस ही याद आ जाती है।
नीतीश कुमार निशांत, जामिया हमदर्द, दिल्ली
तिब्बत के पर्याय
दलाई लामा तिब्बत के सर्वोच्च आध्यात्मिक नेता ही नहीं हैं, बल्कि वह निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रमुख होने के नाते तिब्बत के राष्ट्राध्यक्ष भी हैं। उन्होंने राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा कर दी है। यह दलाई लामा ही हैं, जिनके नेतृत्व में तिब्बत को चीन से आजाद कराने का सपना तिब्बती संजोए हुए हैं। यही कारण है कि चीन दलाई लामा को अपने लिए एक बड़े खतरे के रूप में लेता है। दलाई लामा की हर गतिविधि पर उसकी पैनी नजर रहती है, जिससे उनकी सुरक्षा पर हमेशा खतरा मंडराता रहता है। ऐसे में, दलाई लामा की सुरक्षा व्यवस्था अचूक बनाने के प्रति गृह मंत्रालय का गंभीर होना राहत की बात है। पिछले दिनों चीनी जासूसों की घुसपैठ की खबरों के बाद दलाई लामा की सुरक्षा में तैनात कर्मियों की संख्या 150 तक बढ़ा दी गई है, जो चौबीसों घंटे उन्हें अपनी सुरक्षा में लिए रहेंगे। इसके अलावा रासायनिक और अन्य प्रकार के हमलों से भी उनकी सुरक्षा के पुख्ता प्रबंध किए जा रहे हैं। अब भारत सरकार को भी तिब्बत को चीन का स्वायत्त क्षेत्र मानने की अपनी ऐतिहासिक भूल को दुरुस्त करना चाहिए। उसके द्वारा हमारे अरुणाचल को अपना हिस्सा बताने का यही समयोचित और मुंहतोड़ जवाब होगा।
अक्षित तिलक राज गुप्ता, रादौर, हरियाणा