अब तक टोलों की पहचान नहीं
महादलित कल्याण के लिए अभियान चला रही सरकार को यह पता ही नहीं कि बिहार में कहां-कहां पर महादलितों की बहुलता है। जिलों के तैनात अफसर आठ महीने के बाद भी महादलित टोलों की पहचान कर पाने में नाकाम रहे। वह...
महादलित कल्याण के लिए अभियान चला रही सरकार को यह पता ही नहीं कि बिहार में कहां-कहां पर महादलितों की बहुलता है। जिलों के तैनात अफसर आठ महीने के बाद भी महादलित टोलों की पहचान कर पाने में नाकाम रहे। वह भी तब जबकि महादलितों के मुद्दे पर बिहार में राजनैतिक बवाल मचा है।ड्ढr ड्ढr अफसरों की नाकामी की वजह से महादलित टोलों में मोबाइल जन वितरण प्रणाली योजना शुरू नहीं हो सकी। इस महत्वाकांक्षी योजना को खटाई में पड़ता देख अब फिर से महादलित आबादी की बहुलता वाले इलाके की पहचान की कवायद शुरू हो गयी है। खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग ने जहानाबाद को छोड़कर अन्य सभी जिलों से महादलित टोलों की जानकारी मांगी है। गरीबों को मिलने वाला गेहूं, चावल और किरासन कालाबाजारियों से बचाने के लिए ही मोबाइल जन वितरण प्रणाली योजना शुरू की जा रही है।ड्ढr ड्ढr सरकारी गाड़ी महादलित टोलों में जाकर अनाज एवं अन्य सामग्रियां बांटेगी। इसी सिलसिले में गत वर्ष 5 मई, 1 अक्टूबर और 17 नवम्बर को सभी जिलों से महादलित टोलों की जानकारी मांगी गयी लेकिन साल खत्म हो जाने के बाद भी विभाग को अबतक रिपोर्ट नहीं मिली। इसी वजह से विभाग ने 2 जनवरी को सभी प्रमंडलीय आयुक्तों और जिलाधिकारियों को नये सिर से पत्र लिखकर महादलित टोलों की रिपोर्ट शीघ्र तलब की है।ड्ढr ड्ढr रिपोर्ट मिल जाने के बाद इसे केन्द्र सरकार को सौंपकर अतिरिक्त अनाज की मांग किये जाने के भी आसार हैं। महादलितों में शामिल मुसहर, भुईयां, रजवार, मेहतर, डोम, बंतर, चौपाल, नट, तुरी, भोगता, कुररियार, हलालखोर, पान, स्वासी, दवगर, बाउरी, कंजर, लालबेगी, घासी, धोबी और पासी की कुल आबादी 4है। सुपौल, सहरसा, मधेपुरा, अररिया और पूर्णिया में इनकी संख्या सबसे अधिक है।