नीति बने तो पान के निर्यात पर चढ़ेगी लाली
बिहार के मगही पान के दीवाने सिर्फ भारत में ही नहीं है, अब मगही पान भी ग्लोबल होने लगा है, लेकिन विदेशियों के मुंह में मगही पान की लाली किसानों के चेहर पर लाली नहीं ला पा रही, क्योंकि इसे कृषि का...
बिहार के मगही पान के दीवाने सिर्फ भारत में ही नहीं है, अब मगही पान भी ग्लोबल होने लगा है, लेकिन विदेशियों के मुंह में मगही पान की लाली किसानों के चेहर पर लाली नहीं ला पा रही, क्योंकि इसे कृषि का दर्जा प्राप्त नहीं है। सिंगापुर, मलेशिया, नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में मगही पान की काफी मांग है। लेकिन बड़ी समस्या यह है कि बिहार सरकार ने इसे कृषि का दर्जा नहीं दिया है। मगही पान की खेती औरंगाबाद जिले में देव प्रखंड के केताकी, तेजु, बिगहा, एरौरा, देव, जोधपुर आदि में होती है जिसे चौरसिया परिवारों के लोग करते है। पान कृषक श्यामलाल चौरसिया, महिला किसान सावित्री देवी और रामस्वरूप चौरसिया कहते हैं कि पहले तो पान की खेती से पेट भी नहीं भरता था लेकिन अब दिन संवरने लगे हैं। विदेशों में हो रही मगही पान की मांग के कारण वाराणसी कोलकाता एवं इलाहाबाद के व्यवसायी यहां पहुंच रहे हैं। बिहार सरकार द्वारा इसे कृषि में शामिल नहीं किए जाने से नाराज किसानों का कहना है कि अगर सरकार पान की खेती की आेर ध्यान दे तो पूरे बिहार को अच्छी आमदनी होगी। लेकिन आश्चर्य यह है कि पान की खेती को सरकार ने बागवानी मिशन में रखा है। कृषकों ने बताया कि विदेशों से मांग शुरू होने से पहले लागत के अनुसार आमदनी नहीं होने से परंपरागत रूप से पान की खेती करने वाले कृषक इसकी खेती से मुंह मोड़ने लगे थे। एक कट्ठे की पान की खेती में पचास हजार रुपये की लागत आती है। हाल के वषर्ो में खेती में प्रयोग होने वाली बांस बल्ली बनहेरी आदि के दाम बढ़ जाने और पान के पो पर कीड़ों का प्रकोप होने से पैदावार में कमी आई है। पहले एक कट्ठे में अच्छी फसल होती थी तो डेढ़ से दो लाख रुपये की आमदनी हो जाती थी। किसानों ने बताया कि विदेशी मांग बढ़ने के बावजूद यदि पान की पैदावार करने वाले किसानों की इन समस्याआें पर ध्यान नहीं दिया गया तो उन्हें उनकी उपज से लाभ नहीं मिल सकेगा और बढ़ी हुई मांग का वे फायदा नहीं उठा पाएंगे। किसानों ने बताया कि इलाहाबाद, लखनऊ, कोलकाता और वाराणसी जैसे शहरों में दो सौ पो पान की ढोली की कीमत साठ से सतर रुपये मिलती थी, लेकिन आज के दौर में पो पर कीड़े के प्रकोप से एक ढ़ोली की कीमत बीस से तीस रुपये मिल रही है। राय सरकार से पान की खेती पर न तो कोई अनुदान मिलता है और न ही बैंक द्वारा क्रेडिट कार्ड बनाया जाता है। पान की खेती देखने के लिए कोई कृषि वैज्ञानिक यहां का दौरा नहीं करते। जिला कृषि अधिकारी शिलाजीत सिंह ने बताया कि पान की खेती को बढ़ावा देने के लिए एक परियोजना तैयार की जा रही है। किसानों को सहायता मिली तो मगही पान विश्वविख्यात हो जाएगा और आर्थिक स्वरूप बदल जाएगा।