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ब्लॉग वार्ता : कमीज की तरह बदलते शहर

सचिन श्रीवास्तव लुधियाना की नागरिकता भरे मन से छोड़ता हूं। आधिकारिक रूप से अब मेरा लुधियाना से कोई संबंध नहीं है। जो संबंध है, वो अन्य प्रकार का है, जिसे पदों की भांति छोड़ा नहीं जा सकता। इस पंक्ति...

ब्लॉग वार्ता : कमीज की तरह बदलते शहर
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 22 Feb 2011 11:21 PM
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सचिन श्रीवास्तव लुधियाना की नागरिकता भरे मन से छोड़ता हूं। आधिकारिक रूप से अब मेरा लुधियाना से कोई संबंध नहीं है। जो संबंध है, वो अन्य प्रकार का है, जिसे पदों की भांति छोड़ा नहीं जा सकता। इस पंक्ति को पढ़ने के बाद लगा कि यह ब्लॉग आप तक पहुंचना चाहिए। हम सब एक ऐसे दौर में हैं, जहां शहर कमीज की तरह बदले जा रहे हैं। ज्यादातर लोग प्रवासी हो चुके हैं। अस्थायी पते को लिए घूम रहे हैं। पिछले शहर की याद में डूबे रहते हैं और नए शहर के अजनबीपन से परेशान।

इस ब्लॉग का नाम है नई इबारतें। पता है http://naiebaraten.blogspot.com। ब्लॉगर सचिन भोपाल के रहने वाले हैं और पेशे से पत्रकार हैं। भोपाल, जालंधर, गुना, रांची, जयपुर, सागर, बिलासपुर, इलाहाबाद, औरंगाबाद, नागपुर और लखनऊ की धूल फांक चुके हैं। अपने बारे में लिखते हैं कि इसके बाद मेरठ से कानपुर, कानपुर से मेरठ, मेरठ से लुधियाना, लुधियाना से भोपाल, भोपाल से इंदौर और इंदौर से गाजियाबाद तक कई तरह के अखबारी दिमागों में झांका। इतने सारे शहरों से होकर पता नहीं यह पत्रकार इनसे गुजर रहा था या खुद के भीतर के कई शहरों से। सचिन लिखते हैं कि यह सचिन लुधियानवी के अंतिम शब्द हैं। अब तो मुझमें बुंदेलखंडी बसता है, जो लुधियानवी था, वह फारिग हो चुका है।

होने को क्या नहीं हो सकता। अब शहर है, तो उसका दिल भी होगा, जो कहीं न कहीं धड़कता होगा। उदाहरण से बात करें तो मुंबई को ही देखो। जब धड़कता है उसका दिल, तो देश के किसी भी कोने में सुनी जा सकती है आवाज। हालांकि मुंबई ने अपने प्रिय दोस्त कोलकाता से चेन्नई के साथ एक रात गप्पबाजी में कहा था कि उसका दिल हमेशा दिल्ली के लिए धड़कता है। इतना कह कर मुंबई के चेहरे पर उदासी छा गई, जिसमें अरब सागर का खारापन था। फिर उस रात तीनों दोस्त देर तक रोते रहे।

उसी रात के बाद मुंबई के आंसू सूखे नहीं। अब उस रात बहे आंसुओं को हम अरब सागर कहते हैं और ठीक उसी रात ढांढ़स बंधाने के दौरान गीली हुई कोलकाता और चेन्नई की आंखें बंगाल की खाड़ी को भर गईं। अपनी विदेशी सहेलियों और ताकतवर दोस्तों में उलझी दिल्ली तक यह बात न पहुंची और न ही पहुंचाने की कोशिश की गई।

सचिन का यह लिखा रोमांचित कर गया मैं खुद अपने भीतर के शहर को बाहर के शहर से जोड़ता रहता हूं। शहरों का चरित्र बदल रहा है। स्थायी निवासी भी एक किस्म की अजनबीयत का शिकार हो रहे हैं। प्रवासी तो हैं ही। दिल्ली जैसे बड़े शहरों में स्थायी या पुराने निवासियों को भी अपने ही शहर में इतने अजनबी चेहरों से घिर जाने का दर्द होता होगा। मगर कभी उनकी तरफ से अपने शहर को इस नजरिये से देखने का सुख प्राप्त नहीं हुआ है। हालत यह हो गई है कि लोग जिस घर में रहते हैं, उसी का दाम पूछने के लिए प्रॉपर्टी डीलर को फोन करते रहते हैं।

सचिन ने भोपाल पर कुछ अच्छे लेख लिखे हैं। चार इमली भोपाल का वह इलाका है, जहां रहने वालों का बड़ा हिस्सा खास है। यह बात मेरे एक दोस्त ने कही थी। आगे सचिन लिखते हैं कि वह अपने पते में चार इमली चाहता था यानी यहां रहना उसका सपना था, जिसे पूरा हुए अरसा बीत गया, लेकिन न तो उसके चेहरे पर सपना पूरा होने का सुकून है और न ही ताकत पा लेने की भ्रामक तकलीफ। उसकी बातचीत में एयरोप्लेन पार्क, बैडमिंटन हॉल और कम्युनिटी हॉल का जिक्र भी नहीं आता, जो कभी उसके बोले वाक्यों का सबसे जरूरी हिस्सा होता था।

सचिन लिखते हैं कि असल में चार इमली में रहने वालों के चार चेहरे होते हैं। पहला उनका निजी चेहरा, जिसे वे कभी नहीं दिखाते। दूसरा, शहर की जिम्मेदारी का चेहरा, जिसे हम नहीं देख सकते। तीसरा, चार इमली की हरियाली से भरा खुशनुमा चेहरा, जो सबके चेहरे पर एक साथ चस्पां होता है और चौथा, नए भोपाल का चेहरा, जिसे देखने वाली आंखें या तो बुझती जा रही हैं या फिर उनमें मोतियाबिंद उतरने लगा है।

ऐसी खूबियों और खामियों वाली अनेक गलियां हर शहर में होती हैं। ये सारे किस्से तभी पनप सके क्योंकि वहां स्थायीपन का भाव था। पहले लोगों से बसता था शहर और अब तो डेवलपर कहलाने वाले बिल्डरों के बनाए ड्रीम सिटी में बसता है शहर। हर दिन फैलते और बड़े हो रहे शहरों में हम पुराने शहरों की तरफ तभी जाते हैं, जब शादी-ब्याह की तैयारी करनी होती है या फिर हार्डवेयर का सामान खरीदना होता है या फिर कोई पुराना गोलगप्पे वाला याद आता है।

ravish@ndtv.com
लेखक का ब्लॉग है naisadak.blogspot.com

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