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कर्नाटक : जीत ने पेश की नई चुनौती

र्नाटक में नया साल भारतीय जनता पार्टी के लिए खुशखबरी लेकर आया। पार्टी ने विधानसभा उपचुनाव में पांच सीटें जीतीं और उसे विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया। अब 224 सदस्यों वाली विधानसभा में उसके 115...

 कर्नाटक : जीत ने पेश की नई चुनौती
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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र्नाटक में नया साल भारतीय जनता पार्टी के लिए खुशखबरी लेकर आया। पार्टी ने विधानसभा उपचुनाव में पांच सीटें जीतीं और उसे विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिल गया। अब 224 सदस्यों वाली विधानसभा में उसके 115 सदस्य हो गए हैं। इसके अलावा वे छह स्वंतत्र विधायक तो हैं हीं जो येदुरप्पा की सरकार को समर्थन दे रहे हैं। आठ सीटों के लिए उपचुनाव हुए थे जिनमें से भाजपा ने पांच पर जोरदार जीत हासिल की। यह जीत इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि भाजपा पर दलबदल करवाकर राज्य की जनता पर उपचुनाव थोपने का आरोप लगाया जा रहा था। नि:संदेह यह स्थिरता के लिए वोट है, लेकिन यह जीत एक तरह से ठोंक बजाकर तैयारी की गई एक अच्छी रणनीति का भी परिणाम थी। ‘ऑपरेशन लोटस’ कहलाने वाली रणनीति में एक दूरदृष्टि थी। इसके लिए उन लोगों को चुना गया था जिनका अपने इलाके में खास रुतबा है। साथ ही मतदान तक की सारी कार्ययोजना काफी ध्यान से बनाई गई थी। भाजपा ने दल-बदल करने वाले सात लोगों में से सिर्फ पांच को ही टिकट दिया था और मतदाताओं ने उन सभी को चुनकर वापस भेज दिया। दल-बदल करने वाले इन सात लोगों में चार जनता दल स यानी जेडीएस के थे और तीन कांग्रेस के। हालांकि इन उपचुनावों से जेडीएस के लिए भी अच्छी खबर आई। बाकी तीन सीटें उसी ने जीतीं। इनमें मुधुगिरी की जीत तो पार्टी के लिए खास मायने रखती है। इसके अलावा पार्टी ने मद्दुर और तुरुवकेर की सीटें भी जीतकर यह तो दिखा ही दिया कि वह अभी भी राज्य में एक बड़ी ताकत है। मधुगिरी से पूर्व मुख्यमंत्री एच. डी. कुमारस्वामी की पत्नी अनिता ने अपना पहला चुनाव लड़ा। हालांकि यह माना जा रहा था कि यहां उनका मुकाबला मुख्य रूप से भाजपा से होगा, लेकिन उन्होंने भाजपा को तीसर नंबर पर पहुंचा दिया। इस सीट पर भाजपा ने कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे चेन्निगप्पा को टिकट देकर भूल की। उनकी छवि भ्रष्ट नेता की है। पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ प्रचार किया था। मद्दुर और तुरुवकेर को लेकर भाजपा थोड़ा संतुष्ट जरूर हो सकती है। ये सीटें कांग्रेस और जेडीएस का गढ़ रह चुकी हैं। लेकिन इस बार यहां भाजपा ने काफी गहरी पैठ बनाई है। उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए बुरी खबर बनकर ही आए। तुरुवकेर, करवाड़ और डोड्डाबल्लापुर की जिन सीटों को पार्टी ने सात महीने पहले आराम से जीत लिया था, उन्हें वह इस बार हार गई। उसके लिए संतोष की बात सिर्फ यही है कि आठ सीटों में से छह पर वह दूसर नंबर पर रही। इससे पार्टी की यही छवि बनी कि यह गुटबाजी से कभी मुक्त नहीं हो सकती है। यही हाल रहा तो वह राज्य में बेमतलब भी हो सकती है। उसी राज्य में जहां वह कुछ ही समय पहले लगभग अजेय मानी जाती थी। इसकी सबसे बुरी हार मद्दुर में हुई। वहां पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री एस. एम. कृष्णा के भतीजे को टिकट दिया था, लेकिन उनकी जमानत तक जब्त हो गई। पिछले पांच-छह साल से यह पार्टी लगतार नीचे लुढ़क रही है। यह भी पूछा जाने लगा है कि अगर यह जेडीएस से गठाोड़ कर लेती तो शायद बेहतर नतीजे मिल सकते थे। पार्टी के लोगों का कहना है कि कांग्रेस आलाकमान राज्य में उस फामरूले को तलाशता रहा जिससे पार्टी फिर से राज्य में अहमियत पा सकती है। लेकिन पार्टी के भीतर की गुटबाजी को ठीक करने पर उसने जरा भी ध्यान नहीं दिया। एक समय जब पार्टी ने जेडीएस के नेता सिद्धारमैय्या और उनके समर्थकों को पार्टी में लाने में कामयाबी हासिल कर ली थी तो लगा था कि उसमें नई जान आ सकती है। लेकिन कांग्रेस नेताओं ने उनके अनुभव और सहयोग का लाभ लेने की कोई जरूरत नहीं समझी। सिद्धारमैय्या पार्टी के भीतर भी किसी ‘बाहरी’ की तरह से ही हैं और अब खबर हैं कि उन्होंने पार्टी छोड़ने का मन बना लिया है। अगर ऐसा हुआ तो कांग्रेस के लिए यह एक और बुरी खबर होगी, वह भी लोकसभा चुनाव के ठीक पहले। इन नतीजों ने येदुरप्पा सरकार के सामने एक चुनौती भी पेश कर दी है। अब बहुमत के आभाव का बहाना उनसे छिन गया है। अब कर्नाटक की इस पहली भाजप सरकार से सर्वमुखी विकास के उनके सार वायदे पूर करने की उम्मीद की जाएगी। मुख्यमंत्री ने यह साफ कर दिया है कि जिन पांच स्वतंत्र विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह दी गई है उन्हें हटाया नहीं जाएगा। अब सब कुछ इस पर निर्भर करगा कि उनकी सरकार का जमीनी स्तर पर कामकाज कैसा रहता है। लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।

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