झारखंड में राष्ट्रपति शासन के पर्याप्त कारण
झारखंड केयरटेकर सरकार के हवाले है। कार्यकारी मुख्यमंत्री शिबू सोरन बीमार हैं और अस्पताल में भरती हैं। झामुमो के रणनीतिकार उनके अस्पताल से बाहर आने के इंतजार में हैं। यूपीए के एक बड़े रणनीतिकार राजद...
झारखंड केयरटेकर सरकार के हवाले है। कार्यकारी मुख्यमंत्री शिबू सोरन बीमार हैं और अस्पताल में भरती हैं। झामुमो के रणनीतिकार उनके अस्पताल से बाहर आने के इंतजार में हैं। यूपीए के एक बड़े रणनीतिकार राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद फिलहाल विदेश दौर पर हैं। वह 18 जनवरी को लौटेंगे। कांग्रेस, राजद और निर्दलीय विधायक रांची-दिल्ली उछल-कूद कर थक चुके हैं और वापस भी लौट चुके हैं। राजभवन पूरी स्थिति पर नजर रखते हुए और केंद्र को झारखंड की वर्तमान स्थिति से अवगत करा चुका है। कुल मिलाकर देखें तो वैकल्पिक स्थायी सरकार बनाने की दिशा में कहीं कुछ दिखाई नहीं देता है। सूबे की जनता इस ऊहापोह के हालात से उब चुकी है। सबकी जुबान पर अब एक ही बात आ रही है- इससे तो अच्छा है, झारखंड में अब राष्ट्रपति शासन ही लग जाना चाहिए।ड्ढr राष्ट्रपति शासन अब नहीं तो कबड्ढr आखिर कार्यकारी सरकार कब तक बनी रहेगी? संविधान विशेषज्ञ कहते हैं कि यह लंबे दिनों तक नहीं चल सकती है। इसे खत्म करने और वैकल्पिक सरकार बनाने की दिशा में कहीं कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। राज्य में अराजक स्थिति बन गयी है। हाारों सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर हैं। रिम्स में भी हड़ताल हो गयी है। सरकार का कामकाज ठप है। आखिर राज्य को कब तक अनिश्चितता की स्थिति में रखा जायेगा?ड्ढr कांग्रेस-राजद की पसंद अलगड्ढr झामुमो के पास 17 विधायक हैं, इसलिए वह सीएम की कुर्सी की दावेदारी किसी भी कीमत पर छोड़ने के मूडमें नहीं है। शिबू सोरन ने पहले ही कह दिया है। झामुमो के बाकी नेता उनकी बातों को ही दुहरा रहे हैं। कांग्रेस के लिए झामुमो के साथ चलना लाचारी है, लेकिन चंपई सोरन के नाम पर उसे एलर्जी है। राजद की पसंद अलग है। झामुमो को अंदर से वह पसंद नहीं करता है। बाकी बचे निर्दलीय। सत्ता जिसकी तरफ होगी, वे उसके साथ होंगे।ड्ढr सरकार बन भी गयी तो चलेगी कैसेड्ढr झामुमो यदि अपने उम्मीदवार का नाम भी बदल दे और सरकार बन भी गयी तो यह कितने दिनों तक चलेगी ? एक बड़ी राजनीतिक शख्सियत होने की वजह से शिबू सोरन पर निर्दलीयों और छोटे दलों का कोई दबाव नहीं बन पाया था। लेकिन झामुमो से जो शख्स सीएम बनेगा, उसका कद शिबू की तुलना में छोटा ही होगा। उसपर निर्दलीय समेत बड़े दलों का भी दबाव रहेगा। बात-बात पर रूठने-नाटक करनेवाले मंत्रियों से कैसे निपटेंगे?ड्ढr ऊपर से दिल मिले, भीतर फांके तीनड्ढr यूपीए के अंदर अब कतर-ब्योंत की राजनीति चल रही है। ऊपर से सभी एकाुट होने का नाटक करते हैं, वह भी सरकार के लिए। लेकिन भीतर से किसी का दिल नहीं मिलता है। सत्ता में बने रहने के उद्देश्य के अलावा यूपीए के पास अब कोई एजेंडा नहीं है। यूपीए के विधायकों में न तो वैचारिक एकाुटता है, न सैद्धांतिक। मतलबपरस्त राजनीति जनहित में नहीं हो सकती।ड्ढr सरकार क्यों और किसके लिएड्ढr हर व्यक्ित की जुबान पर बस एक ही सवाल है-सरकार किसकी, किसके लिए और क्यों? दस महीने में राज्य में सत्तर फीसदी विकास की राशि खर्च नहीं हुई। मंत्री कानून को ताक पर रख कर मनमानी करते रहे। स्वहित और पार्टीहित से अलग कोई काम नहीं किया। एक भी बड़ा फैसला नहीं हुआ। ऐसे में अगर सरकार बन भी गयी, तो उससे क्या फायदा?