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Hindi News मंगल सिंह के सामने दुम दबाकर भागते हैं ‘आतंकी’

मंगल सिंह के सामने दुम दबाकर भागते हैं ‘आतंकी’

खास जगहों पर, खास लोगों की सुरक्षा आम हाथों में नहीं दी जा सकती, खासकर तब, जब ‘आतंकी’ पुलिस और सीआईएसएफ को ‘घुड़की’ या गच्चा देते हुए मनमानी करने के आदी हो चले हों। ऐसे में सामने आता है एक खास नाम,...

 मंगल सिंह के सामने दुम दबाकर भागते हैं ‘आतंकी’
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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खास जगहों पर, खास लोगों की सुरक्षा आम हाथों में नहीं दी जा सकती, खासकर तब, जब ‘आतंकी’ पुलिस और सीआईएसएफ को ‘घुड़की’ या गच्चा देते हुए मनमानी करने के आदी हो चले हों। ऐसे में सामने आता है एक खास नाम, मंगल सिंह। सात साल का छरहरा गबरू जवान। घुसपैठिऐ को पलक झपकते बाहर का रास्ता दिखाना जिसका खानदानी पेशा है। एक फरवरी को मंगल की अग्निपरीक्षा है। इस दिन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील अंतराराष्ट्रीय सूराकुंड ट्रेड-फेयर का उद्घाटन करने फरीदाबाद में होंगी। राष्ट्रपति की मौजूदगी में ‘आतंकी बंदरों’ के यल्गार से उद्घाटन समारोह को सुरक्षित रखने की अहम जिम्मेदारी मंगल को सौंपी गई है। भाई-बहनों की तरह मंगल सिंह भी बड़ी जिम्मेदारी संभालने को तैयार है। मंगल सिंह दरअसल एक लंगूर का नाम है। इसका संबंध लंगूरों के उस खानदान से है, जिसने राष्ट्रपतिभवन, पार्लियामेंट हाउस, साउथ ब्लॉक, नार्थ ब्लॉक, आकाशवाणी, दूरदर्शन, तीस हाारी, कृषि भवन, तुगलकाबाद के इलेक्िट्रक इांन लोकोशेड जसे महत्वपूर्ण स्थानों को बंदरों के आतंक से बचाए रखने का जिम्मा संभाल रखा है। लखनऊ, बाराबंकी के सईद खां और उनके बड़े भाई गुल खां पुश्तैनी लंगूर पालने वाले हैं। इनके पाले लंगूर फरीदाबाद सहित एनसीआर के दूसर शहरों के महत्वपूर्ण ठिकाने पर लगे हुए हैं। प्रत्येक लंगूर के एवज में प्रतिमाह साढ़े सात हाार रुपये वसूले जाते हैं। सईद बताते हैं कि पालने और भोजन पर प्रत्येक लंगूर पर महीने में हाार से पंद्रह सौ रुपये खर्च होते हैं। इन्हें सर्दी से बचाने को खास व्यवस्था भी करनी पड़ती है। दिलचस्प बात यह है कि इनके मालिक मुस्लिम होते हुए भी इनके हिन्दू नाम रखे हैं। सईद कहते हैं, ‘राम की वानर सेना का नाम मुस्लिम भला कैसे हो सकता है।’ एक दिलचस्प बात और, दोनों भाई जिस दिन मांसाहार करते हैं उस रो लंगूरों को हाथ नहीं लगाते। राष्ट्रपति के जाने के बाद भी सूराकुंड मेले में आने वाले मेहमानों को बंदरों के आतंक से बचाने की जिम्मेदारी मंगल पर रहेगी। अरावली की पहाड़ियों में सूराकुंड जसे पर्यटनस्थल पर असंख्य बंदर हैं। पर्यटकों का खाना उठा ले भागने, डराने के लिए पेड़ों को जोर-ाोर से हिलाने, सामान उठाकर फेंकने, कमरों के शीशे और सामान तोड़ने जसी हरकतें यहां खूब होती हैं। बंदरों के आतंक से सूराकुंड को बचाने को पहले यहां लक्ष्मण सिंह नामक लंगूर को लगाया गया था। अधिक उम्र के चलते उसकी ‘बंदर घुड़कियों’ के दबाव में बंदर बिरादरी आ नहीं रही थी, सो, उसे दिल्ली तीस हाारी और यहां मंगल सिंह को यहां लगाया गया। शांत और सीधा दिखने वाला मंगल बंदरों की ‘क्लास’ लेते वक्त एकदम बदल जाता है। उसकी तनी हुई कमानीदार पूंछ स्याह चेहर की डरावनी मुद्रा और उसपर नुकीले, चमकदार सफेद दांत ऐसे में बंदरों रफूचक्कर होने में ही भलाई समझते हैं। मंगल का एक करीबी रिश्तेदार हीरालाल राष्ट्रपति भवन की सुरक्षा में है। मंगल को राष्ट्रपति की सुरक्षा के मद्देनजर खासतौर ट्रेनिंग दी गई है। पर्यटन विभाग के महाप्रबंधक एचएस दीवान को यकीन है, मंगल सिंह सूराकुंड में राष्ट्रपति और मेले में आनेवाले देशी-विदेशी मेहमानों की सुरक्षा का विशेष ख्याल रखेगा।

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