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नई खोज से संतान की चाहत अब होगी पूरी

ऑस्ट्रेलिया के प्रजनन विशेषज्ञों ने एक ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जिससे निसंतान दंपतियों के लिये अब बच्चों को पाना सपना बन कर नहीं रह जायेगा। इस तकनीक के जरिये मानव के शुक्राणु को उसके सामान्य...

नई खोज से संतान की चाहत अब होगी पूरी
एजेंसीThu, 11 Nov 2010 02:01 PM
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ऑस्ट्रेलिया के प्रजनन विशेषज्ञों ने एक ऐसी तकनीक का विकास कर लिया है जिससे निसंतान दंपतियों के लिये अब बच्चों को पाना सपना बन कर नहीं रह जायेगा।

इस तकनीक के जरिये मानव के शुक्राणु को उसके सामान्य आकार से करीब तिहतर सौ गुणा तक बड़ा किया जा सकता है ताकि उन महिलाओं को जिन्हें प्रजनन के दौरान समस्याएं आती हैं वह आसानी से मां बन सकें।

"द एज" समाचार पत्र के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया के प्रजनन विशेषज्ञों ने इस तकनीक के जरिए शुक्राणु को पंद्रह सेंटीमीटर तक लंबा करने में सफलता पायी जो कि सामान्य तौर पर दिखने वाले शुक्राणु के आकार से 18 गुणा बड़ा था।

इस तकनीक के जरिए उन पुरुषों को सहायता मिलेगी जिनकी पत्नियां बार-बार गर्भपात और गर्भधारण नहीं कर पाने की समस्या का सामना करती हैं। दरअसल यह इसलिए होता है कि पुरूष के शुक्राणु में मौजूद डीएनए (आनुवांशिक गुणों के स्थानांतरण के लिये जिम्मेदार) में परिवर्तन आ जाता है या उनके कई शिराएं मौजूद होती हैं, जिस वजह से ये विकृत शुक्राणु मादा के शरीर से निकलने वाले अंडाणु का ठीक तरह से निषेचन नहीं कर पाते हैं और परिणाम स्वएप महिलाओं में गर्भधारण की समस्या आने लगती है।

भारत में देखा गया है कि 20 से 30 साल के बीच के उम्र में प्रजनन अक्षमता की दर महिलाओं में 10 से 15 फीसदी है, जबकि 30 साल की उम्र के बाद यह दर बढ़कर 20 से 30 फीसदी तक बढ़ जाती है। डॉक्टरों का मानना है कि इसका खास कारण आज के समय में तनावग्रस्त जीवन पद्धति है।

पुरुषों के मामले में प्रजनन अक्षमता से संबंधित मामले वैश्विक स्तर पर 20 लाख सालाना  हैं। भारत में इनकी संख्या 78 लाख 31 हजार है। ऐसा माना जाता है कि हर 6 युगल जोड़ों में से एक की प्रजनन क्षमता कमजोर होती है और 50 फीसदी मामले में जिम्मेवारी पूरुषों की होती है। अमेरिका में 136 पुरुषों में से हर एक की प्रजनन क्षमता कमजोर होती है। ऐसे में इस नई चिकित्सकीय खोज से बहुत बड़े तबके को लाभ मिलेगा।

अभी तक के हुए प्रयोगों में शुक्राणुओं को चार सौ गुणा तक बड़ा किया गया था और इससे उसके आनुवांशिक गुणों में भी किसी प्रकार का कोई परिवर्तन नहीं आया था, लेकिन इस बार इसे तिहतर सौ गुणा तक बड़ा करने में सफलता पायी गयी और यह पाया गया कि यह निषेचन के लिए भी सक्षम था।

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन के निदेशक पीटर इलिंगवर्थ ने कहा कि यह प्रयोग उन दंपति के लिए वरदान की तरह है जो शुक्राणु की समस्या का सामना करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारा अनुभव यह बताता है कि इस तकनीक से अंडाणुओं के निषेचन में वृद्धि होगी, भ्रूण को निषेचन के बाद की अवस्था को स्थानांतरित और रखने में सहायता मिलेगी और सबसे महत्वपूर्ण कि गर्भधारण की दर को पहले की अपेक्षा काफी बढाया जा सकेगा। इस तकनीक को करीब कई दंपतियों के उपर आजमाया गया जो करीब चौंतीस बार गर्भधारण में विफल रहे थे।

कुल प्रजनन दर संबंधी अनुमानित आंकड़े

देश             कम प्रजनन क्षमता से प्रभावित लोगों की संख्या
भारत-           2 करोड़, 38 लाख
पाकिस्तान-   35 लाख, 70 हजार
श्रीलंका-         4 लाख, 46 हजार
अमेरिका-      65 लाख, 85 हजार
ब्राजील-         41 लाख, 28 हजार

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