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पाक के उलझते समीकरण

जिस वक्त पाकिस्तानी सेना कई तालिबान आतंकवादियों को मार गिराने का दावा कर रही है और लाखों लोग स्वात घाटी छोड़कर भाग रहे हैं, तब भी यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या पाकिस्तानी सेना तालिबान के खिलाफ...

 पाक के उलझते समीकरण
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 15 Mar 2009 01:00 PM
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जिस वक्त पाकिस्तानी सेना कई तालिबान आतंकवादियों को मार गिराने का दावा कर रही है और लाखों लोग स्वात घाटी छोड़कर भाग रहे हैं, तब भी यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या पाकिस्तानी सेना तालिबान के खिलाफ गंभीरता से लड़ रही है या यह सिर्फ अमेरिका को दिखाने के लिए है। कई जानकार अब भी यह मान रहे हैं कि तालिबान को बिना ज्यादा गंभीर नुकसान पहुंचाए पाकिस्तानी सेना लौट जाएगी और धीर-धीर तालिबान फिर अपनी जगह आ जाएंगे। ये जानकार यह भी मानते हैं कि भले ही अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा यह भरोसा व्यक्त कर चुके हैं कि पाकिस्तानी सत्ता तंत्र के सोचने में बुनियादी बदलाव आ चुका है, लेकिन यह ओबामा का सोचना ही है और आज भी पाकिस्तानी सेना तालिबान को अपनी मित्र शक्ित मानती है और भारत को ही अपना प्रमुख शत्रु मानती है। ओबामा की हामिद करााई और आसिफ अली जरदारी से बातचीत के कई पहलू शायद दबे-ढके ही रह जाएं लेकिन पाकिस्तान के संदर्भ में अमेरिकी विचार बहुत स्पष्ट हैं। पिछले कुछ दिनों से यह आशंका फिर पश्चिम में जोर-शोर से सिर उठाने लगी है कि पाकिस्तानी परमाणु हथियार आतंकवादियों के हाथ न पड़ जाएं। संभव यह है कि इस आशंका के मद्देनजर अमेरिकी प्रशासन फिर से पाकिस्तानी सेना पर अपनी निर्भरता बढ़ा ले और कमजोर और प्रभावहीन असैनिक सरकार को महत्व देना बंद कर दे। कई बार ऐसा हुआ है कि अमेरिकी आशंका या जरूरत का फायदा उठाकर पाकिस्तानी सेना ने अपनी स्थिति मजबूत की है और ऐसी हालत में पाकिस्तान में स्थायी लोकतंत्र की संभावना और दूर खिसक गई है। अमेरिका को पाकिस्तानी सेना का यह खेल समझना चाहिए और लोकतांत्रिक सरकार पर लगाया अपना दांव वापस नहीं लेना चाहिए, क्योंकि सेना की यही रणनीति एक संकट से दूसर संकट में इस उपमहाद्वीप को ढकेलती रही है। आसिफ अली जरदारी भी इस संकट को समझ रहे हैं और इसीलिए उन्होंने भी यही कहा है कि जब-ाब भी पाकिस्तान में नागरिक शासन रहा है तब भारत के साथ कभी युद्ध नहीं हुआ है। परमाणु हथियारों को लेकर अमेरिकी आशंका निराधार नहीं है, लेकिन पाकिस्तान के सोचने की दिशा तभी बदलेगी जब वहां अपेक्षाकृत स्थिर लोकतांत्रिक सरकार होगी। महत्वपूर्ण यह है कि पाकिस्तानी सेना सचमुच तालिबान को अपना शत्रु माने और भारत के प्रभाव को लेकर अपनी आशंकाएं खत्म कर। पाकिस्तानी सेना का रुख तो आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा लेकिन हमें उम्मीद करनी चाहिए कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार के दिन गिने-चुने न हों।

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